संभल में पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग की अंतरिम रिपोर्ट, जांच टीम ने क्या पाया?

उत्तर प्रदेश, जिला संभल स्थित शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान 24 नवंबर,2024 को पुलिस फायरिंग में अल्पसंख्यक समुदाय के पांच लोगों की मौत हो गई थी। मौके से 21 लोगों और अन्य अनेक लोगों (जांच रिपोर्ट तक 70) की गिरफ्तारियां हुईं। 2750 अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया।
7 से 9 जनवरी के बीच टीडी भास्कर की टीम के नेतृत्व में पीयूसीएल (पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टी) की पांच सदस्यीय टीम ने संभल जाकर सभी पक्षों से मुलाक़ात की। उसके बाद तैयार की गई अंतरिम रिपोर्ट को यहां किश्तों में दिया जा रहा हैः-
जांच टीम ने शाही जामा मस्जिद और पुलिस द्वारा फायरिंग स्थल का मुआयना किया। शाही जामा मस्जिद के निकट गलियों में जाकर आम जनता, चंदौसी न्यायालय परिसर में और जनता से जानकारी ली, मुकदमा विष्णु शंकर जैन बनाम यूनियन आफ इंडिया के वादी पक्ष- हरि शंकर जैन (वादी) और प्रतिवादी पक्ष से शाही जामा मस्जिद सदर- एडवोकेट जफर अली, पुलिस अधीक्षक सम्भल कृष्ण कुमार बिश्नोई, मृतकों के परिजन, जेल में बंद नाबालिग युवकों के परिजनों, आम नागरिकों सहित व्यापक पूछताछ की।
जांच टीम ने पाया सम्भल में आम हिंदू और मुस्लिम समाज में किसी प्रकार के द्वेष, तनाव या वैमनस्य जैसी कोई स्थिति नही है। मुस्लिम मोहल्लों की गरीब जनता में पुलिस की दहशत है, आशंका है पुलिस द्वारा कभी भी किसी भी निर्दोष को गिरफ्तार करके थाने में अत्यधिक मार-पीट की जा सकती है और मुकदमे में फर्जी फंसा कर जेल भेजा जा सकता है। पुलिस के भय और खौफ से कई लोगों ने नाम न बताने की शर्त पर अपनी बात बताई।
संभल से समाजवादी पार्टी से सांसद जियाउर्रहमान बर्क और विधायक नवाब इकबाल अहमद और उनके पुत्र सुहेल पर भी ‘दंगा भड़काने’ के आरोप में मुकदमा दर्ज है। उनके फोन सर्विलांस में होना बताया गया है। कई बार प्रयास के बाद भी श्री बर्क और नवाब इकबाल अहमद से फोन पर भी संपर्क नहीं हो पाया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख संगठकों में से हरिशंकर गर्ग से भी कई बार संपर्क का प्रयास किया, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष और पश्चिम संभाग के प्रभारी श्री राजेश सिंघल से फोन पर विस्तृत वार्ता हुई।

जांच टीम ने कई अन्य प्रतिष्ठित नागरिक श्रमिक समन्वय समिति के सदस्य रहे श्री भगवान दास, सामाजिक कार्यकर्ता सुनील सौरभ, बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष श्री सघीर सैफी, एडवोकेट मो.यू.अली के अतिरिक्त सम्भल निवासी राज्यसभा के सदस्य श्री जावेद अली खान को मिलाकर कुल 18 लोगों के बयान दर्ज किए हैं और शाही जामा मस्जिद, घटनास्थल का मुआयना और शहर की गलियों में घूम कर आम जनता, दुकानदारों आदि सहित व्यापक लोगों से पूछताछ की है।
24 नवंबर को पुलिस फायरिंग में समुदाय विशेष से संबंधित पांच व्यक्ति मारे गए हैं, इस मामले में छह दर्जन से अधिक समुदाय विशेष के व्यक्ति संगीन अपराधों के आरोप में जेल में बंद हैं, अन्य सैकड़ों व्यक्ति अज्ञात में दर्ज हैं। मृतकों में 1. अयान, 19 वर्ष, पुत्र श्री हनीफ निवासी मोहल्ला कोटगर्वी मौलवी साहब की मस्जिद, संभल, 2. नईम, 35 वर्ष, पुत्र दूल्हा रईश, निवासी मोहल्ला कोटगर्वी, इमामबाड़ा वाली गली, संभल 3. मोहम्मद सैफ उर्फ कैफ, 17 वर्ष, पुत्र मोहम्मद हुसैन, निवासी तुर्तीपुरा, संभल 4. बिलाल अंसारी ऊर्फ वसीम आयु लगभग 22 वर्ष, पुत्र श्री मोहम्मद हनीफ निवासी मोहल्ला सरायतरीन, संभल, और 5. रोमान खान आयु 45 वर्ष, पुत्र छोटे खान, निवासी मोहल्ला पठान वाला हयातनगर, संभल थे।
डीआईजी मुनिराज, संभल जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक और एसडीएम के चोटिल होने, पुलिस अधीक्षक के जनसंपर्क अधिकारी के पैर में छर्रों की चोट,डिप्टी कलेक्टर के पैर में फ्रैक्चर और सीओ पर पथराव, एक सिपाही के सिर में गंभीर चोट का समाचार है, जिनसे मिलने का प्रयास किया। पुलिस अधीक्षक ने बताया पुलिस कर्मियों से मिलने और उनका बयान लेने पर पुलिस प्रशासन की ओर से रोक है।
फैक्ट फाईंडिंग टीम ने इस घटना में पांचों मृतकों के परिजनों से मुलाकात की। सभी का कथन है कि पुलिस फायरिंग के दौरान मृतकों को गोली लगी थी। पुलिस-प्रशासन 24 नवंबर की घटना के दौरान केवल चार व्यक्तियों की मौत मान रहा है, रोमान खान की मौत कबूल नहीं कर रहा है।
हालांकि सभी समाचार पत्रों में फायरिंग के दौरान रोमान खान की मृत्यु के समाचार छपे हैं। ‘जमीयत उलेमा ए हिंद’ और समाजवादी पार्टी की तरफ से चार मृतकों के साथ रोमान के परिजनों को भी 5 लाख रुपए का चेक मदद में दिया गया है।
