संभल में पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग की अंतरिम रिपोर्ट, पुलिस का क्या कहना है

संभल में पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग की अंतरिम रिपोर्ट, पुलिस का क्या कहना है

उत्तर प्रदेश, जिला संभल स्थित शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान 24 नवंबर,2024 को पुलिस फ़ायरिंग में अल्पसंख्यक समुदाय के पांच लोगों की मौत हो गई थी। मौके से 21 लोगों और अन्य अनेक लोगों (जांच रिपोर्ट तक 70) की गिरफ्तारियां हुईं।  2750 अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया।

7 से 9 जनवरी के बीच टीडी भास्कर की टीम के नेतृत्व में पीयूसीएल (पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टी) की पांच सदस्यीय टीम ने संभल जाकर सभी पक्षों से मुलाक़ात की। इस अंतरिम रिपोर्ट की दूसरी किश्तः-

पहली किश्तः संभल में पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग की अंतरिम रिपोर्ट, जांच टीम ने क्या पाया? 

जिलाधिकारी राजेंद्र पेंसिया से पीयूसीएल की टीम की मुलाकात नहीं हो पाई। एडीएम ने कहा हालात अब सामान्य है।

पीयूसीएल टीम जिला पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार विश्नोई  से मिली। वे 2018 आईपीएस बैच के हैं। युवा पुलिस कप्तान बिश्नोई ने बताया, “मैं दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज का विद्यार्थी रहा हूं और पीयूसीएल के बारे में जानता हूं, इसकी रिपोर्ट आदि पढ़ता रहा हूं। पीयूसीएल संभल में हुई हिंसा की जांच कर रहे हैं यह अच्छी बात है। यहां आपकी टीम जहां जाना चाहे बेरोक-टोक जा सकती है। किसी प्रकार का कोई प्रतिबंध या रोक नहीं है। हालात नियंत्रण में हैं। मैं आपकी टीम की जांच रिपोर्ट भी पढ़ना चाहूंगा। कृपया सच का पता लगाएं और याद रखें मानवाधिकार अल्पसंख्यकों के ही नहीं, पुलिस के भी होते है।”

‘पेरिस स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल अफेयर्स’ से शिक्षा हासिल कर चुके बिश्नोई कोर्ट-कचहरी की जगह सीधे गोली मारकर अपराध खत्म करने पर ज्यादा विश्वास करते हैं। यह उनके एक बहुचर्चित वीडियो से जाना जा सकता है, जिसमें चोरी के अपराध में पकड़े एक व्यक्ति से वे कह रहे हैं, “अगली बार चोरी करते पाए गए तो सीधे गोली मार दूंगा।”

बिश्नोई 24 नवंबर को पुलिस फ़ायरिंग की वर्तमान घटना के केवल दो माह पहले संभल जिला पुलिस अधीक्षक पद पर पदोन्नत होकर आए हैं। उनसे हुए सवाल जवाबः-

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2025/02/SAMBHAL-SP-BISHNOI.jpg
8 जनवरी 2024 को पीयूसीएल टीम जिला पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार विश्नोई  से मिली।

प्रश्नः संभल में मस्जिद का सर्वे का मामला सांप्रदायिक दृष्टि से कितना संवेदनशील है। सुरक्षा की क्या व्यवस्था थी?

बिश्नोई: 19 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वे के समय स्थानीय पुलिस बल के अतिरिक्त दंगा नियंत्रण बल की दो कंपनियां तैनात की गई थी। दूसरी बार 24 नवंबर को सर्वे शुरू होने के पहले सुबह से ही पीएसी की पांच कंपनियों ने मस्जिद और उसके आस-पास सड़क-गलियों को घेरा हुआ था। कोतवाली और आस-पास के कई थानों की पुलिस तैनात थी। अमरोहा-रामपुर मुरादाबाद सहित 30 थानों से पुलिस बल बुलाया गया था। पूरा शहर, खासकर मुस्लिम इलाके सख्त निगरानी में थे। प्रशासन पूरी तरह सजग और चौकन्ना था कि कोई अप्रिय घटना न हो कि जिले की शांति व्यवस्था पर असर पड़े।

प्रश्नः पहला सर्वे तो शांतिपूर्वक संपन्न हो गया था,  24 नवंबर को दूसरे सर्वे के दौरान पुलिस ने फायरिंग क्यों की?

