सफाई कर्मचारी की जिंदगी की कीमत सिर्फ 2700 रुपये
मजदूरों की जान की कोई कद्र ही नहीं शायद इस व्यवस्था को। कोरोना वायरस को हराने में सबसे आगे की पंक्ति में मौजूद लोगों में सफाई कर्मचारियों की जान बेहद जोखिम में है। उनमें भी उनकी सबसे ज्यादा जान खतरे में है, जो ठेके के तहत काम कर रहे हैं।
शहर के अंदरूनी इलाके ही नहीं, कोरोना आइसोलेशन सेंटर हो या फिर अस्पताल, वहां कदम तभी रखा जा सकता है, जब सफाई कर्मचारी उस जगह को साफ-सुथरा रखते हैं। इसके बावजूद सफाई कर्मचारियों को अधिकांश जगह न तो पीपीई किट मिली हैं, न ही मास्क, दस्ताने और गम बूट।
सच्चाई यही है कि सफाई कर्मचारियों को लेकर कोई नीति ही स्पष्ट नहीं है। न्यू ट्रेड यूनियन इनीशिएटिव के सचिव मिलिंद राना डे इस मामले में मुंबई म्यूनिसिपल कारपोरेशन के रवैये पर सख्त नाराजगी जाहिर की है।
उन्होंने कहा कि ठेके पर काम करने वाले सफाई कर्मचारियों के बीमा के बारे में सरकार, म्यूनिसिपल कारपोरेशन और श्रम विभाग ने कुछ भी स्पष्ट नहीं किया है। बीएमसी में 6500 कर्मचारियों के जीवन से खिलवाड़ करने की की कोशिश हो रही है।
यहां सफाई कर्मचारियों को पीपीई किट दी गई, लेकिन उसको उतारने का तरीका न सिखाकर कह दिया गया कि घर ले जाकर धो लें और फिर वही पहन लें। सिर्फ इसलिए कि किट की कीमत 2700 रुपये है, जिसे महंगा बताकर धोकर पहन लेने को कहा गया है।
जबकि बीएमसी के ये कर्मचारी जिन क्षेत्रों में रहते हैं, वहां पानी की आपूर्ति का टाइम तक निश्चित नहीं है। इस स्थिति में कर्मचारी उस सूट को कहां रखेंगे, किसी के भी गलत तरीके से छू लेने से संक्रमण हुआ तो कौन जिम्मेदार होगा।
कर्मचारियों को ये तक नहीं बताया गया है कि उसको धोना कैसे है, वाशिंग पाउडर, साबुन से या सादा पानी से, सुखाना कैसे है।
राना डे ने कहा कि फिलहाल एनटीयूआई इस रुख पर विरोध जताकर तय किया है कि दी गई पीपीई किट को कोई घर नहीं ले जाएगा, ये जिम्मेदारी बीएमसी प्रशासन की है कि उसको ठीक से शरीर से अलग करके संक्रमण रहित बनाए। यूनियन ने सभी सफाई कर्मचारियों की 10-15 दिन पर जांच कराने की भी मांग की है।
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