अम्बेडकर जयंती के ठीक एक दिन पहले एक प्रखर अम्बेडकरवादी का जाना…
एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता का उस समय जाना जब देश एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा हो जहां उसकी एक भूमिका बनती है, कितना दुर्भाग्यपूर्ण है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी वीरा साथीदार का निधन एक ऐसी क्षति है जो वाकई महाराष्ट्र और देश के दलित आंदोलन में शायद ही पूरी हो पाए।
कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली मराठी फिल्म ‘कोर्ट’ में उनके अभिनय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली। 62 की उम्र में कोरोना से मंगलवार को उनकी नागपुर में मौत हो गई।
पांच दिन पहले कोरोना पॉजिटिव होने के कारण उन्हें नागपुर एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था, महामारी के प्रकोप से उन्हें नहीं बचाया जा सका।
उन्होंने ‘कोर्ट’ फिल्म में नारायण कांबले की भूमिका निभाई थी। यह फ़िल्म दलित कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न और भारतीय न्याय व्यवस्था पर केंद्रित है और इसे फ़िल्म समीक्षकों की ओर से काफ़ी सराहना मिली। वीरा साथीदार को एक मराठी एक्टर के रूप में आम जनता में इसी फ़िल्म ने लोकप्रियता दिलाई।
लेकिन उनका जीवन केवल अभिनय तक सीमित नहीं था। महाराष्ट्र के प्रमुख दलित कार्यकर्ता, प्रखर अम्बेडकरवादी, संजीदा कलाकार, कवि, लेखक और संपादक के रूप में उन्हें जाना जाता है।
वे मूलतः महाराष्ट्र के वर्धा जिले के रहने वाले थे और अपना बचपन नागपुर (जोगीनगर) के झोपड़पट्टी में गुजारा।
उनके पिता कुली का काम करते थे, जबकि मां निर्माण-मज़दूर थीं। अस्सी के दशक से ही महाराष्ट्र में दलित आंदोलन में शामिल हो गए और रेडिकल संगठन दलित पैंथर में काफ़ी अर्से तक रहे।
एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि दलित पैंथर असल में नक्सलबाड़ी किसान आंदोलन से प्रेरित अम्बेडकरवादी सामाजिक कार्यकर्ताओं का संगठन था और उसका काफ़ी असर इसके कार्यकर्ताओं पर था।
बाद के दिनों में वीरा साथीदार दलित सामाजिक संगठन रिपब्लिकन पैंथर बनाकर महाराष्ट्र में काम करने लगे और उसकी एक सांस्कृतिक टीम भी बनाई, जिससे जुड़े कुछ सांस्कृतिककर्मी आज भी जेलों में बंद हैं।
उन्होंने महाराष्ट्र के अम्बेडकरवादी आंदोलन में पूरी नई पीढ़ी तैयार की जो अम्बेडकरवादी विचार के प्रसार के लिए अपनी पूरी ज़िंदगी दांव पर लगा दी है।
वीरा साथीदार दलित आंदोलन के लिए कई गीत भी लिखे और ‘विद्रोही’ नामक पत्रिका संपादन किया। साल 2018 में वर्कर्स यूनिटी को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने अम्बेडकरवादी नौजवानों के लिए संदेश भी दिया था।
उनका कहना था कि अम्बेडकरवादी नौजवानों को ये समझना होगा कि उनका अम्बेडकर कौन सा है? उनके अनुसार, इन सत्तर सालों में हरेक का अम्बेडकर अलग अलग है।
उन्होंने कहा था कि ये जानने की आज बहुत सख़्त ज़रूरत है कि बाबा साहेब अम्बेडकर के अहिंसा के बारे में, पूंजीवाद के बारे में, संविधान के बारे में क्या विचार थे। एक परिवर्तनकारी अम्बेडकर को खड़ा करने के लिए ये सब बहुत ज़रूरी है।
वीरा साथीदार भीमा कोरेगांव में हुए यलगार परिषद के आयोजन में भी अहम भूमिका निभाई थी और इस साल पुणे में एक कार्यक्रम आयोजित करने में भी काफ़ी व्यस्त रहे। किसान आंदोलन और दलित आंदोलन को एक दूसरे से मिलाने की उनकी ख्वाहिश इसी कार्यक्रम में आकार ले रही थी लेकिन अम्बेडकर जयंती के ठीक एक दिन पहले वो अपने पीछे कई ज़िम्मेदारियां छोड़ गए।
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