संभल में पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग की अंतरिम रिपोर्ट, बीजेपी और प्रबुद्ध नागरिकों का क्या कहना है?
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उत्तर प्रदेश, जिला संभल स्थित शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान 24 नवंबर,2024 को पुलिस फ़ायरिंग में अल्पसंख्यक समुदाय के पांच लोगों की मौत हो गई थी। मौके से 21 लोगों और अन्य अनेक लोगों (जांच रिपोर्ट तक 70) की गिरफ्तारियां हुईं। 2750 अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया।
7 से 9 जनवरी के बीच टीडी भास्कर की टीम के नेतृत्व में पीयूसीएल (पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टी) की पांच सदस्यीय टीम ने संभल जाकर सभी पक्षों से मुलाक़ात की। इस अंतरिम रिपोर्ट की यह अंतिम किश्तः-
पीयूसीएल की टीम ने भाजपा नेता राजेश सिंघल से बात की-
प्रश्नः सम्भल में यह मंदिर-मस्जिद विवाद क्या है?
सिंघल: “संभल में शाही जामा मस्जिद दरअसल हरिहर मंदिर है। अयोध्या में श्री राम जन्मस्थली में मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने से भी पहले संभल में भगवान विष्णु के हरिहर मंदिर को मुगलों ने मस्जिद बनाई है, जिसे शाही जामा मस्जिद कहा जाता है। मुस्लिम शासकों ने देश में हजारों मंदिर तोड़े हैं और उनकी जगह मस्जिद बनाई हैं।”
प्रश्नः क्या उन सभी जगह फिर मंदिर बनाए जाने चाहिए?
सिघल: “क्यों नहीं। हमारी संस्कृति और गौरव के लिए यह जरूरी है।”
प्रश्नः आप संभल में भाजपा जिला के अध्यक्ष हैं?
सिंघल: “मैं भाजपा का जिला अध्यक्ष रह चुका हूं। इस समय भाजपा के पश्चिम सम्भाग का प्रभारी हूं। तीन बार भाजपा के टिकट पर संभल विधानसभा क्षेत्र से विधायक के लिए चुनाव में प्रत्याशी रहा हूं। संभल भारत के तीर्थों में प्रमुख तीर्थ और हरिहर भगवान (विष्णु) का स्थान है। कलयुग में भगवान विष्णु का ‘कल्कि अवतार’ सम्भल में ही होना है। वे यहां जन्म लेंगे। यहां 64 मंदिर और 19 कुएं हैं। प्रत्येक दीपावली पर यहां परिक्रमा की जाती है। देश के विभिन्न हिस्सों से लोग इसमें सम्मिलित होते है श्रद्धालुओं की सुविधा, भोजन-लंगर के लिए एक परिक्रमा समिति है। मैं उस समिति का प्रमुख हूं।”
प्रश्नः 24 नवंबर को यहां क्या हुआ था?
सिंघल : “न्यायालय के आदेश पर 19 नवंबर,2024 शाम के समय ‘शाही जामा मस्जिद’ का सर्वे पूरा नहीं हो सका था। तीन दिन बाद, 24 नवम्बर सवेरे बकाया सर्वे किया जा रहा था। पहले सर्वे के बाद सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क सहित कुछ लोगों ने उत्तेजनात्मक भाषण दिए थे। बर्क साहब ने कहा था ‘यह मस्जिद थी, मस्जिद है और मस्जिद ही रहेगी’। उनके उत्तेजनात्मक भाषण के कारण सम्भल में हुई हिंसा के लिए बर्क के खिलाफ भी मुकदमा दायर है। सपा विधायक इकबाल महमूद का बेटा सोहेल इकबाल भी उत्तेजित भीड़ में सम्मिलित था और भीड़ को उकसा रहा था, उसके खिलाफ भी मुकदमा दर्ज है।”
प्रश्नः आप 2022 में सपा विधायक के खिलाफ भाजपा प्रत्याशी थे। 24 नवंबर को पुलिस फायरिंग और जारी दमन क्या सही है?
सिंघल : “पुलिस ने जो भी किया बिल्कुल सही किया है, और जो कर रही है वह जरूरत के अनुसार ही कर रही है। अगर पुलिस ने यह सब नहीं किया होता तो सम्भल जल जाता। न जाने कितने हिंदू मारे जाते, दुकान जल जाती। जान और संपत्ति की हानि होती। पुलिस ने ऐसा होने से बचा लिया है।”
प्रश्नः पुलिस फायरिंग में मरने वाले तो निर्दोष मासूम थे?
सिंघल : “यह तो अभी जांच का विषय है, कौन किसकी गोली से मरा है। वहां तुर्क और पठान मुस्लिम समाज के दो समुदायों के बीच जारी अदावत भी काम कर रही थी। उपद्रवी भीड़ में कुछ लोगों के पास देशी तमंचे आदि नाजायज असलाह भी थे और आपस में फायरिंग भी हो रही थी। उपद्रवी भीड़ में सम्मिलित लोग निर्दोष और मासूम नहीं हो सकते।”
प्रश्नः आप लोग अब और क्या चाहते हैं.. क्या योजना है?
सिंघल : “योजना कुछ नहीं है, विदेशी मुसलमानों के आने से पहले देश की संस्कृति और गौरव की पुनर्स्थापना, मुस्लिम शासकों ने हमारे जिन हिंदू मंदिर-स्मारकों को ध्वस्त किया है उनकी पुनर्स्थापना होनी चाहिए। संभल में सभी पुराने मंदिरों-कुओं की खोज और उनकी पुनर्स्थापना, संभल जहां भगवान विष्णु का ‘कल्कि अवतार’ होने वाला है, हिंदू धर्म की पवित्र नगरी घोषित की जानी चाहिए। संभल को तीर्थ स्थल घोषित किया जाना चाहिए। 1978 के दंगों की जांच की जाए और मारे गए 184 हिंदुओं के परिवार को न्याय मिले।”
- पहली किश्तः संभल में पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग की अंतरिम रिपोर्ट, जांच टीम ने क्या पाया?
- दूसरी किश्तः संभल में पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग की अंतरिम रिपोर्ट, पुलिस का क्या कहना है
नागरिक प्रतिक्रिया
सेवानिवृत प्राध्यापक भगवान दास जी की आयु 82 वर्ष से अधिक है। एआईटीयूसी,सीटू आईएनटीयूसी जैसी राष्ट्रीय स्तर के श्रमिक संगठनों की जिला स्तर पर गठित “जिला समन्वय समिति” के वे 12 साल तक संयोजक और समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष रह चुके हैं। पीयूसीएल की टीम ने सम्भल में साम्प्रदायिक स्थिति, शाही जामा मस्जिद-हरिहर मंदिर विवाद, 24 नवंबर को पुलिस फायरिंग आदि विषयों पर उनसे पूछा।
प्रश्नः कथित ‘शाही जामा मस्जिद-हरिहर मंदिर’ विवाद और 24 नवंबर की हिंसा पर आपकी राय?
भगवान दास : “सब कुछ प्रायोजित था। 19 नवंबर सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर होती है, उसी दिन विपक्ष को सूचित किए बिना एक्स पार्टी सर्वे का आदेश, कमिश्नर के लिए अधिवक्ता की नियुक्ति भी हो जाती है। सांझ ढलते एडवोकेट कमिश्नर, वादीगण, प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस बल के साथ सर्वे के लिए मस्जिद पहुंच जाते हैं। यह सब प्रायोजित नहीं लगता! सरकार के निर्देश पर सोची समझी योजना के तहत हुआ है।”
“ 1991 का पूजा स्थल अधिनियम है। इस कानून के अनुसार, 15 अगस्त, 1947 को आज़ादी मिलने के बाद से पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप को यथावत रखने का प्रावधान है। सम्भल की शाही जामा मस्जिद पांच सौ साल पुरानी है। तब, किसी प्रकार के विवाद की गुंजाइश कहां है! सर्वोच्च न्यायालय का वह फैसला जिसमें कहा गया है कि सर्वे पर रोक नहीं है के जरिए 1991 का कानून निष्प्रभावी हो रहा है। सम्भल में मौजूदा हिंसा की जड़ में यही फैसला है। अभी देखिए इस फैसले के कारण कितने और विवाद और हिंसा होती है। पंडोरा बॉक्स (Pandora’s box) खुल गया है।”
प्रश्नः कहा जा रहा है कि सम्भल साम्प्रदायिकता का केंद्र है। यहां आजादी के बाद दौ सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। संभल में 16 सांप्रदायिक दंगे हो चुके है?