बिश्नोई: हम सर्वे टीम के साथ मस्जिद पहुंचे। तीन तरफ से मस्जिद तक पहुंचा जा सकता है। मस्जिद के दाहिने तरफ और बाईं तरफ मुस्लिम आबादी और सामने की तरफ हिंदू आबादी अधिक है। खतरा मुस्लिम आबादी की तरफ से था। हमने वहां बाकायदा सुरक्षा बलों को तैनात किया हुआ था, 400 वर्ग मीटर क्षेत्र में यहां अत्यंत घनी आबादी है। यहां गलियों का मकड़जाल है। एक तरफ रोको तो कहीं और से लोग निकल आते हैं।

प्रश्नः पहला सर्वे 19 नवंबर होने के बाद अगले दिन नहीं कराकर दूसरी बार 24 नवंबर तक के अंतराल और अल सुबह सर्वे कराने के कारण?

बिश्नोई: 20 नवंबर को कुंदरकी विधानसभा  के उपचुनाव के लिए मतदान होना था और 23 नवंबर को चुनाव परिणाम घोषित होने थे। इस बीच ‘पीस कमेटी’ की बैठक और 22 नवंबर को जुम्मा था, नमाजियों की सुविधा को ध्यान में रखा गया। 24 नवंबर अल-सुबह से पीएसी और भारी पुलिस की तैनाती के साथ सर्वे के पीछे मंशा अचानक कार्यवाही थी, ताकि भीड़ जमा न हो सके और दिन की नमाज के पहले ही सर्वे की कार्यवाही संपन्न हो जाए।

प्रश्नः तनाव और फायरिंग की नौबत कैसे आ गई?

बिश्नोई: सवेरे 8.30 से 10 बजे तक सर्वे की कार्यवाही चली। तनाव की शुरुआत 9 बजे के बाद होने लगी थी। मस्जिद के पीछे मुस्लिम इलाके से भीड़ जमा हो रही थी। धीरे-धीरे लगभग 5000 हजार लोग जमा हो गए थे। तनाव बढ़ता जा रहा था। 10.30 तक लाउडस्पीकर से ऐलान के बावजूद स्थिति बिगड़ती गई, पथराव की होने लगा, समझाइश के खातिर मस्जिद कमेटी के सदर जफर साहब को भेजा गया।

सुरक्षा के मद्दे नजर उन्हें हेमलेट दिया गया। उनकी अपील के बावजूद भीड़ शांत नहीं हुई, पथराव नहीं थमा, तो एडवोकेट कमिश्नर, वादीगण, जफर साहब सहित सर्वे टीम को सुरक्षाबल की सहायता से निकाला गया। जब टीम हिंदू इलाके में पहुंची उस समय भावुकता में ‘जय श्री राम’ ‘हर हर महादेव’ जैसे नारे अवश्य लगे थे परंतु हिंदू पक्ष से कोई उत्तेजक या उग्र कार्रवाई नहीं हुई थी।

नारे सर्वे टीम के आगमन के दौरान नहीं, लौटने और हिंदू इलाके में पहुंचने के बाद लगे थे।  इधर मस्जिद के पीछे मुस्लिम इलाके से जमा मजमा शांति की अपील के बाद उपद्रवी हो चुका था। लाठीचार्ज से भी काबू में नहीं आ रहा था। सुरक्षा बल पर पथराव किया जा रहा था। स्थिति को काबू में करने के लिए आंसू गैस का प्रयोग किया गया।

मजमे में उकसाने वालों में कश्मीर के पत्थरबाजों की तरह प्रशिक्षित पत्थरबाज थे। आंसू गैस का गोला गिरते ही ये उपद्रवी उसे उठाकर वापस सुरक्षाबलों पर फेंक रहे थे। उपद्रवियों ने गाड़ियां जलाना, आगजनी और फायरिंग करना शुरू कर दिया था। उन्होंने वहां लगे सीसीटीवी कैमरे तोड़े कि शिनाख्त नहीं हो सके। घरों आदि में जो सीसीटीवी कैमरे थे, उनके फुटेज निकाल दिए गए।

यह कहना गलत है कि पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों को तोड़ा था ताकि सुरक्षबों की अनियमितता नजर नहीं आए। सुरक्षाबलों पर उपद्रवियों द्वारा हो रही फायरिंग के दौरान दो दर्जन सुरक्षा कर्मी चोटिल हुए एक के तो माथे पर पत्थर लगने से गंभीर चोट आयी है। वह एक माह मेरठ अस्पताल में भर्ती रहा है। अभी तक छुट्टी पर है। मेरे पैर में भी 12 बोर के तमंचे से फायर के कारण छर्रे लगे हैं।

सीओ संभल भी चोटिल हुए हैं। लाठीचार्ज और आंसू गैस के प्रयोग के बाद उपद्रव पर काबू पाने के खातिर सुरक्षाबलों ने भीड़ को तितर-बितर करने के खातिर फायरिंग की लेकिन पुलिस की गोली से किसी की मौत नहीं हुई है। पब्लिक के बीच से उपद्रवियों द्वारा दागी गई गोलियों से चार लोग मरे हैं।

