अंबेडकर गांगुली गर्ल्स हॉस्टल में 10-10 साल से काम कर रहे सफ़ाई कर्मचारियों को निकाला

अंबेडकर गांगुली गर्ल्स हॉस्टल में 10-10 साल से काम कर रहे सफ़ाई कर्मचारियों को निकाला

By खुशबू सिंह

बीते दिनों एक खबर सामने आई थी कि, अंबेडकर गांगुली स्टुडेंट्स हाउस फ़ॉर वुमन हॉस्टल के सफ़ाई कर्मचारियों, माली, बस ड्राइवर्स और सिक्योरिटी गार्ड सहित अन्य कर्मचारियों को हॉस्टल प्रबंधन ने अगस्त माह से वेतन न देने की घोषणा कर दी है।

ये खबर अभी ठंडी नहीं हुई थी कि, हॉस्टल प्रबंधन ने इन सभी 16 कर्मचारियों को काम से निकाल दिया, जिनमें 9 महिलाएं हैं।

निकाले गए कर्मचारी पिछले 10-15 सालों से हॉस्टल में अपनी सेवाएं दे रहे थे, लेकिन प्रबंधन ने इन्हें आर्थिक तंगी का हवाला देकर बाहर कर दिया। जबकि छात्राओं का कहना है कि प्रबंधन फ़ीस वसूलने में कोई कोताही नहीं बरत रहा है और उनसे पूरी फ़ीस वसूली गई है।

दो दिन पहले ही दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध एक और महिला हॉस्टल अंडर ग्रेजुएट हॉस्टल फॉर गर्ल्स में छात्राओं से अतिरिक्त फ़ीस वसूली की जा रही है जबकि वहां पिछले साल छात्राओं ने अगस्त 2020 तक की फ़ीस जमा कर दी है, जोकि क़रीब 80 हज़ार है।

modi safai karmachari
पिछले साल फ़रवरी में कुंभ के मेले में पहुंचे नरेंद्र मोदी ने सफ़ाई कर्मचारियों के पैर धो कर उनका सम्मान किया था।

पूरे लॉकडाउन में काम कराया

अंबेडकर गांगुली हॉस्टल में काम करने वाले कर्मचारी कॉन्ट्रैक्ट पर हैं और इनका कॉन्ट्रैक्ट हर छह महीने बाद बढ़ाया जाता है।

कर्मचारियों का कॉन्ट्रैक्ट प्रबंधन ने जुलाई 2020 में बढ़ाया था लेकिन इसके एक महीने बाद ही इन्हें काम से बेदखल कर दिया गया। कर्मचारी पूछ रहे हैं कि क्या नरेंद्र मोदी का ‘आपदा में अवसर’ के नारे का यही मतलब है?

यहां पर पिछले 7 सालों से सफ़ाई का काम करने वाली नूतन ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि, “पहले तो हमें वेतन न देने के लिए कहा गया, फिर 3 अगस्त को काम से निकाल दिया गया। जबकि हमने लॉकडाउन के समय भी पूरा काम किया है।”

वो कहती हैं, “यदि कोई कर्मचारी काम पर नहीं आया है, तो उसका भी काम हमें अकेले ही करना होता है। घर में किसी का देहांत हो गया हो फिर भी छुट्टी नहीं मिलती है। हमेशा काम से निकालने की धमकी देते थे। लेकिन हम लोग शांति से काम करत थे सिर्फ इसलिए ताकि हमारे घर में दो समय का खाना बन सके।”

सफ़ाई कर्मचारियों को पीने के लिए दिया जाता है वॉशरुम का पानी

नूतन कहती हैं, “लॉकडाउन के चलते कहीं नौकरी नहीं मिल रही है। काम नहीं है, इस चिंता में बीमार पड़ी। मेरे चेहरे का एक हिस्सा पैरालाइज़ हो गया है। रोजाना दवाई का खर्च 500 रुपए है। हालात ये हैं कि घर में एक टाइम खाना बनाने में भी मुश्किल आ रही है।”