भगवान दास : “विद्यार्थी जीवन से लेकर मेरी सारी जिंदगी यहां गुजरी है । दोनों ही संप्रदायों में कुछ सांप्रदायिक जहनियत के लोग जरूर है, लेकिन आम हिंदू-मुसलमान परस्पर प्रेम और सदभाव के साथ मिल-जुल कर रहते हैं। एक दूसरे की खुशी और गम, शादी-ब्याह, ईद-दीवाली त्यौहारों में सम्मिलित होते हैं। वोट की राजनीति के कारण नाइत्तफाकी छोड़ दें, तो कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे सांप्रदायिकता कहा जा सके।”
“यहां 16 दंगों की कहानी हमारी समझ से सही नहीं है। 1976 में इमरजेंसी के दौरान शाही जामा मस्जिद में इमाम की हत्या के बाद कुछ हुआ था परंतु वह ज्यादा फैला नहीं। हां, 1978 में संभल में सांप्रदायिक दंगा हुआ था।”
प्रश्नः कहा जा रहा 184 हिंदू 1978 के इस दंगे में मारे गए थे?
भगवान दास : “यह संख्या जो बतायी जा रही है, सही नहीं है।
प्रश्नः 1980 में सम्भल में साम्प्रदायिक दंगा हुआ था?
भगवान दास : “1980 में संभल में कोई दंगा या हिंसा नहीं हुई। सन्भल उस समय मुरादाबाद जिले की एक तहसील थी। यह जिला सितंबर 2011 में बना है। मुरादाबाद शहर में दंगा हुआ था। सम्भल में तनाव था परंतु अशांति की कोई घटना नहीं हुई। मुरादाबाद में भी दंगे की शुरुआत हिंदू-मुस्लिम के बीच नहीं, पुलिस और मुसलमानों के बीच हुई थी। कुछ पुलिस अधिकारियों को भी जनता का आक्रोष झेलना पड़ा था। पुलिस ने मुसलमानों को लक्ष्य कर जनसंहार किया था। मुरादाबाद में लगभग तीन महीने कर्फ्यू रहा। चाकूबाजी में भी लोग मारे गए थे। तनाव संभल में भी हुआ था परंतु मुरादाबाद की तरह यहां जन-धन हानि की कोई घटना मेरी जानकारी में नहीं है।”
प्रश्नः कहा जा रहा है शाही मस्जिद कमेटी रजिस्टर्ड नहीं है इसलिए विधि सम्मत नहीं है?
भगवान दास : “रजिस्ट्रेशन! क्या आरएसएस का रजिस्ट्रेशन हुआ है। उसका कोई संविधान या नियमावली है, सदस्यता या सांगठनिक चुनाव होता है, सरसंघचालक तक नियुक्त होता है, चुना नहीं होता। सरसंघचालक अपना उत्तराधिकारी मनोनीत करता है।… देश में कितने हजार मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च आदि हैं, उन सब की प्रबंध समितियां क्या रजिस्टर्ड है! विद्यार्थी संगठन, युवा संगठन, महिला संगठन, लेखक साहित्यकारों के संगठन, खेलकूद, संगीत, नाटक-नौटंकी, सांस्कृतिक संगठन, किसान संगठन, मोहल्ला समितियां कही पंजीकृत नहीं हैं। उनके लिए रजिस्ट्रेशन की बात नहीं की जाती। पीयूसीएल ही को लीजिए, क्या यह रजिस्टर्ड है! देश के संविधान में संगठन बनाना मौलिक अधिकार है। इसके लिए रजिस्ट्रेशन पूर्व शर्त नहीं है। यह संविधान सम्मत एक मौलिक अधिकार है। बैंक में किसी संगठन का खाता खुलवाने के लिए संगठन का रजिस्ट्रेशन आवश्यक नहीं है। मस्जिद कमेटी के लिए रजिस्ट्रेशन की बात कोई ज्यादा बुद्धिमान सज्जन ही कह सकता है।”
सघीर सैफी (Sagheer Saife)
सघीर सैफी सम्भल जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके हैं। हमने उनसे पूछा :
प्रश्नः संभल को कुछ लोग सांप्रदायिकता का गढ़ बता रहे है। कहा जा रहा है यहां 16 बार सांप्रदायिक दंगे हो चुके है? 200 से अधिक हिंदुओं की हत्या मुसलमान दंगाइयों ने की है?
सैफी : “ यह दर्ज प्राथमिकी (FIR),पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पुलिस जांच रिपोर्ट, आयोग की रिपोर्ट, विश्वसनीय दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर कहा जा रहा है या अफवाहों के आधार पर, देखना होगा। जहां तक 1976 के दंगे की बात है, उस समय देश में इमरजेंसी लगी हुई थी। महाशिवरात्रि के रोज कुछ उद्दंड युवक, शाही जामा मस्जिद में घुस आए। कहने लगे यह मस्जिद नहीं भगवान शिव का मंदिर है। हम यहां शिवलिंग स्थापित कर जल अर्पित करेंगे। रोकने पर विवाद हुआ। कुरान शरीफ की बेइज्जती और बाद में इमाम की हत्या की गई। इसके बाद दंगा हुआ, लूटपाट हुई। तीन लोगों की मौत की बात सुनी है। 1978 का दंगा बड़ा था। लेकिन 184 लोगों की बात बेबुनियाद है। मेरी जानकारी के अनुसार दर्ज दो एफआईआर में लगभग दो दर्जन की मौत बताई गई थी। यह 184 की संख्या किस आधार पर बताई जा रही है!”
“अलीगढ़ के छात्र नेता मंजर शरीफ इमरजेंसी के बाद 1977 में मुस्लिम लीग से चुनाव लड़े थे। मुरादाबाद डिग्री कॉलेज में को-एजुकेशन थी। लड़के-लड़कियां साथ-साथ पढ़ते थे। 1978 में होली का समय था। कुछ मुस्लिम लड़कियों को दिए गए टाइटल को लेकर ऐतराज किया गया कि असभ्यता की गई है। सफाई कर्मचारियों की भी हड़ताल चल रही थी। कुछ और भी विवाद थे। मंजर शरीफ का किसी बात पर प्रशासनिक अधिकारी से विवाद हो गया। बाजार बंदी का ऐलान किया गया। बाजार बंद कराए जाने के दौरान विवाद हुआ और वह हिंसा में बदल गया। उस दौरान जिलाधिकारी (DM) फरहत साहब थे। उन्होंने स्थिति नियंत्रण करने का भरपूर प्रयास किया। उन पर भी हमला हुआ। हिंदू और मुसलमान दोनों पक्ष के उग्र लोग उनसे असंतुष्ट थे। मुसलमानों के नाम से एफआईआर से मुसलमान पक्ष और हिंदुओं की रक्षा करने में नाकामयाबी के कारण हिंदू पक्ष नाराज था।”
“1980 में सम्भल में तनाव जरूर रहा, दंगा नहीं हुआ। कोई लूट या आगजनी की घटना नहीं हुई। 1986 में मेले के दौरान मामूली विवाद झगड़े में बदला। मेला उजड़ गया कुछ मरे भी थे। ठीक से याद नहीं है। 1990-92 के दौरान अयोध्या में राम मंदिर को लेकर राजनीति के दौर में देश के कई स्थानों पर दंगे हुए परंतु सम्भल में लाख कोशिशों के बावजूद दंगाई सफल नहीं हो सके। कुछ वारदातें हुईं, मौत भी हुई फिर भी आगजनी, लूट जैसी घटना मेरी जानकारी में तो नहीं है। तनाव जरूर रहा परंतु दंगा नहीं हुआ। 2019 में, नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA \ NRC) के सवाल पर शांतिपूर्वक धरना दे रही मुस्लिम युवतियों के साथ प्रशासन और पुलिस बल द्वारा बेअदबी और दमन के विरोध में प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा लाठीचार्ज, आंसू गैस प्रयोग के दौरान हुई हिंसा, सांप्रदायिक दंगा नहीं थी। यह हिंदू-मुस्लिम नहीं, पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष था। 2001 में भी हिंदू-मुस्लिम या संप्रदायिक जैसा कुछ नहीं था। दो परिवारों के बीच आपसी झगड़ा था। दोनों पड़ोसी थे। मुस्लिम परिवार द्वारा हिंदू परिवार के 3 या चार लोगों को मार दिया गया था। उन्मादियों ने इस घटना को हिंदू मुस्लिम दंगे में बदलने की कोशिश की परंतु दोनों समुदायों के लोगों ने उनका साथ नहीं दिया इसलिए दंगा नहीं हो सका। 24 नवंबर, 2024 को भी पुलिस के खिलाफ ही संघर्ष था। यह हिंदू-मुस्लिम नहीं था। अगर प्रशासन समझ से काम लेता तो 19 नवंबर की ही तरह दूसरी बार भी शांतिपूर्वक सर्वे हो सकता था। यह कहना गलत और पूर्वाग्रह है कि सम्भल सांप्रदायिकता का गढ़ है।”
राज्यसभा सांसद जावेद अली खान
प्रश्नः आप संभल के रहने वाले हैं। बताया जा रहा है 1978 के दंगों के 46 साल बाद पुलिस ने भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर नाजायज कब्जे से मुक्त कराया है?
