क्या इस वक़्त भी सफ़ाई कर्मचारियों को सिर्फ अध्यात्मिक सुख से संतोष करना होगा?
By आशीष सक्सेना
जनता कर्फ्यू से एक दिन पहले रात को तकरीबन 11 बजे। रोजाना की तरह कई सफाई कर्मचारी उत्तरप्रदेश के तथाकथित स्मार्ट सिटी बरेली की सड़कों को साफ करने में लगे थे।
न किसी के पास मास्क था, न दस्ताने और न ही सेफ्टी वाले जूते। साधारण घरेलू कपड़ों के ऊपर रिफ्लेक्टर जैसे पहने ये सभी उस दिन की नौकरी कर रहे थे।
वर्कर्स यूनिटी प्रतिनिधि ने जब कई से पूछा कि क्या उनको कोरोना वायरस के बारे में पता है? सभी को ये जानकारी थी कि ये फैल रहा है और वे खतरा मोल ले रहे हैं।
बचाव का कोई बंदोबस्त न होने की दबी जुबान शिकायत की। परिवार को पालना है, इसलिए इतना जोखिम ले रहे हैं, ये कहते हुए वे अपने काम में लग गए।
नगर निगम की व्यवस्था में वे ठेके पर काम करने वाले ठेकेदारी के तहत काम करते हैं। इन कर्मचारियों में ज्यादातर वाल्मीकि समुदाय से हैं और कुछ राठौर (तेली समाज) से हैं।
सफ़ाई कर्मचारियों को छोड़ सबकी चिंता
खास बात ये भी है कि राठौर दिन में काम नहीं करते, जिससे उनको वाल्मीकि न समझ लिया जाए।
बहरहाल, बरसों पहले नरेंद्र मोदी, जो अब प्रधानमंत्री हैं, उन्होंने मैला उठाने को आध्यात्मिक सुख मिलने जैसा बताया था। अब वे लाइलाज ‘छूत की बीमारी’ कोरोना वायरस से इन सफाई कर्मचारियों को लेकर आंखें मूंदे हैं।
हाल ही में, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों की हौसलाअफजाई को संबोधन किया, उसमें भी इसका आभास हुआ। तमाम बातों के साथ उन्होंने ऐसी नाजुक परिस्थिति में सबको एकांतवास और सुरक्षित रहने की सलाह दी।
अलबत्ता, कुछ खास काम वालों को उन्होंने इस समय भी सक्रिय रहने की जरूरत और मजबूरी गिनाई। इनमें सफाई कर्मचारी भी हैं।
बेशक! सफाई कर्मचारी अगर निष्क्रिय हो गए तो लोग कोरोना से भले बच जाएं, दर्जनों अन्य बीमारियों की चपेट में आ जाएंगे। उन्होंने जनता कर्फ्यू की अपील के साथ उसको लागू कराने में राज्य सरकारों को ताकीद किया।
हालांकि, बेहद अहम मोर्चे पर लगे सफाई कर्मचारियों को सुरक्षित करने पर दो शब्द भी नहीं कहे। ऐसा क्यों हुआ? सिर्फ इसलिए कि ब्राह्मणवादी सामाजिक ढांचे और पूंजीवादी व्यवस्था में ढले लोगों को इस बात की चिंता आम दिनों में भी नहीं होती।
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सफ़ाई की चिंता सफ़ाई कर्मचारियों की नहीं
वे खास जाति और समुदायों को सेवक ही मानते हैं जिनके जीवन से उनका कोई लेना देना नहीं होता।
मोदी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से परवरिश मिली है, जो ये मानता है कि हिंदुत्व ही सर्वश्रेष्ठ है और हिंदुत्व का सर्वश्रेष्ठ गुण वर्ण व्यवस्था है, जिसने घृणित जाति व्यवस्था को जन्म दिया।
उस वर्ण व्यवस्था के बाहर भी लोग रहे हैं, जिनकी हैसियत इंसान की ही नहीं है, अछूत हैं।
ये बात कितनी धंसी हुई है इसकी नज़री है कि बरेली के भाजपा पार्षदों ने इस बीच भाजपा से जुड़े महापौर से शहर के लोगों की भलाई के लिए सुझाव दिए कि नगर निगम के वाहनों से मुख सड़कों को सेनेटाइज किया जाए।
