भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में 18 बुद्धिजीवियों को फंसाया गया हैः दो रिटायर्ड जजों ने कहा
भीमा कोरेगांव मामले में 18 बुद्धिजीवियों, कवियों, पत्रकारों, वकीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, कलाकारों गिरफ़्तारी को लेकर सेवानिवृत्त जज पीबीसावन्त और कोल्से ने कहा है कि इन निर्दोष लोगों को फंसाया गया है।
उन्होंने कहा कि ”इस मामले में आरोपी बनाए गए ये तमाम लोगों का उस हिंसा से कोई संबंध नहीं था परंतु उन्हें फंसाया गया है क्योंकि उन्होंने सरकार के खिलाफ बोला थ। उन्हें मानवाधिकारों से वंचित किया गया है।“
दो साल पहले 6 अगस्त 2018 को नागपुर से एडवोकेट सुरेन्द्र गाडलिंग, दलित एक्टिविस्ट एवं लेखक सुधीर धावले, गढ़चिरौली में आदिवासी अधिकार एक्टिविस्ट महेश राउत, नागपुर से सेवानिवृत्त प्रोफेसर शोभा सेन और एक्टिविस्ट रोना विल्सन को गिरफ्तार किया गया।
18 अगस्त 2018 को हैदराबाद से कवि वरवर राव, मानवधिकार वकील सुधा भारद्वाज को भी दिल्ली से, एक्टिविस्ट-वर्नोन गोन्साल्वेज एवं अरूण फरेरा को मुंबई से गिरफ्तार किया गया।
14 अप्रैल 2020 को दिल्ली से नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा और मुंबई से प्रोफेसर आनन्द तेलतुम्बडे को उस समय राष्ट्रीय जांच एजेंसी के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा जब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अग्रिम जमानत की याचिका को खारिज कर दिया।
28 जुलाई 2020 को प्रोफेसर हनी बाबू को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया। 7 सितंबर 2020 को सागर गोरखे, और रमेश गाईचारे को और 8 सितंबर 2020 को ज्योति जगताप को कोन्धवा (पुणे) से गिरफ्तार किया गया।
ये तीनों लोग उस कबीर कला मंच के सदस्य हैं जो दलित एवं मजदूर वर्ग के उन संगीतकारों की मंडली है जो 2020 में गुजरात के मुस्लिम विरोधी जनसंहार के बाद बनी थी। 8 अक्टूबर 2020 को रांची से फादर स्टेन स्वामी को भी गिरफ्तार किया गया।
इन सभी को सीपीआई (माओवादी) जिस पर प्रतिबंध है, के साथकथित सम्बंधों के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून के अंतर्गम गिरफ्तार और आरोपित किया गया हे।
भीमा-कोरेगांव के कार्यक्रम के आयोजक रिटायर्ड जस्टिस बीजी कोल्से ने द हिन्दू अख़बार से कहा, “इस मामले में गिरफ्तार इन तमाम आरोपियों का इस घटना से कोई सम्बंध नहीं है। मैं इस कार्यक्रम-एल्गार परिषद का आयोजक हूं और मैं आपको बता रहा हूं कि मैंने इनमें से किसी को नहीं देखा और इनमें से कोई भी इस घटना में शामिल नहीं था।“
मोदी सरकार ने बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार कर लिया है और उन्हें फर्जी मामला बनाकर फंसा दिया है क्योंकि वे सरकार की आलोचना करते हैं।
उन्होंने कहाः “एक 83 वर्षीय व्यक्ति जो पार्किन्सन का मरीज है, फादर स्टेन स्वामी उन्हें स्टे देने से मना करना, एक 81 वर्षीय बुज़ुर्ग जो डिमेंशिया के मरीज हैं, वरवर राव, उनका इलाज न कराना, एक ऐसे व्यक्ति जो बिना चश्मे के लगभग अंधा है, गौतम नवलखा, को चश्मा न देना- यह उन्हें मानवाधिकार से वंचित करना है।“
सुप्रीम कोर्ट के सेवा निवृत्त जस्टिस और इस कार्यक्रम के सह-संयोजक पीबी सावन्त ने कहाः “भारतीय जनता पार्टी किसी उस व्यक्ति को सहन नहीं करती जिसकी सोच उससे अलग है। संविधान के अंदर जिन मौलिक अधिकारों की गारंटी दी गयी है उसका और संविधान की प्रस्तावना का यह सरासर उल्लंघन करती रही है। व्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचला जा रहा है और सरकार की प्रवृत्ति हर आलोचना को कुचलने की है।“
पिछले साल, मानवाधिकार दिवस पर तलोजा केंद्रीय जेल में बंद पुरूष आरोपियों और बायकुला जेल में बंद महिला आरोपियों-सभी ने महाराष्ट्र मानवाधिकार आयोग को एक पत्र लिखा था।
उसमें उन्होंने कहा था, “हम सरकार द्वारा बनाये गए डर और अपराधीकरण के उस माहौल की भत्र्सना करते हैं, जिसमें भारतीय नागरिकों, विशेषकर, मानवाधिकारों का बचाव करने वालों को, जो सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं, डराया-धमकाया जा रहा है और उन पर खतरा मडंरा रहा है।“
अपने पत्र में उन्होंने यह भी कहा था, “हमारी उम्मीदों के विपरीत हमारी जमानत याचिकाएं हाल में खारिज कर दी गयी। गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून और राजद्रोह कानून के कठोर प्रावधानों ने अभियोक्ता (प्राॅसीक्यूशन) के लिए यह काफी आसान बना दिया है कि वे डिजिटल साक्ष्य की प्रामाणिकता, विश्वसनीयता एवं स्वीकार्यता के सम्बंध में महत्वपूर्ण प्रश्नों को नजरअंदाज कर दें और इस प्रकार आरोपियों को लंबे समय तक बंद रखा सके।”
इसमें कहा गया है, “डिजिटल टेक्नोलाॅजी के ये पहलू राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को इस बात की इजाजत देते हैं कि वे किसी फर्जी विषयवस्तु (फेक कन्टेन्ट) को एक-दूसरे को बदनाम करने, हमला करने, अपराधी बताने और खमाोश करने के एक असरदार औजार के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं।“
(साभारः द हिन्दू, 11 दिसंबर 2020)
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