जावेद खान : “हां मैं संभल जिले का हूं और राज्यसभा में समाजवादी पार्टी से हूं। यह मंदिर जिस रस्तोगी परिवार का था उनका खुद का बयान है कि वे 2004-06 तक संभल में थे। मंदिर में पूजा होती थी। बाद में भी यह मंदिर उनकी ही देखरेख में रहा है। अब भी मंदिर के ताले की चाबी उनके ही पास है। यह मोहल्ला मुस्लिम बाहुल्य है लेकिन मंदिर जिन रस्तोगी साहब का है उन्होंने ही अब मंदिर का ताला खोल कर उसकी चाबी प्रशासन को सौंपी है। मंदिर में किसी प्रकार की कोई क्षति नहीं हुई है, दानपात्र में सिक्के आदि भी ज्यों के त्यों पाए गए हैं। प्रशासन और मीडिया इस सद्भाव को प्रचारित करने की जगह इस रूप में पेश कर रहा है गोया कि मंदिर पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया था और इसे 1978 के दंगों के साथ जोड़ कर फर्जी नैरटिव बनाया जा रहा है , जबकि जिनका मंदिर था, रस्तोगी परिवार खुद कह रहा है कि वे 2004-06 तक मंदिर के देखभाल करते रहे हैं। इसके बाद जब लोग पूजा करने आ नहीं रहे थे, पुजारी भी नहीं मिल पा रहा था, मंदिर को रस्तोगी परिवार ने ही ताला लगाया था, तब से अभी तक उस ताले की चाबी उन्ही के पास थी।”
प्रश्नः इस मंदिर का जामा मस्जिद से कोई संबंध नहीं है, समझा तो यह जा रहा है कि दोनों अंतर्संबंधित मामले हैं?
जावेद खान : “अलग-अलग बातों को मिक्स करके फर्जी कहानी (Narrative) बनाई जा रही है। शाही जामा मस्जिद से एक किलोमीटर से कुछ कम (लगभग 700 मीटर) फासले पर यह मंदिर है। शाही जामा मस्जिद से इसका कोई लेना-देना नहीं है। अलग-अलग चीजों को मिक्स किया जा रहा है। इस मंदिर की कहानी की तरह ही एक बावड़ी की खुदाई भी चल रही है और इस तरह पेश किया जा रहा है कि वह भी शाही जामा मस्जिद के साथ जुड़ा मामला है। जबकि जहां वह बावड़ी है वह शाही जामा मस्जिद से लगभग 30 किलोमीटर दूर हिंदू बहुल चंदौसी कस्बे में है। वह जगह किसी राजा की संपत्ति थी, राजा ने सौ-सवा सौ साल पहले कभी उसे बेच दिया था। अब वहां लोग बस चुके है, मकान बने हैं। बावड़ी की खाली जगह गड्ढे में सौ साल से ज्यादा समय से कूड़ा डाला जाता रहा है। वह काफी भर चुका है। अब प्रशासन ने यहां खुदाई शुरू की है। यह कोई धार्मिक स्थल या मंदिर का मसला है ही नहीं। सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी 2027 में होने वाले विधानसभा की तैयारी में यह सब कर रही है। इसके लिए हिंदू-मुस्लिम विभाजन और हिंदू मतों का ध्रुवीकरण उनके लिए जरूरी है। इस मकसद से मनगढ़ंत कहानियां प्रचारित की जा रही है। उसकी यह कोशिश चल नहीं पा रही है। उसका बनाया नैरटिव उसके ही खिलाफ पढ़ रहा है। वे खुद एक्सपोज हो रहे हैं।”
प्रश्नः मुख्यमंत्री भी संभल में दंगों की भयानक तस्वीर पेश कर रहे है, जबकि कहा जा रहा है, दंगों की जैसी बात कही जा रही है वह सच नहीं है। यहां तनाव तो होता रहा है, दंगे नहीं हुए?
जावेद खान : “यह ठीक है तनाव होता रहा है परंतु दंगा हुआ ही नहीं हो ऐसा भी नहीं है। संभल जो कि मुरादाबाद जिले की एक तहसील था, यहां 1978 का दंगा बदकिस्मत और बड़ा दाग है। इसी तरह 1980 का मुरादाबाद का दंगा भी था। यह मैं मजबूती से कह सकता हूं कि 1980 के बाद यहां कोई साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ है। 1978 में मैं 11वीं कक्षा में पढ़ता था और मुझे सब याद है, लेकिन मुख्यमंत्री दंगों का जैसा जिक्र और 184 हिंदुओं की हत्या का हवाला दे रहे हैं, वह सही नहीं है। वास्तविकता से काफी बढ़ा-चढ़ा कर कहा जा रहा है। विधानसभा में मुख्यमंत्री के बयान के बाद, जिला प्रशासन से रिपोर्ट तलब की जा रही है। अब जिला प्रशासन दंगे में 184 लोगों के मरने की रिपोर्ट कहां से लाए! एफआईआर, पोस्टमार्टम, वैज्ञानिक परीक्षण से संबंधित फॉरेंसिक रिपोर्ट (Forensic report) मरने वाले 184 व्यक्तियों के नाम, पता और जांच के दौरान लिए गए साक्ष्य के बयान, आरोप पत्र आदि दस्तावेजी साक्ष्य और अदालत का निर्णय यह सब कहां से जिला प्रशासन पेश कर सकता है। अपनी बचत में जिला प्रशासन ने कह दिया कि दस्तावेज नहीं मिल रहे हैं। दस्तावेज तो पुलिस थाना, अदालत के मुहाफिज खाने (अभिलेखागार) से ही तो मिलेंगे! जब 184 लोग मरे ही नहीं तो पुलिस या प्रशासन दस्तावेज कहां से पैदा करेगी! यह सच है कि 1978 का दंगा हुआ था। संभल के कुछ भागों में लगभग 2-3 माह कर्फ्यू भी रहा था परंतु 184 हिंदू या मुसलमान 1978 के फसाद में तो क्या, 100 साल के सांप्रदायिक तनाव में संभल या मुरादाबाद में मिलाकर नहीं मारे गए होंगे। 1980 के बाद भी तनाव के हालात तो बीच-बीच में बने पर कोई दंगा नहीं हुआ। उदाहरण के लिए 1992 में तनाव रहा परंतु दंगा उस समय भी नहीं हुआ। 1980 से मैं राजनीति में सक्रिय हूं और दावे के साथ कह सकता हूं कि 1980 के बाद सम्भल या मुरादाबाद में कोई दंगा नहीं हुआ और एक दिन के लिए भी कर्फ्यू लगने की नौबत नहीं आई।”
प्रश्नः यह तुर्क-पठान विवाद क्या है?
