ओड़िशा में लगातार किया जा रहा है खनन विरोधी कार्यकर्तोंओं को गिरफ्तार, निरन्तर दमन और अत्याचार पर छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने जताई चिंता
बीते अगस्त के महीने से लगातार ओडिशा में खनन-विरोधी आंदोलनों पर कार्पोरेट सत्ता द्वारा समर्थित पुलिसिया कहर ढ़ाया जा रहा है. आंदोलन के नेतृत्व करने वाले लोगों का खुलेआम अपहरण करना, लोगों को झूठे आरोपों के अंतर्गत गिरफ्तार करना और शांतिपूर्वक प्रदर्शनकारियो पर विधि विरुद्ध काम करने का आरोप लगाकर उन पर यूएपीए की दमनात्मक धाराएं लगा कर गिरफ्तार किया जा रहा है.
आंदोलन से जुड़े लोगों ने दमनात्मक पुलिसिया करवाई को अलोकतांत्रिक बताते हुए इसे आदिवासी समुदायों के संवैधानिक अधिकारों पर एकतरफा हमला बताया है.
आंदोलनकारियों ने इन इलाकों में लगातार किये जा पुलिसिया करवाई की सिलसिलेवार ढंग से जानकारी दी
• नियमगिरि सुरक्षा समिति पर हमला – कालाहांडी और रायगड़ा ज़िलों के बीच आ रहे नियमगिरि क्षेत्र में अगस्त 5 को इस समिति के दो कार्यकर्तोओं – कृष्णा सिकाका और बारी सिकाका – को साधारण वेश भूषा में पुलिसकर्मियों ने गैर-कानूनी हिरासत में ले लिया. जब गाँववालों को किसी थाने से कोई जानकारी नहीं मिली, तो उन्होंने 6 अगस्त को इनकी रिहाई के लिये कल्याणसिंहपुर थाने के सामने धरना-प्रदर्शन किया.
धरने से लौटते समय, पुलिस ने वरिष्ठ कार्यकर्ता द्रेंजु कृषिका को पकड़ने की कोशिश की, जिसका सभी ग्रामीणों ने विरोध किया. इसी विरोध को “विधिविरुद्ध” करार करते हुए, पुलिस ने नियमगिरि सुरक्षा समिति से जुड़े 9 कार्यक्रर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड विधान और यूएपीए की दमनात्मक धाराएं लगा दी हैं, जिसमें स्थानीय वरिष्ठ नेताओं कृष्ण सिकाका और लादा सिकाका के अतिरिक्त शामिल हैं भुवनेश्वर के कवि लेनिन कुमार, और वरिष्ठ कार्यकर्ता लिंगराज आज़ाद – जो प्रदर्शन में उपस्थित भी नहीं थे.
इसी एफआईआर के अंतर्गत 10 अगस्त को एक वरिष्ठ कार्यकर्ता, उपेन्द्र बाग को रायगड़ा से उठाया गया, 5 दिनों तक एसपी के ऑफिस में गैर-कानूनी हिरासत में रख कर उनके साथ मारपिटाई हुई, और बाद में उन्हें विधिविरुद्ध जमावड़े के आरोप में यूएपीए के अन्तर्गत गिरफ्तार किया गया. न्यायालय में बेल की सुनवाई के दौरान पुलिस ने अन्य 4 एफआईआर के बारे में भी जानकारी दी, जो कई साल पुराने हैं, और उनमें यूएपीए जैसे संगीन आरोप भी जुड़े हुए हैं.
इस प्रकार से यूएपीए कानून का उपयोग करते हुए एक विरोध प्रदर्शन की तुलना आतंकवाद से करना तो लोकतांत्रिक सिद्धांतो का सीधा उल्लंघन है.
ज्ञात हो कि नियमगिरि पहाड़ की बॉक्साईट के भंडारों पर दशकों से वेदांन्ता कम्पनी की नज़रें हैं, पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के कारण जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि ग्रामसभाओं की सहमति के बगैर यहाँ कोई खनन नहीं होगा, यह पर्वत अभी तक बचा हुआ है. फिर भी गत वर्षों में यहाँ पर चौड़ी सड़कों और अन्य खनन के लिये आवश्यक अधोसंरचना का निर्माण हो गया है, और वेदांता कंपनी माइनिंग शुरू करवाने का मौका तलाश रही है. जनता के मनोबल तोड़ने के लिये सरकार ने इससे पहले भी कई बार नियमगिरी सुरक्षा समिति पर दमनात्मक कार्यवाही की है और उनके कार्यकर्ताओं पर लगातार निगरानी की जाती है.