चार मृतक हमारी जानकारी में हैं, इनमें से दो की मृत्यु संभल में और दो इलाज के दौरान मुरादाबाद अस्पताल में हुई है। चारों का पोस्ट पोस्टमार्टम हो चुका है। रिपोर्ट केवल मृतकों के परिजनों को ही दी जाएगी किस अग्नेयास्त्र (Firearm) से गोली चली थी, किस बोर का कारतूस था आदि विवरण वैज्ञानिक परीक्षण की रिपोर्ट (Forensic Report) मालूम होगा। एक मामले में 315 बोर से फायर की जानकारी है।

प्रश्नः फायरिंग के दौरान मरने वाले चार नहीं पांच थे। पांचवा फेरी लगाकर बेबी गारमेंट बेचने वाला रोमन नामक एक गरीब था। समाचार पत्रों और मीडिया में भी इसका जिक्र है। पीयूसीएल टीम ने भी मृतक के परिजनों से मिलकर जानकारी की है। पता चला है पुलिस उसके घर दो बार जा चुकी है। मृतक की मृत्यु पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज नहीं  उसके शव का पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ है?

बिश्नोई : इस बारे में हमें ऐसी कोई जानकारी नहीं है। जब घर वाले ही नहीं बता रहे हैं. पुलिस क्या कर सकती है। जरूरी नहीं पुलिस फायरिंग या उपद्रव के दौरान ही उसकी मौत हुई हो। यह भी हो सकता है किसी अदावत या रंजिश की वजह से हत्या हुई हो।

प्रश्नः इस स्थिति में भी क्या मामला दर्ज कर तफ्तीश करना जरूरी नहीं है?

बिश्नोई:  कोई शिकायत या रिपोर्ट की जाएगी, तब पुलिस जरूर एक्शन लेगी।

प्रश्नः हमारी टीम चोटिल पुलिस कर्मियों से मिलना और उनके बयान दर्ज करना चाहती है, चोटिल पुलिस कर्मियों को क्या सरकार से मुआवजा मिल रहा है?

बिश्नोई:  चोटिल पुलिस कर्मियों से मिलने और बयान लेने पर हमने रोका हुआ है। आप चाहें तो सीओ संभल से मिल सकते हैं, वे भी चोटिल हुए हैं।…हमारा बीमा होता है। सरकार से मुआवजे का कोई विषय नहीं है, हम पुलिस के लोग राष्ट्र के लिए काम करते हैं, मुआवजे के लिए नहीं।

प्रश्नः जनता में से मृतकों के लिए राजनीतिक दल और अन्य संगठनों ने आर्थिक सहायता की है, सरकार की क्या कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? आप की नजर में  क्या मृतक अपराधी थे?  मरने वाले कठिन मेहनत मजदूरी से अपना और परिवार पेट भरने वाले गरीब थे, उनका किसी का भी कोई आपराधिक इतिहास नहीं था एक नागरिक के नाते उनकी जान की हिफाजत क्या पुलिस का दायित्व नहीं है?

बिश्नोई: उनकी मौत जांच का विषय है। इतना तो जाहिर है, लगातार ऐलान किया जा रहा है, पथराव, आंसू गैस  और फायरिंग हो रही है। इसके बावजूद कोई विधिविरुद्ध जमाव (Illegal assembly) का हिस्सा है, अपराधी हैं।

प्रश्नः आपकी नजर में यह साम्प्रदायिक दंगा था या पुलिस और प्रतिरोध में जमा (Protesters) के बीच संघर्ष?

बिश्नोई:  इसे साम्प्रदायिक दंगा बनने नहीं दिया गया। हमारी सफलता यही है। एक भी हिंदू नहीं मारा गया, किसी का घर, दुकान नहीं जली। यह जन प्रतिरोध नहीं था। हिंसक मुस्लिम भीड़ के मकसद को कामयाब नहीं होने दिया गया था।

प्रश्नः मतलब यह पुलिस प्रशासन और मुस्लिम प्रदर्शनकारियों (Protesters) के बीच संघर्ष था?

बिश्नोई: रेडिकल मुस्लिमों की साजिश थी। प्रशासन ने इस साजिश को नाकामयाब किया है।

प्रश्नः हमारी टीम ने जनता के सभी समुदायों के मध्य विस्तृत जांच-पड़ताल की है। आम लोगों का कहना है संभल में हिंदू-मुस्लिम समुदाय परस्पर मेल-मिलाप से रहते हैं, किसी प्रकार का साम्प्रदायिक तनाव नहीं है?