जावेद खान : “कोई विवाद नहीं भाजपा रंग दे रही है। जाति गणना की मांग इधर दो-तीन साल से तेज है। इंडिया गठबंधन, सपा, अब तो कांग्रेस भी, भाजपा को छोड़कर लगभग सभी पार्टियां जाति जनगणना की मांग कर रही हैं। तुर्क-पठान उछाल कर ये लोग यह जाहिर करना चाहते है, जाति भेद हिंदुओं में ही नहीं मुसलमानों में भी है। संभल, उसके आस-पास और मुरादाबाद में मुसलमानों में पाई जाने वाली सभी जातियों से संबंधित लोग रहते हैं। शिया और सुन्नी समाज के लोग भी हैं। बल्कि सम्भल के निकट सिरसी कस्बे में तो शिया बनिस्पत ज्यादा है। मुसलमानों में जाति-संप्रदाय के आधार पर कभी किसी प्रकार का तनाव नहीं हुआ। अफगानिस्तान या उज्बेकिस्तान से आए पठान तो यहां बहुत कम हैं, ज्यादातर सवर्ण हिंदू, राजपूतों से इस्लाम में धर्मान्तरित मुसलमानों को पठान कहा जाता है। मुसलमानों में ये उच्च जाति के हैं, जबकि तुर्क निम्न जाति के माने जाते हैं। यह सही है कि पठान की तुलना में तुर्क यहां अधिक हैं लेकिन इनमें टकराव की बात सही नहीं है।”
प्रश्नः कहा जा रहा है कि 24 नवंबर,2024 को तुर्क और पठान समुदाय के लोग एक-दूसरे पर गोली चला रहे था और होने वाली मौत पुलिस फायरिंग के कारण नहीं आपसी लड़ाई के दौरान हुई?
जावेद खान : “एकदम मनगढ़ंत और धूर्तता भरी बकवास है। यह नैरटिव बनाने की कोशिश की गई पर चल नहीं पाया। मुरादाबाद से एक एफआईआर कराई गई कि लड़का 24 नवंबर को पुलिस फायरिंग में नहीं बल्कि तुर्क और पठान के आपसी झगड़े के दौरान गोली लगने से मारा गया है। मुरादाबाद थाने से मामला स्थानांतरित होकर संभल आया है।”
प्रश्नः संभल में 24 नवंबर,2924 को क्या कैसे हुआ?
जावेद खान : “घटना 24 नवंबर की हो या 19 नवंबर का प्रकरण, चाहे कोर्ट के जरिए आदेश हासिल करने का मामला हो या फिर अधिकारियों की भूमिका। इसकी क्रोनोलॉजी (घटनाक्रम) को देखिए तो ऐसा लगता है कि यह बहुत बड़ी प्लानिंग का हिस्सा है।.. कोई बड़ा मंसूबा है। बाहर से कुछ लोग स्थानीय लोगों को साथ लेकर अचानक अदालत में वाद दायर करते है और उसी दिन उन्हें कोर्ट से सर्वे का आदेश मिल जाता है। मुकदमे में खिलाफ पार्टी यूनियन ऑफ इंडिया भी तो थी। सरकारी वकील सेट था अन्यथा वह कह सकता था कि मामले में त्वरित कुछ नहीं है। वाद पढ़ने और जवाब देने के लिए समय मांगा जा सकता था। लेकिन सरकारी वकील ने कोई ऐतराज नहीं किया। सर्वे के लिए अधिवक्ता नियुक्त हो जाता है और अदालत बंद होने के बाद शाम तक अधिकारियों सहित सर्वे टीम शाही जामा मस्जिद पहुंच जाती है। इतनी जल्दबाजी क्यों! हमारे एसपी गोरखपुर से यहां हाल ही में तबादला होकर आए हैं, वे और जिलाधिकारी महोदय दोनों मुख्यमंत्री के विश्वस्त लोगों में शुमार हैं। इन्हें मालूम हो या नहीं लेकिन बड़े लोगों को पता था कि इन अधिकारियों से वे अपना मकसद पूरा करा सकते हैं और ये पूरी श्रद्धा से उनके काम को अंजाम दे भी रहे हैं।”
प्रश्नः शाही जामा मस्जिद के सामने पुलिस चौकी का मसला क्या है?
जावेद खान : “यह चौकी वक्फ की जमीन पर बनाई गई है। इतनी तेजी से की सात दिन के भीतर इतने बड़े क्षेत्र में चौकी बन भी गई उसपर लेंटर्न भी पड़ गया। वक्फ की जमीन के जो कागजात प्रशासन के समक्ष पेश किए गए उन्हें प्रशासन मान नहीं रहा है। कह रहे हैं ये कूट रचित दस्तावेज हैं। वक्फ में कोई वारिसान तो होता नहीं है, जिसने जमीन वक्फ की थी उसका परिवार जमीन की देखभाल करता था। पहले साजिश रची गई और मस्जिद के पूरब की ओर हिंदू बिरादरी के 7-8 कश्यप बिरादरी के लोगों से एक दरख्वास्त दिलाई गई कि इस जमीन पर हमारा मंदिर था, जिसे नष्ट कर दिया गया। मंदिर दब गया है यह कह नहीं सकते, कहेंगे तो खोदने पर मिलेगा नहीं, क्योंकि मंदिर वहां था ही नहीं। मंदिर बनाने की बात भी नहीं कह सकते थे क्योंकि इसके लिए परमिशन लेनी पड़ती। इसलिए कहा गया मंदिर का पुनरुद्धार किया जाना है। जिलाधिकारी साहब मौके पर गए और कोशिश की। चाहते तो थे इस मसले पर हिंदू-मुस्लिम फसाद हो जाए परंतु हिंदू समुदाय भी फसाद के लिए तैयार नहीं था। लोग अब समझने लगे हैं कि दंगा-फासाद करने से किसी का कोई फायदा नहीं होता। मरने वाले मर जाते हैं उनकी मौत को लोग भुना लेते हैं। समर्थन न मिलने पर जिला प्रशासन का साहस नहीं हुआ कि मस्जिद के दरवाजे के ठीक सामने मंदिर बनाए। तब, वक्फ करने वालों के परिवार के वारिसान से जबरदस्ती हलफनामा पुलिस ने लिया कि यह उनकी जमीन नहीं है, सरकारी जमीन है, सरकारी जमीन का कोई प्रमाण प्रशासन के पास तो है नहीं, इस हलफनामे को आधार बनाकर इसे सरकारी जमीन मान लिया गया और चौकी बना दी गई है।”
प्रश्नः ये तो बहुत अच्छा है कि मृतकों को पांच-पांच लाख रुपए का सहयोग समाजवादी पार्टी ने दिया है। क्या यह सरकार का काम नहीं है कि वह मृतकों को मुआवजा दे?
जावेद खान : “इस सरकार का यही तरीका बन गया है, खास तौर से सीएए/एनआरसी के बाद से, पुलिस फायरिंग में मारते है लेकिन कभी स्वीकार नहीं करते कि पुलिस की गोली से मौत हुई है। हर जगह यही कहा जाता है कि पुलिस की गोली से नहीं आपस में किसी की गोली से मौत हुई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट को किसी समय शक सुबह से परे माना जाता था। अब ऐसा नहीं है। नैतिक रूप से अब रिपोर्ट तैयार करने वाले अपनी फाइंडिंग अपने अनुसार लिख नहीं पाते हैं।”
एडवोकेट एम. यू. अली
मोहम्मद अली शाही जामा मस्जिद की ओर से दीवानी मुकदमे में पैरवी कर रहे वकीलों में से एक हैं। हमने उनसे एक महत्वपूर्ण जानकारी चाही :
प्रश्नः यह किसी प्राचीन काल के नक्शे और शाही जामा मस्जिद के चारों ओर 68 तीर्थ 19 कुओं की बात क्या है?