• काशिपुर में सिजीमाली कुटरूमाली सुरक्षा समिति पर दमन – हाल ही में रायगड़ा ज़िले के काशिपुर क्षेत्र के सिजीमाली बॉक्साईट ब्लॉक वेदांता कम्पनी को, और पास ही का कुटरूमाली ब्लॉक अडानी कम्पनी को आवंटित किया गया है. दोनों का एमडीओ (माईन डेवेलेपर और ओपरेटर, यानि खदान को विकसित करने वाला और इसका संचालक) मैत्री इन्फ्रस्ट्रक्चर एण्ड माईनिंग इंडिया प्राईवेट लिमिटेड है.
यहाँ पर न तो खनन हेतु लोगों की राय लेने के लिये पेसा कानून या वन अधिकार कानून के अंतर्गत ग्राम सभा हुई है, और न ही पर्यावरण प्रभाव आंकलन नियमों के अंतर्गत कोई जन सुनवाई हुई है। एक ओर यहाँ के आदिवासी ग्रामीणों ने खनन के विरोध में एकजुट हो कर “सिजीमाली कुटरूमाली विरोधी समिति” का गठन किया है. दूसरी ओर स्थानीय प्रशासन की सहायता से यहाँ पर मैत्री कम्पनी जनसम्पर्क शिविरों का आयोजन कर रही है, और लोगों के आधार कार्ड और बैंक खातों का नंबर लेने की कोशिश कर रही है.
4 और 5 अगस्त को पुलिस के साथ जब कंपनी के अधिकारियों ने गाँव में घुसने का प्रयास किया, तो लोगों ने जमकर उनका विरोध किया.
इसी विरोध को लेकर अगले 3-4 दिन में 100 से अधिक ग्रामीणों के खिलाफ 4 एफआईआर दर्ज किये गये है. फिर दिनांक 12 अगस्त 2023 को 95 नामज़द आरोपियों और 150 अन्य लोगों के विरुद्ध भा.द.वि 307 सहित आयुध अधिनियम, और दंड विधि संशोधन अधिनियम के तहत एक और एफआईआर दर्ज किया गया. इस एफआईआर के अंतर्गत 25 से अधिक आंदोलनरत ग्रामीण गिरफ्तार हो चुके है, और अभी भी लगातार गिरफ्तारियाँ हो रही हैं. पुलिस के भय से बहुत सारे युवक गाँव छोड़ कर चले गये हैं.
• माली पर्बत सुरक्षा समिति के नेताओं का अपहरण – कोरापुट ज़िले के माली पर्बत पर बॉक्साईट माईनिंग लीज़ आदित्य बिरला ग्रुप की प्रमुख कम्पनी हिन्डाल्को को दी गई है. हिंडाल्को ने गत कई वर्षों यहाँ पर्यावरण स्वीकृति की समाप्ति के बाद भी गैर कानूनी रूप से माईनिंग की है, और अब पुनः पर्रयावरण स्वीकृति लेने की प्रक्रिया मे जुटी हुई है. पर माली पर्बत के आदिवासी , दलित और बहुजन लोग इसका कदम कदम पर विरोध कर रहे हैं. उच्च न्यायालय के आदेशानुसार यहाँ जनवरी 2023 में ज़िला न्यायाधीश की उपस्थिति में जनसुनवाई आयोजित की गई, जिसमें अधिकांश वक्ताओं ने खुल कर खनन का विरोध किया. परन्तु उसके उपरांत भी ग्रामीणों पर कई प्रकार के दबाव बनाये जा रहे हैं.
दिनांक 23 अगस्त 2023 को माली परबत सुरक्षा समिति के दो वरिष्ठ नेताओं – अभी सदापेल्ली और दासा खोरा को छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा अलग अलग जगहों से उठाया गया और बलपूर्वक उन्हें दंतेवाड़ा लाया गया. जब उनके परिवारों ने पुलिस थानों में अपहरण की शिकायत की, तो उन्हें 26 अगस्त को दंतेवाड़ा के पास छोड़ा गया.