संभल पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार विश्नोई ने रोमान के बारे में बताया, “पुलिस ने रोमान के परिवार वालों से पूछताछ की थी परंतु उन्होंने किसी प्रकार की शिकायत दर्ज करने से इंकार किया है, अगर कोई शिकायत दर्ज कराता है तो हम जांच करने के लिए तैयार हैं; पुलिस ने केवल चार की ही लाश बरामद की है और उनका पोस्टमार्टम हो चुका है, चारों की मौत गोली लगने (Firearm Injury) से हुई है, लेकिन पुलिस फायरिंग में एक भी व्यक्ति नहीं मरा है।, फोरेंसिक जांच की रिपोर्ट नहीं आई है।” उत्तर प्रदेश सरकार ने 28 नवंबर को एक आदेश जारी कर संभल में 24 नवंबर की घटना के लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति द्वारा जांच घोषित की है।

मृतक के परिजनों के बयान
जांच दल ने सबसे पहले मृतकों के परिजनों से मिलकर घटना के बारे में पूछताछ की जो निम्नलिखित है-
अयान
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मृतक अयान, 19 वर्ष, पुत्र श्री हनीफ निवासी मोहल्ला कोटगर्वी मौलवी साहब की मस्जिद, संभल।
मृतक अयान पिछड़ी जाति (भिश्ती) से संबंधित, एक ढाबे में काम करने वाले एक गरीब श्रमिक युवक थे। मृतक अयान की विधवा अम्मी नफीस ने बताया, “अयान मोहल्ला चौधरी सराय में ‘शान-ए-दरबार’ नामक एक छोटे से होटल में वेटर था। वह रोज की तरह 24 नवंबर को घर से सवेरे करीब 8:30 बजे काम के लिए निकला।”
“आधे घंटे के बाद, मालूम हुआ कि उसे पुलिस फायरिंग के दौरान गोली लग गई है, कुछ लोग उसे अस्पताल ले गए हैं। हम लोग अस्पताल पहुंचे तो देखा वह खून से लथपथ है। अयान ने बताया था कि पुलिस ने ही उस पर गोली चलाई थी। नफीसा ने कहा बेटे की मौत के बाद हम और हमारे आस-पास पड़ोसी और मोहल्ले वाले काफी डरे हुए हैं।”
“पुलिस अक्सर आती है, दबाव डालकर बयान ले रही है और निर्दोषों को पकड़ने की धमकी देती रहती है। गिरफ्तारी के डर से अयान के भाई और मोहल्ले के कई नौजवान और दूसरे कई लोग संभल के बाहर दूसरे शहरों में चले गए हैं। मोहल्ले में मेरी तरह और भी विधवा और उनकी बेसहारा बीवियां हैं, जो बेहद कठिनाइयां भुगत रही हैं। इसी डर और चिंता के कारण एक महिला की मौत भी हो गई है, उसे अचानक दिल का दौरा पड़ा था।”
नफीसा ने बताया, “अयान किसी बड़े होटल में शेफ बनना चाहता था। आस-पास पड़ोस में या अन्य किसी के साथ उसका कभी कोई झगड़ा नहीं रहा है।” जब पूछा गया कि वे अब क्या चाहती हैं? तो वे फूट-फूट कर रोने लगीं और बोलीं, “सब झगड़े खत्म हो जाएं, शांति वापस आ जाए, सब सुख से रहें। संभल में फिर से पुराने अच्छे दिन लौट आएं”।
नफीसा का बेटा व अयान का बड़ा भाई मोहम्मद कामील ने बताया, “सरकार ने कोई मुआवजा नहीं दिया है। समाजवादी पार्टी और जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से 5-5 लाख रुपए का सहयोग मिला है।
नईम
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नईम, 35 वर्ष, पुत्र रईश दूल्हा, निवासी मोहल्ला कोटगर्वी, इमामबाड़ा वाली गली, संभल।
मृतक नईम के भाई तसलीम ने बताया, “नईम एक दुकान किराए पर लेकर मिठाई बना कर आजीविका चलाते थे।”
नईम के भाई ने बताया, “घटना वाले दिन नईम सुबह रिफाइंड तेल का डिब्बा लेने जनरल स्टोर गए थे। उसका घर जामा मस्जिद से 500 मीटर दूर है। जामा मस्जिद की तरफ से भागकर आ रहे लोगों ने बताया कि नईम भाई को पुलिस ने गोली मार दी है। घायल नईम को वह (तसलीम) नजदीक के ‘शरवंजा अस्पताल’ ले गया। डॉक्टरों ने बताया कि वह मर चुका है परंतु हमें तसल्ली नहीं हुई।”
“उसे डॉ. वसीम की क्लीनिक में ले गये। नईम सचमुच मर चुका था। पुलिस उसे पहले सरकारी अस्पताल ले गई। वहां से लाश का पोस्टमार्टम कराने के लिए जिला मुख्यालय बहजोई ले गई। रात 11 बजे पोस्टमार्टम हुआ। कब्रिस्तान तक हम सब पुलिस की सख्त निगरानी में रहे।”
तसलीम ने कहा, “पुलिस ने हम लोगों को धमकाते हुए कहा था कि अपनी तरफ से कहीं कोई बयान नहीं देना। लेकिन हमें पूरा यकीन है कि गोली पुलिस ने ही चलाई थी। पुलिस जामा मस्जिद के करीब 400 मीटर की दूरी से गोली चला रही थी। पुलिस ने हमें बाद में भी थाने पर बुलाया था, हम नहीं गए।”
नईम की मां इदरीसा की आयु लगभग 50 साल है। उसने बताया, “मेरे बेटे को गोली लगी थी। हम बहुत कुछ झेल रहे हैं। नईम के चार छोटे-छोटे मासूम बच्चे हैं। वह ही अकेला कमाने वाला था। हम बहुत गरीब हैं। बमुश्किल दो समय की रोटी का इंतजाम हो पाता है। अब हम कैसे जिएंगे? हमारे पास मुकदमा लड़ने के लिए पैसे नहीं हैं। हम न्याय के बारे में कैसे सोच सकते हैं?”