अली : “शाही जामा मस्जिद को मंदिर होने का दावा करने के लिए दायर दीवानी मुकदमा के वादकारियों में से एक एक ऋषि गिरी है। संभल के कैला देवी महंत ऋषि गिरी अंतरराष्ट्रीय हरिहर सेना के संगठक हैं। 19 नवंबर को सिविल जज ने सर्वे का आदेश उनकी एक दरख्वास्त को स्वीकार कर पारित किया था। ऋषि गिरी का एक नक्शा लिए हैं और उनका दावा है कि वह नक्शा 987 ईस्वी का है, जिसके अनुसार शाही जामा मस्जिद की इमारत की जगह भगवान विष्णु का हरिहर मंदिर है। उसके चारों ओर 68 तीर्थ और 19 कुएं हैं। इस घेरे के केन्द्र में हरिहर मंदिर है। संभल जिला प्रशासन इस नक्शे के अनुसार 68 तीर्थ की खोज में जुटा है। मंदिरों की तलाश की जा रही है, ताकि नक्शा सही सिद्ध करके शाही जामा मस्जिद को हरिहर मंदिर सिद्ध किया जा सके। कुएं भी खोजे जा रहे हैं। कुएं 19 क्या, अधिक रहे होंगे। भूगर्भ जल स्तर नीचे चले जाने के कारण कुओं का पानी नीचे चला गया था। कई कुएं सूख गए थे। समर पंप के कारण कुओं का इस्तेमाल कम हो गया। कुएं खुले पड़े थे, आए दिन हादसे और हादसों की सम्भावना रहती थी। खेल रहे बच्चे, जानवर आदि कुए में गिर जाने का भय रहता था। इसलिए लोगों ने कुओं को पाट कर बंद कर दिया। प्रशासन ने भी हादसों की रोकथाम के नजरिए से कई कुए बंद कराए। अब तीर्थ और कुओं की खोज-खुदाई चल रही है। इस चक्कर में प्रशासन और नगरपालिका का तोड़फोड़ अभियान जारी है। कोतवाली के सामने जगह थी वहां 8-10 साल से दुकान थी, इन्हे विवादित और अतिक्रमण बताया गया। नगर पालिका के अधिकारियों के आदेश पर इनको तोड़ा जाना प्रारंभ हुआ। विरोध में दुकानदारों का कहना है यह मस्जिद की जगह है। दुकान का किराया भी मस्जिद को मिलता रहा है। इसी तरह कोतवाली के सामने की मस्जिद की जगह पर 12 दुकान और हैं। नगर पालिका अधिकारियों ने दुकान खाली कराने के लिए कह दिया। दुकानदार लखनऊ जाकर वक्फ के दस्तावेज ले आए, जिनके अनुसार जमीन मस्जिद के लिए वक्फ है। इस प्रकार ये दुकान फिलहाल बच गईं।”
सुनील सौरभ,उद्यमी एवं सामाजिक कार्यकर्ता
प्रश्नः सामाजिक कार्यों के लिए आपकी यहां काफी चर्चा है?
सौरभ : “हमारे दो संगठन हैं, जिनके जरिए` हमारी टीम यहां विगत दशकों से काम कर रही है। एक ‘लोक जागरण समिति’ और दूसरा संगठन ‘संवेदना समिति’ है। हमारे सामाजिक कार्यों में से दो का जिक्र किया जा सकता है। यहां चंदौसी में बिजली का संकट रहता है। ज्यादातर घरों में जनरेटर लगे हैं। रात को बिजली जाने पर घरों में तो जनरेटर से काम चल जाता है,सड़क और गलियों में घुप अंधेरा हो जाया करता था। हमने समस्या के समाधान के लिए जन सहयोग के जरिए घरों में जाकर निवेदन किया कि अपने जनरेटर से कनेक्शन देकर 5 वाट का सीएफ बल्ब के साथ जोड़ दें। 5 वाट का बल्ब,कनेक्शन के लिए तार आदि जरूरी सामान और मिस्त्री हमारी समिति के साथ होता था। इसी प्रकार एक समस्या है कि संभल में बंदर काफी अधिक है। चंदौसी कस्बे में कोई 8 से 10 हजार बंदर होंगे। अब बंदरों को मारा भी नहीं जा सकता! पकड़ कर जंगल में छोड़ना ही विकल्प है। नगर पालिका और स्थानीय प्रशासन से बात की गई तो बताया गया यह वन विभाग का काम है। वन विभाग से कहा गया तो ठेकेदार प्रति बंदर 200 रुपए की मांग रहे थे। सौदेबाजी करके 150 रुपए प्रति बंदर पर राजी हो गए। हमने जन सहयोग एकत्र कर इसकी व्यवस्था की। बंदर पकड़ने के लिए जाल और कर्मचारी आदि की व्यवस्था वन विभाग के जरिए हुई। 4200 बंदर पकड़े गए। समस्या का समाधान नहीं हुआ। पता चला बंदर पकड़ के दूर जंगल में छोड़ने की जगह कुछ दूर ले जाकर छोड़ दिए जाते, बंदर लौट आते। इसी प्रकार विभिन्न सामाजिक समस्याओं और सांस्कृतिक आयोजन आदि हमारे संगठन करते हैं।”
प्रश्नः सम्भल में यह ‘मंदिर-मस्जिद’ का क्या मसला है?
सुनील सौरभ : “संभल में यह कोई मसला है ही नहीं। इसे तो क्रिएट किया जा रहा है। शाही जामा मस्जिद 500 साल से है। कभी इसे लेकर किसी प्रकार का दंगा-फसाद नहीं हुआ। किसी को कोई परेशानी नहीं रही है। संभल में अन्य कई मस्जिद हैं और मंदिर भी हैं। मंदिरों में पूजा होती है, मस्जिदों में नमाज। लोग एक दूसरे के धर्म और आस्था का सम्मान करते हैं। ईद की सेवई हिंदू भी प्रेम से खाते हैं, रमजान में इफ्तार की दावत में शरीक होते हैं और होली की गुजिया मुसलमान प्रेम से खाते है, दीपावली में पटाखे ज्यादातर मुस्लिम ही बनाते है। यह कहना गलत है कि मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण हिंदू दबाव में रहते हैं। मुसलमानों की संख्या अधिक जरूर है परंतु ज्यादातर मुसलमान काफी गरीब हैं। सम्भल जिला में मजदूर ज्यादातर मुसलमान हैं या दलित समुदाय से संबंधित है। मुस्लिम बाहुल्य मोहल्लों वे इतने छोटे घरों में वे गुजर कर रहे हैं कि कई जगह पूरे परिवार के लिए सोने की जगह नहीं है। रात देर तक वहां लोग जागते रहते हैं। चाय आदि दुकानों पर बात करते नजर आते हैं। मैं सम्भल के चंदौसी में ही पला-बढ़ा हुआ हूं। यहां 37 साल मोलागंज मोहल्ले में जहा हमारा घर था, मुस्लिम आबादी से सटा था। हमारा तीन मंजिल का मकान था और दीवार से सटा मुस्लिम परिवार का घर था। मुस्लिम और हिंदू मोहल्लों में कभी किसी प्रकार का फसाद नहीं हुआ। सम्भल शहर में मुसलमान लगभग 80 प्रतिशत है। बाजार में दुकान-व्यापार आदि हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के हैं। मुसलमान अगर हिंदुओं की दुकान से सामान नहीं खरीदेंगे तो हिंदुओं की दुकान का माल खरीदेगा कौन! हिंदुओं और मुसलमानों दोनों में कुछ ही लोग हैं, जो कि केवल चुनाव की नजर से कट्टरता फैलाया करते हैं।”
प्रश्नः कहा तो यह जा रहा है कि संभल में 1947 के बाद कई साम्प्रदायिक दंगे हो चुके हैं यह साम्प्रदायिक हिंसा और दंगों के लिए अतिसंवेदनशील और आतंकवाद का गढ़ है?
सुनील सौरभ : “ऐसा कहना एकदम गलत है। 1947 में देश के विभाजन के समय साम्प्रदायिक दंगों की आग में देश झुलस रहा था, संभल में कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। यह रुहेलखंड का क्षेत्र है। यहां की सांस्कृतिक परंपरा गंगा-जमुनी है। शाही जामा मस्जिद को बाबर के द्वारा बनाया बताया जाता है, स्थापत्य विद्वान इसके स्थापत्य को मुगल कालीन की जगह तुर्की स्थापत्य और सल्तनत कालीन बताते हैं।”
प्रश्नः 1976 और 1978 में यहां बड़े दंगे होना बताया जा रहा है?