उन्होंने ये भी कहा कि उन गलियों में जहां पर वाहन नहीं पहुंच सकते वहां पर मैन्युअली स्प्रे कराया जाए, नगर निगम के सफाई कर्मचारियों के साथ आउटसोर्सिंग से भी कर्मचारियों को लेकर सफाई व्यवस्था को दुरूस्त करने में लगाया जाए।
सभी डलावघरों से कूड़ा उठने के बाद चूने और कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव कराया जाए। उन्होंने खुद ही इस सुझाव के साथ कहा कि अभी तक शासन और प्रशासन की तरफ से इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
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कर्मचारियों में चिंता
सोचने की बात है, जितना भी काम उन्होंने अपनी सेहत दुरुस्त करने की चिंता में गिनाया, वह किसको करना है? वाल्मीकि समुदाय से जुड़े लोग ही सफाई व्यवस्था से जुड़े हैं।
सुझाव में ये कहीं नहीं कहा गया कि इस काम को करने वालों को तत्काल सुरक्षा उपकरणों से लैस किया जाए। सिर्फ एक पार्षद ने अपने वार्ड के कुछ सफाई कर्मचारियों को सुरक्षा उपकरण दिए, वो भी इसलिए कि उनकी सेहत ख़तरे में है।
आम मानसिकता इस तौर पर भी जाहिर हुई कि नगर निगम के विपक्ष समाजवादी पार्टी के किसी पार्षद ने भी इस सिलसिले में कोई जरूरत नहीं समझी।
शहर महिला कांग्रेस ने जरूर सफाई कर्मचारियों को बचाव के उपकरण दिए जाने की मांग की है। महिला कांग्रेस ने मेयर को दिए पत्र में आरोप लगाया कि सरकार ने कोरोना वायरस को लेकर सामूहिक कार्यक्रमों से लेकर स्कूलों की छुट्टी करने के आदेश दे दिए हैं, लेकिन सफाई कर्मचारियों की सुविधाओं को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई है।
ये फिक्र वाल्मीकि समुदाय में पसरी है। यही वजह है कि भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज ने नगर आयुक्त से बचाव व्यवस्था करने की मांग की है।
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सफ़ाई कर्मचारियों की मांगें
समाज के महानगर अध्यक्ष गोविन्द बाबू वाल्मीकि ने कहा, “क्या सरकार को सफाई कर्मचारी सबसे मजबूत मानव लगता है, जिसे इस वायरस से कुछ नहीं होगा। कोई योजना न बनाकर सफाई कर्मचारियों को करने के लिए छोड़ दिया गया है।”
उन्होंने कहा कि हमारा संगठन सफाई कर्मचारियों के लिए सेनेटाइजर, थ्री लेयर मास्क, सेनेटाइजर वाश, पैरों के लिए फुल कबर्ड जूते, हाथों के लिए कोहनी तक के दस्ताने, संक्रमण से बचने के लिए दवाई व अन्य सामग्री दी जाए, जिससे सफाई कर्मचारियों को इस महामारी से बचाया जा सके।
चंद सांसों की इल्तिजा में घरों के बाहर दीये जलाने, थाली पीटने, शंख बजाने वाले समाज की संवेदनहीनता का आलम ये है कि इस समुदाय के श्रमिकों जिंदगी खतरे में डालने के लिए सोशल मीडिया पर टीवी-24 के ट्वीट का हवाला देकर प्रचार किया जा रहा है कि गर्म होने के कारण वाल्मीकियों पर कोरोना का असर नहीं होगा।
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