मोहम्मद कैफ
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मोहम्मद सैफ उर्फ कैफ, 17 वर्ष, पुत्र मोहम्मद हुसैन, निवासी तुर्तीपुरा, संभल।
मृतक मोहम्मद कैफ मुस्लिम अल्वी (फकीर) समुदाय से थे। उसकी दादी अख्तरी, लगभग 80 बरस की बुजुर्ग महिला हैं। वे धुंधली होती आंखों से मुश्किल से देख पाती है। पोते कैफ का जिक्र आते ही आंखे भर आयीं, गला रुंध गया। उन्होंने बताया, “उस दिन (24 नवंबर) कैफ रोज की तरह बाजार में खिलौने खरीदने गया था। फिर नहीं लौटा”
मृतक कैफ के चाचा मारूफ ने बताया,”कैफ इतवार के बाजार में सड़क पर फड़ लगाकर प्लास्टिक के खिलौने बेचा करता था। घटना के दिन वह थोक मार्केट में दुकान से खिलौने खरीदने के लिए गया था (24 नवंबर इतवार का दिन था) उसकी मौत सीने पर गोली लगने से हुई थी। लाश मस्जिद के पीछे बाजार की ओर जाने वाली सीढ़ियों पर मिली थी। कैफ की लाश के चेहरे पर नकाब था। कैफ को अपराधी जाहिर करने के लिए पुलिस ने ही उसे नकाब पहनाया होगा।”
मृतक मोहम्मद कैफ की मां अनीशा बेगम ने कहा,”जिसने भी मेरे बच्चे को मारा है, उसे सजा मिलनी चाहिए। पुलिस ने ही मेरे मासूम बेटे को मारा है।” यह कहते हुए वे फूट-फूट कर रोने लगी और बोली, “चाहें लाठी मार देते लेकिन जिंदा छोड़ देते, मारते तो नहीं।”
मृतक मोहम्मद कैफ की मां चार भाई-बहन हैं, परिवार अत्यधिक गरीब है। पीयूसीएल की टीम कैफ के घर पहुंची उस समय बारिश हो रही थी। जनवरी की कड़कड़ाती ठंड से बचने के लिए परिवार ने पड़ोसियों की दीवार के सहारे बांस,पन्नी और टीन की चादर डा; रखी है, परिवार को सिर छुपाने का यही सहारा है। खुद की दीवार और छत तक नहीं है।
मुसलमानों के दो समुदाय तुर्क-पठानों के बीच विवाद में गोली चलाने या हिंदू-मुसलमानों में तनाव की तमाम चर्चाओं से इनकार करते हुए मारूफ ने कहा,”यहां हिंदू और मुसलमान दोनों समुदायों के बीच कोई दुश्मनी नहीं है। सब कुछ पुलिस का ही किया-धरा है। पुलिस मीडिया के साथ मिलकर तुर्क-पठानों के बारे में गलत अफवाह फैला रही है।”
बिलाल
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मृतक बिलाल अंसारी ऊर्फ वसीम आयु लगभग 22 वर्ष, पुत्र श्री मोहम्मद हनीफ निवासी मोहल्ला सरायतरीन, थाना हयात नगर, संभल।
मृतक बिलाल अंसारी के भाई सलमान ने बताया, ” बिलाल अंसारी मस्जिद के पीछे (घटना स्थल के पास) बाजार में रेडीमेड कपड़े की दुकान में कपड़े बेचा करता था। सुबह करीब 10:30 बजे एक अज्ञात व्यक्ति ने फोन किया कि बिलाल को गोली लग गई है और वह ‘हसीना बेगम अस्पताल’ में भर्ती है। हम वहां पहुंचे, बिलाल को सीने में गोली लगी थी।”
“अस्पताल में डाक्टरों ने उसे मुरादाबाद के अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। मुरादाबाद जाते समय एंबुलेंस में बिलाल ने बताया था कि जिस समय मस्जिद में हंगामा,पत्थरबाजी और पुलिस फायरिंग हुई उस दौरान ही उसे पुलिस की गोली लगी है। सम्भल में ‘हसीना बेगम अस्पताल’ में उसका कोई इलाज नहीं किया गया।”
“अगले दिन(25 नवंबर) को हमने पुलिस अधिकारियों को लिखित शिकायत में कहा था कि मरने से पहले बिलाल ने एंबुलेंस में बताया था कि हंगामे के दौरान पुलिस ने गोली चलाई थी। पुलिस की गोली उसे लगी थी। मुकदमा दर्ज करने की भी दरख्वास्त की थी।”
“पुलिस ने हमारी रिपोर्ट दर्ज करने की जगह उलटा धमकाया। हमारी दरख्वास्त में से पुलिस द्वारा फायरिंग और पुलिस की गोली से मौत की बात हटाने के लिए कहा। फिर पुलिस ने खुद शिकायत लिखवाई और उस पर जबरदस्ती मेरे हस्ताक्षर करवाए। यह भी कहा, ‘अगर हम नहीं माने तो हमें भी किसी फर्जी मामले में फंसा दिया जाएगा। हमारे परिवार की महिलाओं को महिला गार्ड पकड़ कर थाने ले जाएगी।”
सलमान ने कहा, “घटना के वीडियो में भी साफ नजर आ रहा है कि पुलिस गोली चला रही है।” सलमान ने बताया,“हम 4 भाई 2 बहन हैंं। समाजवादी पार्टी ने 5 लाख और जमीयत ने 5 लाख रुपए इम्दाद (आर्थिक मदद में दिए हैं।” सलमान ने कहा, “हमें इंसाफ और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए।”
रोमान खान