सुनील सौरभ : “1976 में कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ। शाही जामा मस्जिद में हिंदुत्ववादी संगठन के कुछ लोगों ने शाही जामा मस्जिद में पूजा करने का प्रयास किया था। उन्हें रोक दिया गया। रात में वहां के इमाम मौलाना महमूद हुसैन की हत्या कर दी गई। किसी हिंदू युवक ने यह कांड किया था। विधायक प्रेमचंद की पुस्तक ‘मॉब वायलेंस इन इंडिया’ में और अन्य दस्तावेजों में भी इसका जिक्र है। इस घटना से उत्तेजना उत्पन्न हुई थी, कुछ हिंसात्मक घटनाएं भी हुई। दुकानों के जलाए जाने या लूट जैसी घटना नहीं हुई। यह इमरजेंसी का दौर था। प्रशासन ने सख्ती से स्थिति पर तुरंत काबू पा लिया था।”
प्रश्नः 1978 में दंगे में 184 हिंदुओं के मारे जाने, जिंदा जलाए जाने और 1978 और 1980 के दंगों के बाद संभल नगर में हिंदुओं को संभल छोड़ना पड़ा?
सुनील सौरभ : 1978 में देश और प्रदेश दोनों जगह जनता पार्टी की सरकार थी। जनसंघ (आज भाजपा) केंद्र और उत्तर प्रदेश में सरकार में सम्मिलित थी। प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह, विदेश मंत्री जनसंघ घटक के नेता अटल बिहारी वाजपेयी थे। उत्तर प्रदेश में राम नरेश यादव मुख्यमंत्री थे। गृह विभाग भी उनके ही पास था। वे संभल में दंगों के दौरान दो बार संभल आए थे। जनसंघ के प्रदेश अध्यक्ष रहे राम प्रकाश गुप्ता प्रमुख कैबिनेट मंत्री थे। संभल में 1978 में दंगा हुआ था, दो माह तक कर्फ्यू भी रहा, लेकिन 184 लोग मारे जाने की बात सही नहीं है। होली का माहौल था। ‘महात्मा गांधी मेमोरियल डिग्री कॉलेज’ में दो मुस्लिम छात्राओंं पर छींटाकशी जैसा कुछ मसला था जिसके विरोध से फसाद की शुरुआत हुई थी। कालेज की प्रबंध समिति के उपाध्यक्ष एसडीएम थे। प्रबंध समिति की आजीवन सदस्यता 10 हजार रुपए थी। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र रहे मंजर शफी ने मुस्लिम लीग से संभल से चुनाव लड़ा था। वे ट्रक यूनियन के भी नेता थे। उन्होंने 10 हजार रुपए देकर कालेज की प्रबंध समिति की आजीवन सदस्यता चाही थी। इस पर एसडीएम राजी नहीं थे। इन्हीं विवादों के दौरान मंजर शफी के नेतृत्व में संभल बंद के दौरान कुछ हिंदू दुकानदारों का विरोध उग्र कहा-सुनी और झड़प में बदला । मंजर शरीफ को भागना पड़ा, अफवाह फैल गई कि वह मारा गया, दंगा भड़क उठा। आगजनी में एक घर में एक दर्जन से अधिक लोगों के दंगाइयों द्वारा मारे जाने, आगजनी और कर्फ्यू के दौरान भी छुटपुट हत्याओं का सिलसिला जारी रहा। लेकिन 186 के मारे जाने की बात सही नहीं है। यह भी सही नहीं है कि इस घटना के बाद अचानक हिंदू मोहल्ले से पलायन कर गए थे। धीरे-धीरे दो-तीन दशकों में लोग विभिन्न कारण से गए हैं।”
“1980 में मुरादाबाद में दंगा हुआ था , संभल में नहीं। ईद की नमाज के दौरान किसी ने शरारतन सुअर छोड़ दिया था। पुलिस से कहा गया उसे हटाए, पुलिस ने नहीं हटाया। पुलिस के साथ नमाजियों का विवाद, धक्का-मुक्की के साथ मामला तूल पकड़ गया। पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। मुसलमान काफी संख्या में मारे गए थे। मामला मुसलमान बनाम पुलिस हो गया था। तनाव संभल में भी था। एहतियातन कर्फ्यू लगा। हिंसा या दंगे की कोई घटना यहां नहीं हुई थी।”
प्रश्नः साम्प्रदायिकता नहीं है तो तनाव-दंगों की वजह क्या है?
सुनील सौरभ : “मुख्य समस्या है रोटी-रोजी। असंतोष से ध्यान हटाने के लिए दंगे कराए जाते हैं। दंगाई हिंदू या मुसलमान नहीं होता। उसका कोई धर्म-ईमान नहीं होता। दंगाई सिर्फ दंगाई होता है। दंगे पुलिस और हिंदू और मुस्लिम समुदायों के कट्टरपंथी करते हैं। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के सहयोग, उनकी कर्तव्य विमुखता के बिना कभी कोई दंगा मुमकिन नहीं है।”
प्रश्नः मुख्यमंत्री “विकास और सांस्कृतिक विरासत की बात कह रहे हैं?
सुनील सौरभ : “मुख्यमंत्री या पुलिस अधिकारी भले ही सम्भल को साम्प्रदायिक दंगों के लिए प्रचारित करे, दुनिया इसे मेंथा तेल के लिए और हड्डी सींग की लाजवाब दस्तकारी के लिए जानती है। भारत से यह दोनों उत्पाद यूरोप और विभिन्न देशों के लिए बड़े स्तर पर निर्यात होता है। मेंथा पुदीने की ही एक किस्म होती है। सामान्य तौर पर पुदीना में 40 प्रतिशत तक मेंथाॅल होता है। संभल में मेंथा की खेती काफी रही है। घर-घर इससे तेल निकाला (processing) जाता रहा है। हजारों गरीब मजदूर-किसानों की रोटी-रोजी इससे चला करती थी। भारत और चीन इसके मुख्य निर्यातक रहे हैं, घरों या छोटे उद्योग से मेंथा तेल और उसके उत्पादों को एकत्र कर निर्यातक विदेश में बेचकर अच्छा खासा मुनाफा कमाते रहे हैं। इधर चीन से सिंथेटिक (कृत्रिम मेंथाॅल) बाजार में आने से नयी प्रतियोगिता उत्पन्न हो गई है। सिंथेटिक मेंथाॅल तुलनात्मक रूप से अधिक सस्ता है फिर भी गुणवत्ता में प्राकृतिक मेंथाॅल का मुकाबला नहीं कर सकता। यही स्थिति हड्डी सींग दस्तकारी उद्योग की है। इसका भी हजारों करोड़ का निर्यात है। सरकार को तकनीकी, वित्तीय सहायता और जीएसटी आदि कर में रियायत देकर इन उद्योगों को संरक्षित और विकसित करने की जरूरत है। लेकिन सरकार को तो ‘हिंदू-मुस्लिम’ और ‘मंदिर-मस्जिद’ करने से फुर्सत नहीं है।”
“संभल गाय-भैंस आदि के गोश्त की बिक्री, हड्डी रहित हलाल (Boneless halal) मीट के निर्यात का भी मुख्य केंद्र है। मशहूर है, ‘संभल में कोई भी जानवर आते ही कट जाता है’। इन तीनों ही उद्योगों में एकाधिकार (Monopoly) का विकास, छोटे और घरेलू उद्योगों के बंद होने से हजारों श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं। मीट उद्योग को ही लीजिए। 10 बड़े स्लाटर हाउस थे। ये निर्यातक भी थे। राज्य सरकार की नीति के कारण केवल एक रह गया है। लाइसेंस के नियमों की सख्ती और अनुमति लटकाने का यह नतीजा है, एकमात्र कंपनी ‘इंडिया फ्रोज़ेन फूड्स’ का एकाधिपत्य हो गया है। यह मुस्लिम स्वामित्व कंपनी मोटा चंदा देती है। साल भर पहले ‘कल्कि धाम’ का शिलान्यास करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संभल आए थे, कल्कि महोत्सव के लिए इस मीट व्यवसायी कंपनी का मोटा चंदा ससम्मान स्वीकार किया गया था। इस कंपनी की पूंजी 35 करोड़ रुपए है। इन तीनों उद्योगों में काम करने वाले हजारों गरीब मुसलमान और दलित बेरोजगार हो गए हैं। इसके अलावा दिल्ली से जीन्स का कटा हुआ कपड़ा प्रतिदिन लाया जाता है। घर-घर कारीगरों द्वारा सिलाई के बाद. गाड़ियों में लादकर दिल्ली ले जाया जाता है। दूसरे दिन फिर यह क्रम चलता है। बेरोजगारी के आलम में काफी लोग दिल्ली जाकर, फेरी-ठेला, ई रिक्शा चला कर, सप्ताह-दो सप्ताह में घर लौटकर परिवार का खर्चा चलाते हैं। ये कठोर परिश्रमी हैं, सांप्रदायिक दंगा-फसाद के लिए उनके पास फुर्सत कहां है!”
