उना दलित आंदोलन के प्रमुख चेहरे रहे जयेश सोलंकी ने की आत्महत्या, आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे
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उना दलित आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा रहे सामाजिक कार्यकर्ता और सांस्कृतिक कर्मी जयेश सोलंकी ने बुधवार की दोपहर अहमदाबाद के पास स्थित अपने गांव भुवालड़ी में सुसाइड कर लिया।
कुछ महीने पहली ही उनके पिता की मौत हो गई थी। घर में अब उनकी मां हैं और दो बहनें जिनकी शादी हो चुकी है।
जयेश सोलंकी कम्युनिस्ट आंदोलनों से भी जुड़े रहे और दलित एवं तमाम जनांदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी थी। रंगकर्मी होने के साथ साथ वो कवि थे और लॉकडाउन में दलित नज़रिये से लिखी गई कविताओं का संग्रह प्रकाशित करने की योजना पर काम कर रहे थे।
सीएए एनआरसी प्रोटेस्ट में वो दिल्ली के शाहीन बाग़ भी कई बार गए और अपना समर्थन दिया। उस दौरान मंच से उन्होंने भाषण दिया था, जिसे बहुत सराहा गया।
उना आंदोलन में जिग्नेश मेवानी के साथ उनका नाम लिया जाता था और उनके सामाजिक बदलाव वाले गानों को सुनने के लिए हज़ारों लोग जुटते थे।
उन्होंने एक बार बताया था कि आंदोलन में सक्रिय होने के बाद रंग कर्म से आजीविका चलाने में दिक्कत आने लगी क्योंकि उनकी पहचान एक दलित नेता के रूप में हो चुकी थी और तमाम एनजीओ, जिनके लिए वो काम करते थे, उनसे कन्नी काटने लगे थे।
उससे पहले वो नाटक की वर्कशॉप चला कर अपनी आजीविका चलाते थे।
जयेश बहुत ग़रीब दलित परिवार से आते थे और अपने शुरू के दिनों में फ़ैक्ट्री में मज़दूरी करके अपना खर्च चलाते थे। इसी दौरान कुछ सामाजिक रंगकर्मियों से मुलाक़ात हुई और वो रंगकर्म की ओर मुड़ गए।
जब उना में दलित अत्याचार पर गुजरात में आक्रोश पनपा तो वो सबकुछ छोड़ कर उसमें शामिल हो गए। लेकिन उना आंदोलन के बाद वो अवसाद में चले गए, जिससे वो कभी उबर नहीं पाए।
बीते साल वर्कर्स यूनिटी गुजराती शुरू करने में उन्होंने ज़िम्मेदारी ली थी, लेकिन ये प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पाया।
पिछले साल नवंबर में जब वो दिल्ली आए थे, तब भी वो आत्महत्या के बारे में अपने ख़्याल व्यक्त कर चुके थे और तब उनके क़रीबी दोस्तों ने उन्हें किसी तरह समझा बुझाकर सेहत पर ध्यान देने के लिए मना लिया था।
उनकी सेहत ठीक नहीं थी और अत्यधिक अल्कोहल लेने की वजह से उनके लीवर और किडनी पर विपरीत असर पड़ रहा था।
दिल्ली प्रवास के दौरान उन्होंने भारतीय सामाजिक संरचना में वर्ग के साथ जाति की भूमिका को लेकर भी विचार व्यक्त किये थे। उनका मानना था कि किसी भी सामाजिक बदलाव के लिए जाति का विनाश ज़रूरी है और इसके लिए कम्युनिस्टों को और सतर्कता से काम लेना चाहिए।
दो महीने पहले हुई बातचीत में उन्होंने कहा था, “उच्च जाति से आने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं और कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं में जाति की संरचना को लेकर काफ़ी उथलापन है। अलग सामाजिक स्थिति की वजह से भी वो जातीय उत्पीड़न को ठीक से समझने में नाकाम होते हैं।”
उन्होंने कभी खुद को दलितवादी कहलाना पसंद नहीं किया और जातीय संरचना में वर्ग विभेद पर उनकी नज़र बहुत स्पष्ट थी, लेकिन जातीय उत्पीड़न के विभिन्न संस्तरों के प्रति वो बहुत सजग थे। जिस तीव्रता से वो कम्युनिस्ट आंदोलन में सवर्ण मानसिकता को निशाना बनाते थे, उतनी तुर्शी के साथ दलितों के उच्च वर्ग की निष्क्रियता की आलोचना करते थे।
वो पिछले कुछ सालों से आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे और लॉकडाउन में उनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई थी। उन्होंने ये कदम उठाने से कुछ महीने पहले फ़ेसबुक पर अपना सीवी पोस्ट किया था, जिसमें कहीं नौकरी तलाशने में मदद की बात कही गई थी।
लॉकडाउन के दौरान उनकी आर्थिक मदद के लिए कई लोग आगे आए थे लेकिन वो बहुत मामूली और अनियमित थी, जिससे उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ। लॉकडाउन और उसके बाद आई सामूहिक आर्थिक तबाही में उन्हें कहीं निकलने का अवसर नहीं दिया।
उनके क़रीबी दोस्त तुषार परमार ने लिखा है कि ‘आर्थिक रूप से संघर्ष करने के बावजूद, उन्होंने अपनी विचारधारा के साथ कोई समझौता नहीं किया।, “जयेश ने एक बार कहा था कि मेरे पास कॉर्पोरेट क्षेत्र में काम करने और पैसा कमाने की क्षमता है लेकिन मेरे लिए समाज का वह वर्ग जिसके लिए मैं लड़ सकता हूँ, पैसे के पीछे भागना महत्वपूर्ण नहीं है।’
तुषार परमार लिखते हैं, ‘पूंजीवाद के कट्टर विरोधी होने के नाते, उन्होंने जीवन में इसका अभ्यास भी किया। जयेश की खासियत थी कि वह किसी भी मुद्दे पर कड़ा रुख अपना सकते थे, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म के लोग हों या उनसे जुड़ी कोई भी चीज। वह महिलाओं की आजादी के पैरोकार थे, उनकी आखिरी पोस्ट भी महिलाओं पर थी।’
एक प्रतिभावान सामाजिक दलित कार्यकर्ता का इस तरह असमय दुनिया को अलविदा कहना एक सदमे से कम नहीं है।
जयेश सोलंकी का जाना, जाति के पाश में जकड़े भारतीय समाज और इसको बदलने की कोशिशों में लगे सामाजिक कार्यकर्ताओं को सोचने के लिए बहुत कुछ छोड़ गया है।
वर्कर्स यूनिटी ‘टीम की ओर से जयेश सोलंकी को विनम्र श्रद्धांजलि!