दिल्ली: नए लेबर कोड के विरोध में TUCI ने जंतर-मंतर पर 5-7 नवंबर को विशाल धरने का किया ऐलान
केंद्र की मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों और चार लेबर कोड के खिलाफ़ टीयूसीआई ने आगामी 5-6-7 नवंबर को दिल्ली में जंतर मंतर पर तीन दिन के धरने का ऐलान किया है।
टीयूसीआई द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि मजदूरों को प्रताड़ित करने और बड़े कारपोरेटों को लाभ देने की सरकार की इस नीति का फोकस नए लेबर कोड हैं। इन संहिताओं को यह सुनिश्चित करने के लिए अधिनियमित किया जा रहा है कि “स्थायी कार्यकर्ता” की अवधारणा को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया जाए। “किराया और आग” की नीति पर खुली लगाम दी जा रही है।
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ज्ञात होकि नए कानून पहले ही संसद द्वारा पारित किए जा चुके हैं, लेकिन विभिन्न राज्यों द्वारा ऐसे कानूनों को नियंत्रित करने वाले नियमों का गठन नहीं किए जाने के कारण नए श्रम कोड अभी तक लागू नहीं किए गए हैं।
TUCI का कहना है कि नए कोड के तहत किसी भी कर्मचारी को नियोक्ता की इच्छा के अनुसार किसी भी समय नियोजित और हटाया जा सकता है। उनके वेतन पर प्रत्येक व्यक्ति के साथ बातचीत की जाएगी और जरूरी नहीं कि यूनियनों के साथ। यूनियन बनाने के अधिकार में कटौती की जा रही है। श्रमिकों की छंटनी या छटनी करने और उद्योगों को बंद करने के नियोक्ता के अधिकार को मजबूत किया जा रहा है। अब, जहां कहीं भी 100 या अधिक श्रमिक कार्यरत हैं, उन्हें ले-ऑफ, छंटनी या बंद करने के लिए सरकार की अनुमति की आवश्यकता होती है।
इतना ही नहीं नए कोड लागू होने के बाद, यह केवल 300 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाले प्रतिष्ठानों पर लागू होगा। संविदा कर्मियों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है। आज कुछ न्यूनतम सुरक्षा है – जैसे पंजीकरण और लाइसेंस, विश्राम कक्ष आदि जहां कहीं भी 20 या अधिक संविदा कर्मचारी हैं। अब यह तभी लागू होगा जब 50 या इससे अधिक संविदा कर्मचारी कार्यरत हों।
जारी प्रेस विज्ञप्ति में TUCI में मोदी सरकार पर कॉरपोरेट्स को बड़े पैमाने पर मुनाफा देने का आरोप लगाया है।
टीयूसीआई ने अपनी विज्ञप्ति में किसान आंदोलन को एक बड़ी मिसाल बताया है। कहा गया है कि किसानों ने एक बड़ी मिसाल कायम की है। हम उनकी लड़ाई से प्रेरित हैं। अब यह हमें डंडा उठाना है और अपने अधिकारों के लिए लड़ना है।
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गौरतलब है कि तीन कृषि कानूनों को पास करने के साथ ही 44 श्रम कानूनों को खत्म कर चार लेबर कोड भी पास करा लिए गए थे जिन्हें अभी तक लागू नहीं किया जा सका है।
यूनियनों को आशंका है कि आगामी शीत सत्र के दौरान इसे लागू करने पर मोदी सरकार जोर देगी।
मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (MASA) ने भी 13 नवंबर को संसद घेराव की कॉल दी है।
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