5 साल से काम उम्र के बच्चों की हाथों से काटी जाती है कोकोआ, घाना में मार्स कैंडी कंपनी की नैतिकता की जांच के घेरे में
चिलचिलाती गर्मी ,तापमान करीब 40 के पार. इलाका अफ्रीका के घाना के सुदूर कोको बेल्ट की है. 5 साल तक के कुछ बच्चें हैं जो अपनी ही लम्बाई के बराबर की छुरी हाथों में लिए कोकोआ की फलियों की कटाई कर रहे हैं.
बाद में इन्हीं कोकोआ का इस्तेमाल कर इसे अमेरिका की कुछ सबसे पसंदीदा चॉकलेट में तब्दील कर दिया जाता है.
सीबीएस न्यूज की खबर बताती है की ” घाना के सुदूर कोको बेल्ट में छोटे-छोटे फार्मों का दौरा किया तो पाया की ये फर्म अमेरिकी चॉकलेट की दिग्गज कंपनी मार्स को कोकोआ की आपूर्ति करते हैं, जो एम एंड एम और स्निकर्स सहित कैंडीज का उत्पादन करती है.
हालाँकि ये फर्म अपने कागजों में ये कहते मिलते हैं की वो 2025 तक अपने उत्पादन की हर शृंखला से बाल श्रम को पूरी तरह ख़त्म कर देंगे, साथ ही उन्होंने इसके लिए एक सिस्टम भी बना लिया है. लेकिन ग्राउंड पर हक़ीक़त कुछ और ही देखने को मिलती है. सीबीएस न्यूज ने पाया की तकरीबन हर फर्म में बच्चों से काम लिया जा रहा है.
चॉकलेट बनाने वाली कंपनी मार्स भी दूसरी तरफ घाना में हज़ारों बच्चों को बचाने का दावा करती है. कंपनी एक लिस्ट जारी करते हुए उन बच्चों के बारे में बताती है ,जिन्हें इन बागानों से निकाल कर स्कूल भेज दिया गया है. साथी ही कंपनी ये भी दावा करती है की वो लगातार निगरानी भी करती है की कही बच्चों से काम तो नहीं लिया जा रहा है.
जबकि एक स्थानीय व्हिसिलब्लोअर ने बताया की कंपनी जो लिस्ट दिखती है और उस लिस्ट में जिन बच्चों के नामों का जिक्र है ,उनसे अभी भी बागानों में काम लिया जा रहा है. बाद में जब उस लिस्ट की पुष्टि की गई तो व्हिसिलब्लोअर के आरोप सही पाए गए.
15 साल की मुनीरा उन्हीं बच्चों में से एक है. वह 5 साल की उम्र से ही कोको के खेतों में काम कर रही है. इस पुरे इलाके में शिक्षा एक विलासिता है, उसका स्कूल एक घंटे की पैदल दूरी पर है और परिवहन विकल्प बेहद महंगे हैं.
पिछले साल मुनीरा और उसके परिवार ने अच्छी गुणवत्ता वाले कोको का केवल एक बैग काटा था. उस पुरे बैग का दाम वैसे तो 140 पाउंड होता है लेकिन उन्हें सिर्फ 115 डॉलर मिला.
मुनीरा के परिवार वाले बताते है की ” पिछले वर्ष मार्स द्वारा अनुबंधित फ़ील्ड पर्यवेक्षकों ने मुनीरा के घर का दौरा किया था. उन्होंने मुनीरा को सिखाया की उसे कैमरे पर देख के ये बोलना है कि ‘मैं एक बच्चा हूं, मैं खेलता हूं, मैं स्कूल जाता हूं’ साथ ही एक बैकपैक और स्कूली किताबें दीं. लेकिन उस यात्रा के बाद से 18 महीनों में किसी ने ये देखने के लिए जाँच नहीं की कि मुनीरा वास्तव में स्कूल में थी या नहीं.”
15 साल की मुनीरा कहती है “मुझे कभी-कभी बहुत दुख होता है. मैं एक मेडिकल डॉक्टर बनना चाहती हूं. लेकिन मेरे परिवार के पास स्कूल के लिए पैसे नहीं हैं.”
उसका 12 वर्षीय भाई गफ़ालो भी खेतों में काम करता है. उसे भी स्कूल जाने का बहुत मन करता है और गावों के बाकि लड़कों को स्कूल जाते देख वो भी स्कूल जाने की जिद्द करता है.
नाम न छापने की शर्त पर मिडिया से बात करते हुए एक कोको क्षेत्र पर्यवेक्षक ने कहा कि सूची को बनाने में जिन नामों का इस्तेमाल कर डाटा बनाया हुआ है वो पूरी तरह से झूठा है. और इस दौरान उन्होंने कई ऐसे सबूत पेश किये जो ये बताने के लिए काफी था की कंपनी झूठ बोल रही है. कोई भी यह जांचने के लिए वापस नहीं आया है कि यह सच है या नहीं.