इस बारे में हॉस्टल प्रबंधन का पक्ष जानने के लिए वर्कर्स यूनिटी ने “अंबेडकर गांगुली स्टूडेंस हाउस फ़ॉर वुमन” हॉस्टल की चेयर पर्सन सुनेरा कासलीवाल को कई बार संपर्क किया पर कोई जबाव नहीं मिला।

इसी हॉस्टल में रहने वाली फर्स्ट इयर लॉ की छात्रा अमीशा कहती हैं, “यहां पर सभी कर्मचारी पांच साल पुराने हैं, और सभी अनुसूचित वर्ग से आते हैं। कोरोना में इनसे जान लगाकर काम  कराया गया।”

अमीशा कहती हैं, “इनका शोषण इसलिए भी किया जाता है क्योंकि ये लोग दलित हैं। कर्मचारियों को वेतन देने के लिए प्रबंधन हमसे जबरन फीस वसूल रहा है जबकि लॉकडाउन के समय से ही छात्र हॉस्टल में नहीं हैं।”

हॉस्टल की एक अन्य छात्रा ने दावा किया कि, ,”ये लोग प्रबंधन की गालियां सुनते रहे, कई बार इन्हें झाडू फेंक कर मारा गया है। सब कुछ इन्होंने सहा केवल अपने बच्चों को दो वक़्त का खाना खिलाने और अच्छा भविष्य देने के लिए।”

हॉस्टल के कर्मचारियों ने वर्कर्स यूनिटी को एक पत्र लिख कर कहा है, “सफ़ाई का काम करने वाले कर्मचारियों को हॉस्टल ने ही काम पर रखा है, लेकिन फिर भी उनके साथ भेदभाव होता है। सफ़ाई कर्मचारियों को डोर बेल, फाइल, कुर्सी छूने की इज़ाजत नहीं है। क्योंकि उन्हें अछूत माना जाता है।”

चिट्ठी में ये आरोप लगाया गया है कि ‘यहां तक कि हॉस्टल मेें काम करने वाले कर्मचारियों को, “हॉस्टल के किचन से पानी पीने की मनाही है। वॉशरूम में इस्तेमाल होने वाले पानी को पीते हैं।’

कर्मचारियों का कहना है कि, “यदि कोई कर्मचारी किसी घटना के कारण छुट्टी कर लेता है तो उनके वेतन से पैसा काटा जाता है। काम से निकालने की धमकी दी जाती है।”

10 सालों में दलित उत्पीड़न में 66% इजाफ़ा

15 मई 2018 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें उन्होंने बताय था कि, पिछले 10 साल (2007-2017) में दलित उत्पीड़न के मामलों में 66 फीसद इजाफ़ा हुआ है।

इस दौरान रोजाना देश में छह दलित महिलाओं से दुष्कर्म के मामले दर्ज किए गए, जो 2007 की तुलना में दोगुना है। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर 15 मिनट में दलितों के साथ कोई न कोई आपराधिक घटनाएं हुईं।

वहीं 5 मई को इकोनॉमिक टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक, निजी क्षेत्र के एक प्रमुख थिंक टैंक का कहना है कि लॉकडाउन के चलते भारत में अप्रैल में 12 करोड़ 20 लाख लोग बेरोजगार हो गए हैं।

और इस बेरोज़गारी के समय में सबसे बड़ी गाज असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों पर गिरी है, जिनमें देश भर के सफ़ाई कर्मचारी भी शामिल हैं।

इसके चलते 3 मई को समाप्त हुए सप्ताह में देश में बेरोजगारी दर 27.1% पर पहुंच गई। इस बात का खुलासा सेंटर फॉर मॉनिटारिंग इंडियन इकोनॉमी के सर्वे में हुआ है।

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Workers Unity Team