5. रोमान खान आयु 45 वर्ष, पुत्र छोटे खान, निवासी मोहल्ला पठान वाला हयातनगर, संभल।
मृतक रोमान खान के पुत्र अदनान ने बताया, “वालिद साहब साइकल पर बच्चों के कपड़े (रेडीमेड गारमेंट) फेरी लगा कर बेचा करते थे। रोजाना की तरह वे 24 नवंबर सुबह करीब आठ-साढ़े आठ बजे घर से फेरी पर निकले थे। वे बाजार में थोक की दुकान से कपड़े खरीद कर सड़कों पर घूम-घूम कर बेचा करते थे।”
“हमारे नाना यासीन के जरिए वालिद के मारे जाने की सूचना मिली थी। (यासीन रोमान के ससुर हैं)। वालिद की मौत गोली लगने से हुई थी। काफी देर तक उनकी लाश सड़क पर पड़ी रही। शिनाख्त होने पर मौजूद लोगों ने हमारी ननिहाल नखासा में उन्हें पहुंचाया।” (मृतक के घर से वहां का फसला लगभग 5 किलोमीटर है।
अदनान ने कहा, “हम लगभग 12 बजे पहुंचे, देखा उनके माथे और सिर पर चोट के निशान थे। चोट और नाक से खून बह रहा था। गोली सीने पर लगी थी। उनकी साइकिल, जिस पर वे कपड़े बांध कर बेचा करते थे, कपड़ों की गठरी, कुछ भी नहीं था। यहां तक वे जो शर्ट पहने थे वह भी बदन पर नहीं थी।”
“हमारा पूरा परिवार बेहद दुखी था और डर भी गया था। इसलिए हमने पुलिस में कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई, क्योंकि पुलिस ने ही उनकी हत्या की थी। वे पुलिस की गोली से ही मरे थे। पुलिस ने उनकी मौत तक दर्ज नहीं की है, पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ है। शाम 6 बजे हमने कब्रिस्तान ले जाकर उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया।”
“पहली बार देर रात (24 नवंबर) और दूसरे दिन दूसरी बार, पुलिस घर आयी थी; पूछताछ की और परिवार के सदस्यों का ब्यौरा लिया। परिवार ने पुलिस से अपनी बात कहने का साहस नहीं जुटा पाया। जिन्होंने मारा है उनसे कुछ कहने से नुकसान के अलावा क्या होना था? हमें डर था कुछ कहेंगे तो परिवार के बाकी सदस्य परेशानी में पड़ सकते हैं।” अदनान ने कहा, “हमें न्याय मिलना चाहिए। वालिद के हत्यारों को सजा मिलनी चाहिए।”

जेल में बंद आरोपित के परिजनों के कथन
जेल में बंद कुछ आरोपितों के परिजनों से पीयूसीएल की जांच टीम ने मुलाकात करके जानकारी प्राप्त की। इनमें मोहम्मद हुसैन, अमन और जैद तीनों नाबालिग हैं। तीनों मुरादाबाद जेल की बच्चा बेरक में हैं। सम्भल में कोई जेल नहीं है। यह पहले मुरादाबाद जिले की एक तहसील था।
2011 में जिला बना गया था लेकिन जेल आज भी मुरादाबाद में ही है। अन्य के साथ ये तीनों नाबालिग भी मुरादाबाद की बच्चा बेरक में बंद हैं। तीनौं एक ही मोहल्ले के रहने वाले हैं। पुलिस ने तीनों को अलग-अलग गिरफ्तार करके गैर कानूनी रूप से तीन दिन हिरासत में रखने के बाद, उनका चालान किया।
कानून के अनुसार गिरफ्तारी के तुरंत बाद, अधिकतम 24 घंटे पुलिस गिरफ्तार व्यक्ति को हिरासत में अवरुद्ध रखा जा सकता है।
मोहम्मद हुसैन (आयु 15 वर्ष) निवासी मोहल्ला महमूद सराय, संभल।
मोहम्मद हुसैन की अम्मी शबनम बेगम ने बताया, “हुसैन जामा मस्जिद के पास जूनियर सरकारी स्कूल की कक्षा आठ का विद्यार्थी है। 24 नवम्बर (2024) सवेरे मैंने उसे सब्जी लेने के लिए भेजा था। पुलिस लाठीचार्ज और फायरिंग से माहौल में अफरा-तफरी होने लगी तब घबरा कर उसे ढूंढा गया तो पता चला पुलिस ने उसे पकड़ लिया है और मारपीट कर थाने ले जाकर बंद कर दिया।”
“दरियाफ्त करने पर पहले तो पुलिस ने साफ इनकार कर दिया कि थाने में नहीं है। लिकिन हमने उसे कोतवाली में देख लिया था, फिर भी पुलिस ने मिलने नहीं दिया। तीसरे दिन, 26 नवंबर को जब चालान जा रहा था, उस समय भी 750 रुपए लेकर हुसैन से मिलने दिया। वे मांग तो एक हजार रूपए थे परंतु हम 750 ही दे सके। पुलिस ने कहा ‘अब तुम कोई वकील कर लो’।”
“हुसैन को पुलिस ने डंडे से काफी पीटा था। उसके सिर पर चोट थी, जिस पर पट्टी बंधी थी, डंडे की मार से हाथ की मुट्ठी बंद नहीं हो पा रही थी। लग रहा था अंगुली, खासकर अंगूठे की हड्डी टूट सी गई है। किसी तरह की कोई शिकायत करने से हुसैन ने रोकते हुए कहा कि पुलिस ने कहा है कि ऐसा किया गया तो जमानत नहीं हो पाएगी और लंबी सजा हो जाएगी।”