• प्रफुल्ल समन्तरा का अपहरण – दिनांक 29 अगस्त को सुविख्यात सामाजिक कार्यकर्ता एवं गोल्डमैन पर्यावरण पुरुस्कार से सम्मानित प्रफुल्ल समन्तरा रायगड़ा के जेल में सिजीमाली और कुटरुमाली के गिरफ्तार आदिवासी नेताओं से मिलने और उनको अपना समर्थन देने गये थे, शाम को उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस थी. पर इससे पहले कि वे प्रेस की बीच अपनी बात रख सके, उनके होटल के कमरे में कुछ साधारण वेशभूषा वाले पुरुष आये, और उनकी आँखो और मुँह पर पट्टी बाँध कर, उनके हाथों को बाँधकर, मोबाईल फोन छीन कर, उनको अपने साथ गाड़ी में ले गये. पाँच घंटो बाद समन्तरा जी को इन लोगों ने बरहमपुर छोड़ दिया. अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि समन्तरा जी के अपहरणकर्ता माईनिंग कम्पनी के कर्मचारी थे या फिर स्थानीय पुलिस, पर यह स्पष्ट है कि इनका अपहरण मात्र इसलिये हुआ ताकि वे प्रेस के बीच सिजीमाली और कुटरूमाली माईनिंग के विरोध में बातें नहीं रख सकें.
यह गौर करने योग्य है कि कोरापुट, रायगड़ा और कालाहांडी ज़िलों के उक्त तीनों माईनिंग क्षेत्र पाँचवी अनुसूची के अन्तर्गत आते हैं. पेसा कानून और वन अधिकार कानून स्पष्ट हैं कि ग्राम सभा ही निर्णय करेगी कि इनके क्षेत्र में खनन हो कि नहीं, और समता जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने तो ऐसा भी कहा है कि अनुसूचित क्षेत्रों में निजी माइनिंग कम्पनियाँ खनन नहीं कर सकती हैं.
नियमगिरि पर्वत में खनन से संबंधित ऐतिहासिक फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय ने शासन को आदेशित किया था कि वे ग्राम सभाओं का आयोजन करें जिनमें आदिवासी ग्रामीण खुल कर माइनिंग पर अपनी राय दे पायें, और इन 12 ग्राम सभाओं ने जब खनन के संबंध में अपनी असहमति व्यक्त की, तब से आज तक नियमगिरि पर्वत पर बॉक्साईट माइनिंग नही हो पाई है. छत्तीसगढ़ में भी कई जन आंदोलनों ने ओडिशा के इन संघर्षों से प्रेरित होकर और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होकर पर्यावरण विनाशी खनन का विरोध किया है.
पर कानून के स्पष्ट होने के बावजूद, अगस्त महीने की उक्त सभी वारदातों से ज़ाहिर है कि देश का कानून भले कुछ भी कहे, भारतीय सत्तातंत्र बड़ी बड़ी कंपनियों के इशारे पर ही नाचता है. बार-बार पुलिस और प्रशासन का उपयोग कार्परेट घरानों के पक्ष में आदिवासियों के अधिकारों को कुचलने के लिये ही किया जाता है.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन इसकी पुलिस और प्रशासन की घोर निन्दा करते हुए निम्न मांगे रखता है –
1.नियमगिरी सुरक्षा समिति, और सिजीमाली और कुटरुमाली आंदोलन के सभी गिरफ्तार साथियों को तत्काल रिहा
करो
2.नियमगिरी सुरक्षा समिति के साथियों पर यएपीए वाले एफआईआर को रद्द करो
3.सिजीमाली और कुटरूमाली आंदोलनकारियों पर सारे एफआईआर रद्द करो
4.सिजीमाली, कुटरूमाली और माली पर्बत के क्षेत्रों में सर्वप्रथम मैत्री कंपनी के प्रभाव से मुक्त ग्राम सभाओं का आयोजन होना चाहिये, जिनसे ग्रामीणों का मत स्पष्ट हो.उनकी माईनिंग के लिये सहमति के बाद ही, और उनकी सहमति से ही मैत्री और अन्य खनन सम्बंधी कंपनियों को गाँव मे प्रवेश करने की अनुमति हो.
(जारी प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर)
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