प्रश्नः संभल तो पश्चिम उत्तर प्रदेश के हरित क्रांति क्षेत्र के अंतर्गत आता है?
सुनील सौरभ : “संभल की लगभग 81 प्रतिशत आबादी ग्रामीण है, जबकि देश में ग्रामीण आबादी 68-69 प्रतिशत है। यहां साक्षरता भी 55 प्रतिशत ही है जबकि देश में साक्षरता 77 प्रतिशत है। यह किसान बहुल क्षेत्र है। हरित क्रांति के बावजूद, आधे से ज्यादा सीमांत कृषक हैं। हरित क्रांति से उत्पादन बढ़ा है, खेती का रकबा अलाभकारी जोत में सिमटा हुआ है। सीमांत और लघु जोत अलाभकारी हैं। आधुनिक कृषि उपकरणों सिंचाई सुविधाएं, हल-बैल की जगह ट्रैक्टर से जुताई-बुआई-कटाई, ट्यूबवेल से सिंचाई आदि संसाधन विकसित हुए हैं, लेकिन लागत और कृषक बेरोजगारी भी बढ़ी है। गन्ना किसानों की मांगे पूरी नहीं होने के कारण वे भी आंदोलित हैं। सम्भल किसान आंदोलन का महत्वपूर्ण इलाका है। एक दिन पहले ही यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला दहन किया गया।”
प्रश्नः आप कह रहे है ‘शाही जामा मस्जिद बनाम हरिहर मंदिर’ मुद्दा है ही नहीं, बनाया जा रहा है और यह 24 नवंबर, 2024 की पुलिस फायरिंग?
सुनील सौरभ : संभल की शाही जामा मस्जिद पांच सौ साल या उससे भी पुरानी है। कभी किसी को परेशानी नहीं हुई, मस्जिद के खिलाफ एक भी आंदोलन नहीं हुआ। अयोध्या में रामलला के मंदिर के बाद हिंदुत्ववादी संगठनों- आरएसएस/भाजपा, संघ परिवार के पास सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए इतना बड़ा मुद्दा नहीं बचा है, नए नैरटिव (Narrative) की तलाश थी। अयोध्या के बाद काशी, मथुरा उनकी योजना का अंग रहे है। हालांकि उनकी तरफ से आश्वस्त किया गया था अयोध्या के बाद वे अन्य मुद्दे नहीं उठाएंगे। इसके बावजूद, काशी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में कृष्ण जन्म स्थली पर ईदगाह शाही मस्जिद मामले उठाए गए, उच्च न्यायालय ने सर्वे का आदेश भी दिया, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने फिलहाल रोका हुआ है। संभल में कल्कि भगवान (कलयुग में विष्णु भगवान) का अवतार होना है, यह कहानी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के एजेंडा को आगे बढ़ाने की दृष्टि से हिंदुत्ववादियों को उपयुक्त नजर आयी। हरियाणा के पानीपत में बाबर की पत्नी की याद में काबुली बाग मस्जिद का मसला भी हरिशंकर जैन और विष्णु जैन की लिस्ट में है। इन पिता-पुत्र का यही काम है, दोनों वकील हैं। किसी मामले में एक वादी बन जाता है तो दूसरा वकील, दूसरे में वह वकील बन जाता है और दूसरा वादी। सम्भल दीवानी अदालत में में 19 नवंबर को एक ही दिन मुकदमा दायर होने, सर्वे का आदेश, सर्वे कमिश्नर की नियुक्ति और प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस दल-बल के साथ मौके पर पहुंच कर उसी शाम सर्वे संपन्न करना, यह सब पूर्व नियोजित था। पहला सर्वे शांतपूर्वक बिना किसी प्रकार की बाधा संपन्न हो गया था। यह नहीं कहा गया था कि सर्वे पूरा नहीं हुआ है। सांसद जियाउर्रहमान बर्क ने 19 नवंबर को शांतिपूर्वक सर्वे होने में पूरी मदद की थी। शुक्रवार को भी नमाज के बाद वे जिस समय मस्जिद की सीढ़ियों पर थे, पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने जो कहा था उसका कुल अर्थ यह था कि मस्जिद है और रहेगी। उनका यह कथन उत्तेजनात्मक नहीं मुसलमानों में व्याप्त आशंका और बेचैनी को शांत करने वाला था। प्रशासन ने यदि शांति से काम लिया होता। एडवोकेट कमिश्नर यदि एक और मरतबा सर्वे की जरूरत महसूस कर रहे थे तो मुस्लिम समुदाय के रहनुमाओं को विश्वास में लेकर आगे बढ़ते तो पुलिस फायरिंग की नौबत नहीं आती।”
जिला संभल एक नजर में
सम्भल जिला पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मंडल में आता है। यह दिल्ली से 158.7 किलोमीटर लखनऊ से 355 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में पड़ता है। इसका प्रशासनिक कार्यालय और मुख्यालय बहजोई, जिला न्यायालय चंदौसी में है। संभल जिले के निकट अमरोहा, मुरादाबाद, रामपुर, बदायूं, अलीगढ़ और बुलंदशहर हैं। जनपद की कुल जनसंख्या 21,99,774 है। संभल जिले मैं हिदू बहुसंख्यक और संभल तहसील में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं।
आगरा और दिल्ली के बीच होने के कारण मध्यकाल से रणनीतिक दृष्टि से संभल की खास अहमियत रही है। यह पृथ्वी राज चौहान की राजधानी था। अफगान और मुगल शासनकाल में भी महत्वपूर्ण रहा है।
सम्भल 2011 तक मुरादाबाद जिले की एक तहसील था। बसपा मुख्यमंत्री बहन मायावती ने जिन तीन नए जिलों की घोषणा की थी, मुरादाबाद से संभल तहसील को अलग करके भीमनगर जिला घोषित किया गया था। सपा की सरकार बनने के बाद इसका नाम बदलकर सम्भल कर दिया गया। इसमें तीन तहसील हैं, संभल, चंदौसी और गुन्नौर। यादव-मुस्लिम बाहुल्य गुन्नौर पहले बदायूं जिले की तहसील थी, यहां से मुलायम सिंह यादव चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बने थे। सपा का शासन आने के बाद जुलाई 2012 में भीमनगर से नाम बदलकर संभल किया गया।
संभल की जनगणना के अनुसार यह मुस्लिम बाहुल्य जिला है। खासतौर पर संभल नगर में लगभग 77 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम है। संभल शहर में कुल मलिन बस्तियों की संख्या 3,853 है, जिनमें 23,347 लोग रहते हैं। यह संभल शहर की कुल आबादी का लगभग 11 प्रतिशत है। लोकसभा क्षेत्र में हिंदू 55 प्रतिशत, मुस्लिम 40 प्रतिशत और दलित 17 प्रतिशत है। यहां लोकसभा में कांग्रेस 1984 के बाद से फिर कभी जीत के नजदीक तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो सकी है। 1989 से लेकर 2004 तक लगातार 6 चुनाव में यादव प्रत्याशी जीतते रहे। इनमें सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह भी यहां से 2 बार चुनाव जीते थे। एक बार उनके भाई राम गोपाल यादव यहां से सांसद रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के दौरान भाजपा के सत्यपाल सिंह सैनी जीते थे।
संभल संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र चंदौसी, कुंदरकी, बिलारी, असमोली और संभल आते हैं। 2022 में 4 सपा विधायक और एक चंदौसी से भाजपा की गुलाब देवी ने जीती है, वे प्रदेश की माध्यमिक शिक्षा मंत्री हैं।
जांच कमेटी का निष्कर्ष
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सम्भल में जिला प्रशासन सिविल जज के सर्वे के आदेश का शांतिपूर्ण अनुपालन में असफल रहा। प्रशासन ने अदूरदर्शिता का परिचय दिया, विषय की संवेदनशीलता को नहीं समझा, जनता को विश्वास में लेने के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया, अत्यधिक पुलिस और अर्द्ध सैन्य बल के जरिए भय और आतंक का सहारा लेने की गलती की।