बिश्नोई: हिंदू भय की वजह से कुछ कहेगा नहीं और मुसलमान तो यही कहेंगे। अगर आप सच जानना चाहते हैं तो संभल के इतिहास को जानने की जरूरत है। यह साम्प्रदायिकता का गढ़ और माफियाओं व आतंकवादियों (Terrorists) का हब है। यहां बड़े गिरोह हैं, जो दिल्ली-एनसीआर से गाड़ियां चोरी करते हैं और उन्हें बर्मा के बॉर्डर पर बेच कर बड़ी संख्या में नाजायज हथियार लाते हैं, देश भर में आतंकवाद और अपराध के लिए सप्लाई करते हैं। यहां अल कायदा से जुड़े आतंकवादी सक्रिय हैं। अलकायदा से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय स्तर का आतंकवादी आसीम उमर संभल का ही था।

संभल आजादी के बाद से ही साम्प्रदायिक हिंसा और दंगों के लिए एक अति संवेदनशील क्षेत्र रहा है। यहां दंगों में 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। 1976 में दंगा हुआ, 1978 का सांप्रदायिक दंगा सबसे अधिक Bloodiest (खून-खराबे वाला) था। इसमें मुख्य भूमिका मुस्लिम कट्टरपंथी (Fundamentalist) गैंगस्टर मंजर बेग की थी।

इस दंगे में मुरारी लाल गोयल की फड़ पर एक हिंसक भीड़ द्वारा लगभग दो दर्जन लोगों की हत्या करके जिंदा जलाया गया था। इनमें से एक बनवारी लाल ‘मामा’ भी थे। उस समय फरहत अली जिलाधिकारी थे। संभल में 1997 सहित अब तक 16 दंगे हो चुके हैं। अगर उस समय सही तरीके से कार्रवाई की गई होती तो आज यह नौबत नहीं आती।

प्रश्नः संभल में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर अधिनियम (CAA & NRC) के विरोध प्रदर्शन के दौरान भी पुलिस दमन और हिंसा  हुई थी?

बिश्नोई: दिसंबर 2019 में यहां भी नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का विरोध हिंसक हो गया था। पुलिस पर पथराव किया था। उपद्रवियों ने बस, बाइक आदि जलाई थी। दो मुकदमों में गिरफ्तार 43 लोगों के खिलाफ चार्ज दाखिल किया गया था। सभी की जमानत हो गई थी। मौजूदा मामले के साथ उसका सीधा संबंध नहीं है।

प्रश्नः शाही जामा मस्जिद के ठीक सामने पुलिस चौकी बनाना जबकि सरथल पुलिस थाना निकट है, पैदल चंद मिनट का फासला है?

बिश्नोई: सुरक्षा के नजरिए से यह आवश्यक समझा गया है।

प्रश्नः शाही जामा मस्जिद के ठीक सामने 300 वर्ग मीटर के दायरे में सत्यव्रत नाम से बन रही यह पुलिस चौकी वक्फ की भूमि पर बलपूर्वक कब्जा करके बनाई जा रही है?

बिश्नोई: वह वक्फ की जमीन नहीं है। सरकारी जमीन है।

प्रश्नः कहा जा रहा है कि यह वक्फ की ज़मीन है, इसके दस्वाजों में चर्चा है। कोई अब्दुल समद का परिवार उसकी देखभाल किया करता रहा है। उस परिवार ने यहां पुलिस चौकी बनाने का विरोध किया है। प्रशासन उस पर दबाव डाल रहा है?

बिश्नोई: यह भूमि नगर पालिका के अंतर्गत दर्ज है। शासन के दबाव की बात गलत है। समद परिवार के वारिस मोहम्मद सलीम ने आज (8 जनवरी), कुछ देर पहले ही हलफनामा दिया है, जिसमें कहा गया है कि संबंधित भूमि का स्वामित्व उनका नहीं है, परिवार केवल देखभाल किया करता था। अब जब कहा जा रहा है कि यह सरकार की ज़मीन है तो देखभाल भी छोड़ दी है।

प्रश्नः संभल की शाही जामा मस्जिद को हरिहर मंदिर बताया जा रहा है। सारा झगड़ा इस पर है। सर्वे भी इसी दावे के आधार पर हुआ। आपका क्या कहना है?

बिश्नोई: कहने से क्या होता है। मंदिर कह देने से यह मंदिर नहीं हो जाएगा और मस्जिद कहने से मस्जिद नहीं। तथ्य यह है कि वह इमारत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) संरक्षित स्मारक है। उसका बोर्ड भी वहां लगा है। इसके बावजूद एएसआई तक का एक्सेस नहीं है। मस्जिद कमेटी कहीं भी पंजीकृत नहीं है, वक्फ बोर्ड में भी नहीं। इधर पंद्रह दिन में कहीं पंजीकृत कराई गई हो तो मैं नहीं कह सकता।

(शेष अगली किश्त में…)

https://i0.wp.com/www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/04/Line.jpg?resize=735%2C5&ssl=1

https://i0.wp.com/www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/04/Line.jpg?resize=735%2C5&ssl=1

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें

Workers Unity Team

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.