हुसैन के वालिद का इंतकाल 2014 में हो गया था। हुसैन की दो बहन और एक भाई हैं। हुसैन की बड़ी बहन माहिरा (उम्र 21 साल) एक कॉस्मेटिक की दुकान में काम करती है। उसका विवाह इस साल के मार्च के महीने में होने वाला था।
हुसैन के जेल में होने के कारण विवाह अभी हो सकने के हालात नहीं हैं। हुसैन की बड़ी बहन के अलावा एक छोटी बहन जन्नत इंटर में पढ़ रही है और छोटा भाई अली है। घर का खर्चा हुसैन की बड़ी बहन माहिरा के वेतन से चलता है। इसके अलावा घर के बाहर परचून की एक छोटी सी दुकान है।
हुसैन की अम्मी बुनाई कढ़ाई करके भी करके कुछ कमा लेती हैं। हुसैन के वालिद के गुजर जाने के बाद गहने आदि घर का सामान बेच करके किसी प्रकार का गुजर-बसर होता रहा है। अब मुकदमे बाजी में कोर्ट कचहरी का खर्चा और आ गया है।
मरने वालों के परिजनों को भी सरकार की तरफ से मुआवजा या मदद नहीं दी गई है, लेकिन अन्य संगठनों ने कुछ इम्दाद की है। इसी मोहल्ले से 17 वर्षीय नाबालिग अमन को भी पुलिस ने सड़क से पकड़ लिया था। उसे भी तीन दिन गैर कानूनी हिरासत में रखकर पुलिस ने जेल भेजा है। उसके पिता घटना के दिन सम्भल में नहीं थे। वे दिल्ली में आटो चलाते हैं।
मोहम्मद हसन, मोहम्मद हसन (उम्र, 17 साल)
मोहम्मद हसन की मां मुजाहिरा ने बताया, “हसन दिल्ली में काम करता रहा है। वहां इश्तेहार चिपकाने आदि फुटकर काम करके दिहाड़ी कमाता रहा है। मेरा दूसरा बेटा हाशिम (हसन का भाई) सवरे अपने अब्बा की मजार पर नमाज अदा करने के लिए गया था। उनका इंतकाल कुछ दिन पहले, 1 नवंबर 2024 को हुआ था।”
“मैंने हसन को हाशिम की तलाश में भेजा था। इस बीच पुलिस द्वारा आंसू गैस और फायरिंग होने लगी। हसन तो लौट आया था परंतु हाशिम, जो हसन की तलाश में गया था फंस गया है यह सोच कर, हम सब को चिंता होने लगी। हाशिम की तलाश में हसन फिर बाहर निकल गया। इस बार वह चपेट में आ गया।”
“उसकी बांह से पुलिस की गोली आर-पार गुजर गई। हम थाने गए तो पुलिस के दरोगा ने कहा कि हसन को छोड़ देंगे परंतु तुम लोगों को लिख कर देना पड़ेगा कि गोली पुलिस ने नहीं मारी है, पत्थरबाजी के दौरान पब्लिक में से किसी ने मारी है।”
हसन की मां मुजाहिरा के अनुसार हसन ने उन्हें बताया था, “थाने में लगभग 40 पुलिसकर्मियों ने उसे और उसके साथ बंद और लोगों को बेरहमी के साथ पीटा है। मारते समय वे कह रहे थे 10 और लोगों के नाम बताओ। यह भी कह रहे थे अगर यह कहा कि गोली पुलिस ने मारी है तो मार-मार कर जान से मार देंगे और लाश का पता तक नहीं चलेगा। यह भी कहा कि तुम लोग पाकिस्तानी हो वहीं क्यों नहीं चले जाते।”
हाशिम ने बताया, “हसन के अस्पताल में भर्ती होने के बाद रात 9 बजे हम अस्पताल पहुंचे। डॉक्टरों ने बताया हसन का ऑपरेशन करना पड़ेगा। पुलिस ने इलाज और ऑपरेशन के खर्चे का पैसा देने से इंकार कर पहले तो इलाज नहीं कराया।”
“डॉक्टर कह रहे थे कि ऑपरेशन नहीं हुआ तो बांह की नस सूख जाएंगी और जिंदगी भर के लिए विकलांग हो जाएगा। इसके बाद हसन और उसके साथ एक और अजीम को ऑपरेशन के लिए आईसीयू में ले गए थे। परंतु हसन का ऑपरेशन करने की जगह बिना घरवालों को बताए उसे चुपचाप मुरादाबाद जेल ले गए। जेल में दाखिला के पहले फिर पीटा है।”
हसन की मां मुजाहिरा बुनाई कढ़ाई करके भी करके कुछ कमा लेती हैं। हुसैन के वालिद के गुजर जाने के बाद गहने आदि घर का सामान बेच करके किसी प्रकार का गुजर-बसर होता रहा है। अब मुकदमे बाजी में कोर्ट कचहरी का खर्चा और आ गया है। मरने वालों के परिजनों को भी सरकार की तरफ से मुआवजा या मदद नहीं दी गई है, लेकिन अन्य संगठनों ने कुछ इम्दाद की है।
इसी मोहल्ले से 17 वर्षीय नाबालिग अमन को भी पुलिस ने सड़क से पकड़ लिया था। उसे भी तीन दिन गैर कानूनी हिरासत में रखकर पुलिस ने जेल भेजा है। उसके पिता घटना के दिन सम्भल में नहीं थे। वे दिल्ली में ऑटो चलाते हैं।

वादी मुकदमा हरिशंकर जैन का कथन
शाही मस्जिद सर्वे के मामले मे वादी हरिशंकर जैन ने 24 नवंबर की घटना के लिए मुस्लिम समुदाय को दोषी बताते हुए कहा, “सब कुछ सोच समझ कर किया गया था।