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सम्भल के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) आदित्य कुमार सिंह ने 19 नवम्बर, 2024 को एकतरफा आदेश में सर्वे के लिए नौ दिन का समय दिया था। इस समय को बढ़ाया भी जा सकता था। मामले में कुछ भी ऐसा नहीं था कि त्वरित अनिवार्यता हो। जिला प्रशासन ने जल्दबाजी की और उसी दिन अधिवक्ता कमिश्नर के नियुक्त होते ही भारी पुलिस बल के साथ सायं 6 बजे सर्वे के लिए मस्जिद पहुंच गए। उसी दिन सर्वे न कराके पहले नागरिकों को विश्वास में लेने के लिए पर्याप्त समय था, जिसका उपयोग नहीं किया गया।
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सर्वे के आदेश के तहत शाही जामा मस्जिद की वीडियोग्राफी, तस्वीर लेना और स्थल निरीक्षण ही किया जाना था। मस्जिद की इमारत के साथ किसी किस्म की छेड़छाड़ या खुदाई का आदेश नहीं था। प्रशासन ने मीडिया का सहयोग लेकर इसे व्यापक प्रचारित करने और जनता को विश्वास में लेने का कोई प्रयत्न नहीं किया।
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दूसरी बार 24 नवंबर,2024 को सर्वे के दौरान हौज से पानी खाली करने का आदेश गलतफहमी और अशांति का कारण बना। एडवोकेट कमिश्नर को सर्वे करना था। जिला प्रशासन का काम सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था तक सीमित रहना चाहिए था। जिला प्रशासन आपस में भी सामंजस्य नहीं रख सका। जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक ने हौज का पानी निकालने की जगह डंडे से गहराई नापने की सलाह दी थी, एसडीएम वंदना मिश्रा की जिद के सामने वे भी खामोश हो गए। असमय हौज खाली कराने और तेज जल प्रवाह से एकत्र लोगों को लगा कि मस्जिद में खुदाई हो रही है। जिला प्रशासन हौज को खाली नहीं कराता तो 24 नवंबर को भी 19 नवंबर की तरह शांतिपूर्ण सर्वे संपन्न हो सकता था।
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नौकरशाही का यह पूर्वाग्रह, “सम्भल सांप्रदायिकता का गढ़ है, यहां दंगों का इतिहास है, कश्मीर की तरह प्रशिक्षित आतंकवादी और पत्थरबाज हैं, संवैधानिक दायित्व का उल्लंघन है। संभल में तेजी से विकसित हो रहे जनविरोधी पुलिस राज की बुनियाद यही मानसिकता है, जिला शासन-प्रशासन का भगवाकरण हो रहा है।
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सम्भल में 24 नवंबर,2024 के बाद, जिला प्रशासन ने आतंक का राज कायम किया हुआ है। मृतक के परिजनों को पुलिस द्वारा धमकाया जा रहा है। लोगों को फर्जी आरोप में गिरफ्तार किया जा रहा है। पुलिस थाने में यातना दी जा रही है। अन्य लोगों का नाम बताने के लिए उनके साथ मारपीट की जा रही है। चोटिलों से जबरन गलत तहरीर लिखने के लिए उन्हें विवश किया जा रहा है। पुलिस का आचरण जनविरोधी, साम्प्रदायिक और आतंकवादी है।
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भाजपा नेताओं और जिला अधिकारियों का यह कहना कि संभल में हिंसा के पीछे मुस्लिम समुदायों की दो जातियों पठान और तुर्क का भी विवाद है, जबकि हकीकत यह है कि पुलिस फायरिंग में मरने वालों में चार श्रमिक मुस्लिम जाति के आधार परा अति पिछड़ी जाति से संबंधित थे। इनमें से अयान भिश्ती, नईम गद्दी, मो. कैफ फकीर और बिलाल अंसारी (जुलाहा) तथा पंचवां नोमान हालांकि पठान था परंतु वह भी गरीब फेरी वाला श्रमिक ही था।
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संभल प्रकरण पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का वक्तव्य तथ्यों के विपरीत, भड़काऊ, उन्मादी और सांप्रदायिकता से ओतप्रोत है। एक वर्ष पहले प्रधानमंत्री का संभल कल्कि धाम का शिलान्यास करना और धर्मांधता की पैरोकारी, व्यापक साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की योजना का अंग नजर आता है।
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सम्भल के तीन प्रमुख निर्यात उद्योग- मेंथाॅल तेल, हड्डी सींग दस्तकारी और मीट उद्योग मंदी के शिकार हैं और बेरोजगारी का आलम है; मजदूरों, किसानों और बेरोजगारों की समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए धर्माधता, अंधविश्वास और साम्प्रदायिकता को हवा दी जा रही है।
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संभल में पुलिस फायरिंग की निष्पक्ष, पारदर्शी जांच की जगह न्यायिक जांच के नाम पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवेंद्र कुमार अरोड़ा (न्यायधीश पद से सेवानिवृत्ति के बाद उत्तर प्रदेश रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण के अध्यक्ष रह चुके) की अध्यक्षता में दो पूर्व नौकरशाह- अमित मोहन प्रसाद (आईएएस), अरविंद कुमार जैन (आईपीएस) को जांच सौंपी गई है, हालांकि सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल याचिका की सुनवाई लंबित थी। सुनवाई के समय न्यायिक जांच की मांग हो और सर्वोच्च न्यायालय कोई निर्णय ले, इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आनन-फानन में नौकरशाहों के वर्चस्व वाले इस तथाकथित न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया है।
पीयूसीएल की मांगेंः-
1- पूजा स्थल अधिनियम, 1991 जिसके अंतर्गत पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप जो कि 15 अगस्त, 1947 के समय था यथावत, रखने की व्यवस्था है, सर्वे के नाम पर शिथिल और अप्रभावी नहीं किया जाए।
सम्भल में पुलिस फायरिंग की जांच की जाए। शांति व्यवस्था रखने में असफल प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ इंक्वायरी की जाए। जांच के दौरान उनका संभल जिले से स्थानांतरण किया जाए।
मृतकों की पोस्टमार्टम और फोरेंसिक रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।
3-गिरफ्तार किशोर युवाओं और चार महिला बंदियों के मामलों का शीघ्र निस्तारण (speedy trial) हो।
4- रोमान की हत्या की रिपोर्ट पुलिस स्वत: संज्ञान पर दर्ज करके मामले की जांच करें।
5- 24 नवंबर को सभी मृतकों और चोटिल को सरकार मुआवजा दे। मृतक के परिवार में से एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दे।
पुलिस हिरासत में यातना, फर्जी मुकदमे में फंसाया जाना,पुलिस द्वारा डराना, धमकाना और अपराध के साक्ष्य बदलने और झूठे बयान देने के लिए विवश करने के मामलों की जांच कर दोषियों को दंडित किया जाए।
6- 24 नवंबर को पुलिस फायरिंग की समयबद्ध, पारदर्शी विश्वसनीय जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश द्वारा की जाए।
7- मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा संभल प्रकरण पर विधानसभा में दिया गया गुमराह करने वाला, तथ्य रहित, भड़काऊ, साम्प्रदायिक और उन्मादी भाषण के लिए मुख्यमंत्री क्षमा मांगें।
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