कुछ मामलों में, सूचियों में नाम बिल्कुल मनगढ़ंत थे. सीबीएस न्यूज़ ने एक फार्म का दौरा किया जहां एक सूची के अनुसार एक बच्चा था जो अब कोको के खेतों में काम नहीं कर रहा था. सूची में उसकी पहचान किसान की बेटी के रूप में की गई, लेकिन उसका कोई अस्तित्व ही नहीं था.
अमेरिका में मानवाधिकार वकील टेरी कोलिंग्सवर्थ ने मार्स सहित अमेरिकी चॉकलेट कंपनियों के खिलाफ उपभोक्ता धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए एक मुकदमा दायर किया है. उन्होंने मार्स सप्लायर्स के लिए काम करने वाले घाना के बच्चों के बयान एकत्र किए हैं, जिनमें खेतों में कड़ी मेहनत करने वाले युवा लड़के भी शामिल हैं.
कई ऐसे वाकये हैं जिनमें बच्चों ने कोको की खुली फलियाँ तोड़ते समय छुरी के ब्लेड से लगभग उनको अपनी उंगलियाँ गँवानी पड़ीं.
कोलिंग्सवर्थ ने मिडिया से बात करते हुए बताया “वे जनता को बता रहे हैं कि हम इस बच्चे का पुनर्वास कर रहे हैं, और फिर
अगले ही दिन वो बच्चें कोको के बगान में काम करते हुए मिलते है.”
वही मार्स के प्रवक्ता बताते है की ” हम बाल श्रम के उपयोग की निंदा करते हैं. मिडिया द्वारा हम पर लगाए गए आरोपों की हम आतंरिक पड़ताल करेंगे. लेकिन हम पर लगाए गए आरोप बेहद जल्दीबाज़ी में बिना पुख्ता सबूतों के प्रसारित की जा रही है. हम अपने उत्पादन श्रृंखला के हर स्तर पर सावधानी बरतते है और बाल श्रम को लेकर तो हम जिम्मेदारी भरा काम कर रहे है. लेकिन फिर भी आरोपों की जांच करेंगे और अगर कोई गलती मिलती है तो उचित करवाई करेंगे. ”
आगे वो बताते हैं की ” घाना में हमारे कोको आपूर्तिकर्ता मजबूत आचार संहिता का पालन करने के लिए सहमत हुए हैं और हम यह भी स्पष्ट कर चुके हैं कि उनके पास 2025 तक एक बाल श्रम और उपचार प्रणाली (सीएलएमआरएस) होनी चाहिए जो उद्योग की अग्रणी अंतर्राष्ट्रीय कोको पहल (आईसीआई) का अनुपालन करती हो. पश्चिम अफ्रीका में हमारी 65% से अधिक कोको आपूर्ति पहले से ही सीएलएमआरएस द्वारा कवर की गई है, जिसे हमारे आपूर्तिकर्ताओं द्वारा जमीनी स्तर पर लागू किया जाता है, जिसमें रेनफॉरेस्ट एलायंस और फेयरट्रेड प्रमाणन आवश्यकताओं के हिस्से के रूप में प्रमाणन निकायों द्वारा ऑडिट किए जाते हैं.”
लेकिन ग्राउंड रिपोर्ट एक अलग ही तस्वीर पेश कर रही हैं. असली कहानी कुछ और ही दास्तान बयां कर रही है, सारे दावे झूठ का एक पुलिंदा नज़र आ रहे हैं. बच्चें जिन्हें स्कूल में होना था,जिन्हें खेल के मैदानों में दौड़ना था वो कोकोआ के बागानों में हाड़तोड़ मेहनत करते नज़र आ रहे हैं. अब देखने वाली बात ये होगी की आगे कुछ बदलाव किये जाते हैं या फिर इन बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया जायेगा.
Do read also:-
- “हम मर जायेंगे लेकिन वेदांता को अपनी 1 इंच भी जमीन खनन के लिए नहीं देंगे” – ओडिशा बॉक्साइट खनन
- विश्व आदिवासी दिवस: रामराज्य के ‘ठेकेदारों’ को जल जंगल ज़मीन में दिख रही ‘सोने की लंका’
- “फैक्ट्री बेच मोदी सरकार उत्तराखंड में भुतहा गावों की संख्या और बढ़ा देगी “- आईएमपीसीएल विनिवेश
- “किसान आंदोलन में किसानों के साथ खड़े होने का दावा करने वाले भगवंत मान आज क्यों हैं चुप “
- ओडिशा पुलिस द्वारा सालिया साही के आदिवासी झुग्गीवासियों पर दमन के खिलाफ प्रदर्शन पर पुलिस ने किया लाठीचार्ज
Subscribe to support Workers Unity – Click Here
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)