पहली बार 19 नवंबर के दिन 3.30 पर सिविल जज (सीनियर डिवीजन) आदित्य सिंह के आदेश के अनुसार सर्वे के लिए नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर रमेश राघव के साथ शाम लगभग 6 बजे मौके पर पहुंचे। वीडियोग्राफी की गई, तस्वीरें ली गई। सर्वे टीम के साथ डीएम राजेंद्र पेसिया, एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई पुलिस फोर्स के साथ थे। रात दो-ढाई घंटे तक सर्वे टीम वहां रही।”
“23 नवंबर को एडवोकेट कमिश्नर रमेश राघव द्वारा दोनों पक्षों को सूचित किया गया था कि 24 नवंबर को सर्वे की अगली कार्यवाही संपन्न की जाएगी। एक नोटिस मस्जिद कमेटी के वकील जफर अली साहब को भी दिया गया था। 24 नवंबर सुबह वादी के वकील विष्णु शंकर जैन,सरकारी वकील पीयूष शर्मा, पुरातत्व विभाग के वकील विष्णु शर्मा, अधिवक्ता कमिश्नर के साथ कोतवाली पहुंचे।”
“वहां मस्जिद कमेटी के जफर अली भी मौजूद थे। हम सब सुबह 7,15 पर मस्जिद पहुंचे थे। (मस्जिद संबोधन के साथ श्री हरि शंकर जैन ने स्पष्टीकरण यह भी दिया कि उनके अनुसार वह मस्जिद नहीं है बल्कि हरिहर मंदिर है।) सबके फोन कोतवाली में जमा करा लिए गए। जफर अली साहब इस दौरान 15 मिनट के लिए बाहर गए थे। उनके आने के 35 से 40 मिनट बाद सड़क पर भारी भीड़ जमा हो गई।”
” ‘अल्लाह ओ अकबर’ नारों के साथ भीड़ ने पत्थर फेंकने शुरू कर दिए। इमारत के भीतर तक पत्थर आ रहे थे। इसी दौरान भीड़ ने गाड़ियों में आग लगा दी। इसके बाद फायरिंग की आवाज सुनाई पड़ी। गोली कौन चला रहा था यह तो पुलिस ही बता सकती है। इस माहौल में सर्वे की कार्यवाही रोकनी पड़ी। सर्वे टीम को पुलिस संरक्षण में वहां से निकाल कर पुलिस कोतवाली लाया गया।”
“हिंदू इलाकों में टीम के पहुंचने पर “जय श्री राम” हर हर महादेव” जैसे नारे लगे थे। यह गलत अफवाह मुसलमानों ने फैलाई है कि “जय श्री राम” और “हर हर महादेव” के नारों की वजह से माहौल हिंसात्मक हुआ था।”
“‘जय श्री राम’ उत्तेजनात्मक नारा कैसे हो सकता है? श्री राम तो भारत की राष्ट्रीयता के प्रतीक हैं। देश के हर नागरिक के हैं ‘श्री राम’। इसे सांप्रदायिक या उत्तेजनात्मक कदापि नहीं कहा जा सकता। वे लोग ‘अल्लाह हो अकबर’ कह सकते हैं तो हम ‘जय श्री राम’ नहीं कह सकते?”
जैन ने कहा, “माहौल को सांप्रदायिक बनाने में समाजवादी पार्टी की भूमिका है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने चुनावी मकसद से भाजपा को दोषी बता रहे हैं। मामले का राजनीतिकरण किया जा रहा है।”
यह पूछने पर कि नियम के अनुसार, सर्वे सूरज ढलने के बाद रात में नहीं किया जा सकता जैन ने कहा, “ऐसा कोई नियम नहीं है। सर्वे किसी भी समय, देर रात भी, किया जा सकता है। सर्वे को लेकर यह भी अफवाह फैलाई गई थी कि मस्जिद में सर्वे के दौरान खुदाई की जा रही है, जबकि सर्वे केवल स्थल निरीक्षण (Site Inspection) होता है।”
श्री जैन के अनुसार, यह इमारत पुरातात्विक संरक्षण के तहत पुरातत्व विभाग के अंतर्गत है, मस्जिद कमेटी के प्रबंधन के अंतर्गत नहीं। यहां हर कोई आ-जा सकता है। किसी को रोकने का अधिकार मस्जिद कमेटी को नहीं है। मस्जिद कमेटी पुरातत्व विभाग तक को रोकती है।
जैन ने कहा,” यह इमारत मस्जिद है ही नहीं। यह हरिहर मंदिर है। बाबर ने तीन जगह पर मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी। पहली मस्जिद भगवान विष्णु के हरिहर मंदिर को तोड़कर संभल की शाही जामा मस्जिद, इसके बाद अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर की जगह बाबरी मस्जिद, तीसरी पानीपत में काबुली मस्जिद है।”
इमारत में अबाध प्रवेश की मांग के संदर्भ में यह पूछे जाने पर कि वहां जैसे नमाज पढ़ी जाती है आप पूजा हवन भी करना चाहेंगे? जैन ने कहा “फिलहाल यह हमारी मांग नहीं है, इसका मतलब यह भी नहीं है कि भविष्य में हम यह मांग नहीं करेंगे।”
वार्ता समाप्त होने के समय जैन ने पीयूसीएल, मानवाधिकार और धर्मनिरपेक्ष संगठनों पर कटाक्ष करते हुए कहा, “आप लोग तब क्यों नहीं कुछ कहते, जब हिंदू मारे जाते हैं। 1978 में संभल में दंगे में 184 हिंदू (?) मारे गए, मुसलमानों ने उन्हें जिंदा जलाया तब आप कहां थे?”
