मुंबई में फंसे गोंडा के मजदूरों के सामने जीने मरने की नौबत
By आशीष सक्सेना
लॉकडाउन के चौथे सप्ताह में भी सरकार प्रवासी मजदूरों को न तो शहरों में ठहरे रहने का कायदे का बंदोबस्त कर पाई है और न ही उन्हें गांव पहुंचने का इंतजाम करा रही है, जहां उनके परिजन जैसे-तैसे गुजर बसर कर रहे हैं।
नवी मुंबई में न्यू पनवेल वेस्ट के सेक्टर 16 में उत्तरप्रदेश के 60 प्रवासी मजदूरों के सामने जीने मरने की सी नौबत है। रोजी रोटी की तलाश में ये सभी गोंडा के गांवों से आए थे। गरीबी से जूझ रहे परिवारों ने भी कुछ उम्मीदों के साथ उन्हें जाने दिया।
इन मजदूरों के बीच से ही शिव कुमार कहते हैं, गांव में हमारे पास कुछ होता तो यहां आते ही क्यों, बीघा-डेढ़ बीघा किसी के पास है भी तो उससे परिवार नहीं पल सकता। कोई आसपास के शहर कस्बे में तो कोई दूरदराज जाकर मजदूरी कर रहा है। कुछ बंटाईदारी से भी पेट भरते हैं।
हम सब भी यहां टेंट लगाने के काम में मजदूरी करते हैं, दिहाड़ी मजदूर हैं, नाके पर जाकर खड़े होते हैं रोज दिहाड़ी पाने को, लेकिन हमेशा तो काम मिलता भी नहीं।
पासवान और नोनिया चौहान जाति के इन मजदूरों का कहना है कि जैसे तैसे उधारी के राशन से लॉकडाउन के इतने दिन कटे हैं, लेकिन अब लगता है कि हम यहां भूखे मर जाएंगे और गांव में हमारे मां-बाप, बीवी-बच्चे।
सरकार कुछ नहीं कर रही तो हमें जाने तो दे, पानी पी पीकर पैदल चले जाएंगे। जिंदा पहुंचे तो गांव में नमक रोटी खाकर परिवार के साथ तो होंगे।
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