मतदाताओं को लुभाने के लिए तैयार किया गया है बजट, गरीबी और बेरोजगारी के मुद्दों को छोड़ा पीछे : एटक

मतदाताओं को लुभाने के लिए तैयार किया गया है बजट, गरीबी और बेरोजगारी के मुद्दों को छोड़ा पीछे : एटक

जहां एक तरफ मोदी सरकार ने 1 फरवरी को अपना आखिरी पूर्ण बजट ‘अमृत काल बजट’ के रूप में पेश किया है, वहीं ट्रेड यूनियन का कहना है कि बजट मानव और सामाजिक विकास के उत्थान में पूरी तरह विफल रहा है। यह भूख, गरीबी, बेरोजगारी, बढ़ती हुई महत्वपूर्ण समस्याओं को संबोधित नहीं करता है।

दरअसल, मज़दूर यूनियनें मोदी सरकार पर मज़दूरी विरोध होने का आरोप लगाती आयीं है। जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने सदन में बजट पेश किया तो उसमें मज़दूरों और बेरोज़गारों के लिए कोई ठोस योजना को नहीं पेश किया है।

एटक ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा है कि बजट केवल मतदाताओं को लुभाने के इरादे से कुछ हैंडआउट्स हैं, जन केंद्रित आर्थिक विकास और मानव विकास की ओर बढ़ने के उद्देश्य से कुछ भी नहीं है।

संगठन ने बजट को खोखला बताते हुए कहा है कि रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, मूल्य वृद्धि आदि जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान दिए बिना बजट खोखला है।

एटक का आरोप है बजट में लोगों से संबंधित किसी भी वास्तविक मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया गया है।

उल्लेखनीय है कि ट्रेड यूनियन पुरानी पेंशन योजना, सभी को सामाजिक सुरक्षा, सभी को पेंशन, योजनाबद्ध श्रमिकों को नियमित करने, कृषि श्रमिकों सहित असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी आदि की मांग कर रहे हैं।

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एटक के सदस्यों का कहना है कि बजट में दीर्घकालिक रोजगार और गुणवत्तापूर्ण नौकरियों के सृजन पर ध्यान नहीं दिया गया है। यह एक ऐसा बजट है जो राष्ट्र के हितों को पीछे छोड़ देता है, जैसे इसके 94% असंगठित कार्यबल जो सकल घरेलू उत्पाद में 60% योगदान करते हैं।

संगठन का दावा है कि हर साल 8 मिलियन नई नौकरी तलाशने वाले नौजवान बाजार में प्रवेश करते हैं। बेरोज़गारी 34% के चरम पर है।

उनका कहना है कि बजट मांग आधारित कौशल की बात करता है। स्किलिंग औपचारिक शिक्षा के साथ आता है। भारत में औपचारिक शिक्षा की वास्तविकता को पीछे छोड़कर स्किलिंग का कोई अर्थ नहीं है। यह प्रतिबद्धता में कमी वाला एक त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण है।

प्रेस विज्ञप्ति में यह भी लिखा गया है कि ‘युवा शक्ति’ की प्राथमिकता सबसे अधिक युवा आबादी होने के जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने में विफल रहती है। उद्योग 4.0 के लिए नए युग के पाठ्यक्रम का उद्देश्य तकनीकी रूप से शिक्षित युवाओं के एक बहुत छोटे वर्ग को योग्य लोगों के एक बड़े वर्ग को पीछे छोड़ना है।

शिक्षा पर खर्च को नाकाफी बताते हुए यूनियन का कहना है कि भारत में औसत स्कूली शिक्षा की दर में भारी गिरावट आई है। बजट उच्च शिक्षा पर खर्च की बात करता है।

शिक्षा पर राजनीति करने वाली मोदी सरकार विदेशी विश्वविद्यालयों को लाने का खाका पहले ही बना चुकी है। यह खर्च उच्च शिक्षा को समर्थन देने की उस योजना के अनुरूप प्रतीत होता है। भाजपा अब तक शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का केवल 3% से कम आवंटित कर रही है।

संगठन का मानना है कि 2047 तक सिकल सेल एनीमिया के उन्मूलन के विशिष्ट कार्यक्रम को छोड़कर बजट में कोई स्वास्थ्य व्यय नहीं है। स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च में कमी ने भारत में गरीबी को बढ़ा दिया है। कृषि पर खर्च को किसानों को खैरात देने की हद तक कम कर दिया गया है जो कि चुनावी साल का हथकंडा है। मत्स्य पालन, बजटीय प्रतिबद्धताओं की कमी के कारण भविष्य की कुछ योजनाएँ हैं। मनरेगा एक मांग आधारित कार्य है। योजना के लिए आवंटन में कटौती योजना के तहत लगभग 7 करोड़ नौकरी चाहने वालों को वंचित करती है।

वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में 7 लाख रुपए तक की सालाना कमाई तक कोई इनकम टैक्स नहीं देने के निर्मला सीतारमन ऐलान पर यूनियन का कहना है कि मध्यम वर्ग को 7 लाख तक की टैक्स छूट से लुभाया जाता है। यह औपचारिक वेतनभोगी कार्य बल का एक छोटा सा वर्ग है। यह फिर से वोट बैंक को आकर्षित करने का एक उपाय है।

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पेश किये गए बजट में महिलाओं को 2 लाख की बचत पर 7.5% का ब्याज़ मिलेगा। वरिष्ठ नागरिक खाता स्कीम की सीमा 4.5 लाख से 9 लाख की जाएगी। जिसको लेकर एटक का कहना है कि महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों को जमा की सीमा बढ़ाकर राहत देने से कोई बड़ा लाभ नहीं होता है। बढ़ती लैंगिक मजदूरी असमानता और घटती महिला रोजगार दर को संबोधित नहीं किया गया है।

यूनियन का दावा है कि चुनिंदा वस्तुओं पर जीएसटी छूट से केवल गैर जरूरी वस्तुओं की कीमतों में कमी आती है। अप्रत्यक्ष करों का भुगतान करने वाले आम आदमी को कोई राहत नहीं।

बजट में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को आसान बनाने की बात कही गई है। यह देखना होगा कि नियोक्ताओं को दिए जाने वाले डिक्रिमिनलाइज्ड क्षेत्र और रियायतें क्या हैं। यह श्रमिकों के अधिकारों पर प्रहार होगा।

महामारी के दौरान मज़दूरों ने जो सहा उसको शब्दों में कहना मुश्किल है एटक का यह भी कहना है कि मोदी सरकार ने MSME को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया जाता है। गारंटी बढ़ाने के माध्यम से जो दिया जाता है वह विशाल क्षेत्र के लिए बहुत छोटा है, जो कि विकास और रोजगार सृजक का इंजन है। राजस्व कहां से उत्पन्न होता है, इस पर बजट मौन है। अमीरों और कॉरपोरेट्स पर टैक्स लगाकर टैक्स इनकम बढ़ाने की कोई कोशिश नहीं। यह घाटे को पूरा करने के लिए अधिक उधारी की बात करता है। भारत पर कर्ज का बोझ पहले से ही भारी है और आगे का बोझ कर्ज चुकाने का बोझ बढ़ाएगा।

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WU Team

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