इस हमले का सीधा जवाब देने की जगह टीम ने जैन से पूछा, “1984 में सिखों का दिल्ली, कानपुर और देश की दूसरी जगहों पर जनसंहार किसने किया था, निर्दोष परिवारों, मासूम बच्चे, महिलाओं तक को नही बख्शा गया, जिंदा जलाया गया। क्या उस समय यह हिंदुओं ने किया था?”
जैन ने रक्षात्मक स्वर में कहा, “दंगाई का कोई मजहब नहीं होता”। टीम ने कहा आपने खुद अपने सवाल का जवाब दे दिया। आप मुसलमानों को ही दोष क्यों देते हैं?

प्रतिवादी मुकदमा जफर साहब का कथन
जफर साहब ने बताया “19 नवंबर शाम 3.30 पर अदालत के आदेश के बाद शाम को एडवोकेट कमिश्नर परवाना लेकर पुलिस फोर्स के साथ मस्जिद पहुंच जाते है। वीडियोग्राफी करने तक अंधेरा होने लगा। नियमानुसार सवेरे 10 से शाम 5 बजे तक ही सर्वे की कार्यवाही हो सकती है, अंधेरे में नहीं।”
“सर्वे के आदेश के अनुसार केवल स्थल निरीक्षण (Spot Inspection) का आदेश था। इसमें खुदाई करने या इमारत में किसी प्रकार के परिवर्तन या छेड़छाड़ के लिए नहीं कहा गया था। अदालत की तरफ से नियुक्त अधिवक्ता कमिश्नर को सिर्फ वीडियोग्राफी, तस्वीर लेने और स्थल को देख कर रिपोर्ट पेश करना था। यह काम 19 नवंबर को शांतिपूर्वक, बिना किसी रुकावट के पूरा हो गया था।”
“सांसद जियाउद्दीन बर्क साहब ने भी मौके पर आकर शांतिपूर्वक सर्वे कराने में मदद की थी। कुछ ऐसा नहीं था जो अधूरा रह गया हो। मस्जिद में लाइट का इंतजाम रहता है, इसके अलावा प्रशासन ने भी लाइट का इंतजाम कराया था। इसके बावजूद, अचानक 23 तारीख, शाम 6.45 बजे, एडीएम सम्भल का फोन आया कि जिलाधिकारी (DM) ने तलब फरमाया है। मैंने कहा कि मैं अस्वस्थ हूं, आ सकना मुमकिन नहीं है।”
“फिर 7 बजे सीओ संभल अनुज चौधरी का फोन आया कहा कि एसडीएम संभल वंदना मिश्रा आपके घर आना और आपसे मिलना चाहती हैं। काम क्या है? के जवाब में कहा, ‘कोई खास बात नहीं है, बस आपके साथ एक कप चाय पी लेंगे।’ शाम लगभग 8 से 8.15 के बीच एसडीएम और सीओ संभल मेरे घर आए और अदालत द्वारा नियुक्त अधिवक्ता कमिश्नर द्वारा अगले दिन, 24 तारीख को फिर दूसरी बार सर्वे (spot inspection) किए जाने की एक लिखित सूचना (Notice) मुझे थमाई।”
“इसमें था कि 24 तारीख सुबह 6-7 बजे सर्वे (Spot Inspection) फिर किया जाना है। इस सूचना (नोटिस) की प्राप्ति के हस्ताक्षर के लिए मुझ पर दबाव डालकर मेरे हस्ताक्षर कराए गए थे। यह भी कहा गया कि सर्वे सवेरे ही होगा यह अभी पूरी तरह तय नहीं है, समय बदल भी सकता है परंतु कल 24 को ही सर्वे फिर से किया जाना है। निश्चित समय की सूचना आज ही रात 11 बजे तक बता दी जाएगी।”
“यह भी कहा कि इस बारे में किसी को मैं कुछ कह-बताऊं नहीं, क्योंकि अनावश्यक भीड़ इकट्ठा हो जाएगी। रात 11 बजे तक सीओ या एसडीएम का कोई फोन नहीं आया। 11 बजे बाद एबीपी संवाददाता ने फोन करके बताया कल सवेरे 6 बजे सर्वे होने जा रहा है। उसने मेरी प्रतिक्रिया जाननी चाही।”
“मैंने तुरंत एसडीएम से दरयाफ्त किया। उन्होंने कोई निश्चित जवाब देने की जगह उस संवाददाता का फोन नंबर पूछा। 24 नवंबर सुबह 6,45 पर इंस्पेक्टर सम्भल का फोन आया कि सर्वे के लिए वादी पक्ष से विष्णु शंकर, अधिवक्ता कमिश्नर आ चुके हैं, मुझे भी मौके पर हाजिर होने के लिए कहा गया। मैं पहुंचा, एडवोकेट कमिश्नर ने सर्वे के आदेश का नोटिस थमाया।”
“मैंने नाइत्तफाकी दर्ज करने के खातिर नोटिस पर लिखने के लिए कलम कागज पर टिकाया था कि एसडीएम वंदना मिश्रा ने तुरंत मेरे हाथ से नोटिस छीन लिया और कहा रात में नोटिस तामील हो चुका है,अब जरूरत नहीं है। वादी मुकदमा. वादी पक्ष से विष्णु शर्मा और प्रिंस शर्मा के साथ सम्भल के जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, एसडीएम, सीओ, कोतवाली इंस्पेक्टर और भारी पुलिस फोर्स की नाकाबंदी के मध्य सर्वे की कार्यवाही शुरू की गई।”
“वादी गण के समर्थक लोग ‘जय श्री राम’ और ‘हर हर महादेव’ नारे लगा रहे थे। मस्जिद के बीच एक बड़ा हौज है, वहां से पानी लेकर नमाजी वजू किया करते है। एसडीएम वंदना शर्मा ने हौज का जल निकाल कर उसे खाली करने और गहराई जानने की बात कही। जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक ने कहा ‘हौज को खाली कराने की जरूरत नहीं है, डंडे से गहराई नापी जा सकती है।’”
“सीनियर अधिकारियों के एतराज के बावजूद, एसडीएम वंदना मिश्रा ने कहा कि हौज की तलहटी का निरीक्षण भी जरूरी है। होज खाली करने के दौरान, ऊंचाई से पानी तेज धार से निकला। आम लोगों को लगा कि हौज को खाली करके तलहटी खोदी जाएगी और मस्जिद पर कब्जा होने जा रहा है। इस वक्त सवेरे 8.30 बज चुके थे।”
“जनता पूछने लगी कि हौज किस मकसद से खाली की जा रही है, क्या खुदाई की जानी है? सवाल-जवाब और तकरार के साथ पुलिस और पब्लिक के बीच तनातनी होने लगी। झड़प फिर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज, जवाब में जनता द्वारा पथराव, पुलिस द्वारा आंसू गैस फिर फायरिंग हुई।”
मंदिर बनाम हरिहर मंदिर विवाद के बारे में पूछने पर जफर अली साहब ने बताया, “इस विषय पर मंदिर के दावे के साथ एक मुकदमा 1878 में मुरादाबाद जिला न्यायालय में दायर किया गया था। इस मुकदमे का फैसला सम्भल की शाही जामा मस्जिद के पक्ष में हुआ था। मंदिर के दावेदारों ने इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की थी। उनकी यह अपील खारिज (with cost) हो गई थी।”
24 नवंबर, 2024 के पहले जिला प्रशासन ने विभिन्न समुदाय और नागरिक प्रतिनिधियों की कोई “शांति बैठक” आमंत्रित की थी? सवाल के जवाब में जफर अली साहब ने बताया, “मेरी जानकारी में एसी कोई बैठक नहीं हुई। बल्कि प्रशासन का कहना था कि लोगों को मालूम नहीं होना चाहिए अन्यथा भीड़ जमा हो जाएगी। जनता को विश्वास में लेने का प्रशासन की ओर से कोई प्रयत्न नहीं किया गया था।”
मस्जिद की यह इमारत पुरातत्व विभाग (Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958) के अंतर्गत आती है। इसकी देखभाल, रखरखाव और प्रबंधन पुरातत्व विभाग का दायित्व है। मस्जिद कमेटी का क्या लेना-देना है? आरोप तो यह भी है आम लोगों को ही नहीं पुरातत्व विभाग के अधिकारियों को भी मस्जिद कमेटी की तरफ से रोका जाता है?
सवाल के जवाब में जफर साहब ने कहा, “मस्जिद कमेटी और पुरातत्व विभाग में किसी किस्म के कोई विवाद की गुंजाइश नहीं है। केवल इमारत ही पुरातत्व विभाग के तहत संरक्षित है, मस्जिद नहीं। मस्जिद का प्रबंधन मस्जिद कमेटी करती है।”
“1839-40 में मुरादाबाद के जिलाधिकारी (DM) ने मस्जिद कमेटी को एक पत्र लिखा कि मस्जिद की कुछ मरम्मत करानी है, मस्जिद कमेटी इसे कराएगी नहीं तो हम यह करवा देते हैं। मस्जिद कमेटी ने मरम्मत करा दी थी। दो साल पहले पुरातत्व विभाग की एक टीम आई थी परंतु वह आधिकारिक परिचय नहीं दे सकी, इसलिए उसे प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी।”
“छह माह पहले जिलाधिकारी की अनुमति से मेरठ से पुरातत्व विभाग की एक टीम आई थी उसका यह कहना था कि मस्जिद की दीवारें गिर रही वे इसकी मरम्मत करवाएंगे”।
मस्जिद कमेटी का कोई कानूनी अस्तित्व है ही नहीं। इसका चुनाव आदि की कोई नियमावली नहीं है और यह पंजीकृत (Registered) संस्था भी नही है?
सवाल के जवाब में जफर अली साहब का कहना है, “यह सही है कि मस्जिद कमेटी पंजीकृत नहीं है। इसकी कोई जरूरत या अनिवार्यता भी नहीं है। पिछले 400-500 साल से यह परंपरा निर्विवाद चली आ रही है कि चुनाव के ऐलान के बाद तय शुदा दिन मौजूद नमाजियों के मध्य से मस्जिद कमेटी के सदस्य और पदाधिकारियों के नाम प्रस्तावित होते हैं।”
“और आम सहमति से हाथ उठाकर अनुमोदन किया जाता है। देश भर में कहीं भी मस्जिद, मंदिर, चर्च गुरुद्वारे का प्रबंधन करने वाली कमेटियों या अनेक सामाजिक संस्थाएं और संगठन हैं, क्या सभी पंजीकरण सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट में पंजीकृत हैं? सोसाइटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम या वक्फ बोर्ड कहीं रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी नहीं है।”
(दूसरी किश्त में पढ़िए- पीयूसीएल की टीम ने अधीक्षक कृष्ण कुमार विश्नोई से सवाल जवाब किए तो उन्होंने क्या कहा?)
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