लेबर कोड के ख़िलाफ़ बड़ा मोर्चा बनाने का TUCI का आह्वान, 3 दिवसीय धरने के साथ लड़ाई और व्यापक करने का ऐलान
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के जंतर मंतर में TUCI का तीन दिवसीय धरना नए लेबर कोड को रद्द करने, न्यूनतम वेतन 1000 रुपये प्रति दिन और 27000 रुपये प्रति माह की मुख्य मांग के साथ संपन्न हुआ।
अंतिम दिन के धरने में शामिल होने जा रहे लगभग 100 मज़दूरों और यूनियन नेताओं को सुबह आंबेडकर भवन के बाहर ही पहले पुलिस द्वारा रोक दिया गया। मज़दूरों के विरोध के बाद उनको बसों में बैठा कर जंतर मंतर छोड़ा गया।
टीयूसीआई के जनरल सेक्रेटरी संजय सिंघवी ने ऐलान किया कि इस चेतावनी धरने के बाद राज्यों में भी इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे जहां सभी यूनियनों को आमंत्रित किया जाएगा और एक व्यापक मोर्चा बनाने की कोशिश की जाएगी।
उन्होंने कहा कि कई यूनियनें इस मंच पर आकर चार लेबर कोड की निंदा की और इसे खत्म करने की मांग की। इस धरने में टीयूसीआई के साथ, एटक, एक्टू, इफ्टू, इफ्टू सर्वहारा, एनटूयूआई, जन संघर्ष मंच, मजदूर सहयोग केंद्र, ग्रामीण मजदूर यूनियन (बिहार). मासा के घटक संगठन, ऑल इंडिया क्रांतिकारी किसान संगठन, ओपीडीआर, वन रैंक वन पेंशन की लड़ाई लड़ने वाले लोग शामिल हुए।
उन्होंने कहा कि वक्त की ज़रूरत है कि सभी यूनियनें आपसी भेदभाव भुलाकर एक मंच पर आएं और लेबर कोड के खात्मे का वैसा ही संकल्प लें, जैसा किसान आंदोलन ने कृषि कानूनों के खिलाफ़ संघर्ष कर दिखाया था।
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शोषण और लोकतंत्र बचाने का संघर्ष साथ साथ
एनटीयूआई के नेता गौतम मोदी ने धरने में शामिल होकर एकजुटता का इज़हार किया और कहा कि लेबर कोड लागू कर मजदूरों को इंसानियत के स्तर से नीचे जीने के लिए धकेला जा रहा है।
उन्होंने कहा कि लेबर कोड की मुखालिफत करते हुए ये ध्यान रखना होगा कि अगर देश में लोकतंत्र पर हमला होगा तो मजदूर वर्ग को अपनी लड़ाई आगे ले जाने में मुश्किल होगा। ये हमला सीधे मजदूर वर्ग पर हमला है।
उनका कहना है कि मजदूर वर्ग ही समाज का वो सबसे बड़ा हिस्सा है जो जम्हूरियत के लिए लड़ता है, उसे बचाता है और उसे मजबूत करता है। इसिलिए यह उनकी जिम्मेदारी है कि शोषण के खिलाफ लड़ते हुए लोकतंत्र और मानवाधिकार के लिए संघर्ष को धार दें।
उन्होंने कहा कि जिस तरह दिल्ली पुलिस ने धरने में शामिल होने आ रहे लोगों को अम्बेडकर भवन में कैद करने की कोशिश की, ये बानगी है कि किस तरह मजदूर वर्ग के नेताओं को जेलों में भरा जा रहा है, उन्हें कैद किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि टीयूसीआई ने इस लड़ाई में सबको आमंत्रित किया और हम इसके साथ हैं और आने वाले समय में सबको एकजुट होना होगा, टीयूसीआई की यह दृष्टि काबिलेतारीफ है।
ओडिशा से आए ‘अनमोल बिस्कुट वर्कर यूनियन’ के सदस्य राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि देश की लगभग सभी फैक्ट्रियों में ठेका मज़दूर की संख्या ज्यादा है, जिनका लगातार शोषण किया जा रहा है। उनका कहना है कि नए लेबर कोड में ठेका मज़दूरों को यूनियन का सदस्य बनने के अधिकारों को खत्म कर दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि नए लेबर कोड के आ जाने से मालिकों के लिए मज़दूरों को काम से निकालना और ज्यादा आसान हो जायेगा। ओडिशा सरकार की तरह सभी राज्यों में ठेका प्रथा उन्मूलन प्रणाली को लागू किया जाना चाहिए।
‘महाराष्ट्र हिंदुस्तान लीवर फेडरेशन’ के माणिक पाटिल ने कहा कि वर्तमान में मज़दूरों के समक्ष बड़ी समस्या है। उनका कहना है कि आज भी ठेका, नीम और अन्य मज़दूरों को न्यूनतम वेतन नहीं जा रहा है।
उन्होंने कहा – ‘हम TUCI की इस मांग का समर्थन करते हैं कि सभी मज़दूरों को 27000 प्रति माह न्यूनतम मज़दूरी दी जानी चाहिए।’
धरने का हिस्सा बने MASA के कोआर्डिनेटर अमित ने कहा कि नया लेबर कोड पूरी तरह से मज़दूर विरोधी है। मोदी सरकार को तत्काल इसको रद्द करना चाहिए।
उन्होंने बताया कि आगामी 13 नवंबर को MASA की ओर से विशाल रैली का आह्वान किया गया है।
TUCI के नेताअलिक चक्रवर्ती ने बताया कि मोदी सरकार द्वारा लाए मजदूर विरोधी चार लेबर कोड को समस्त देश में लागू करने के एजेंडा के साथ विगत 25-26 अगस्त को तिरुपति, आंध्र प्रदेश में राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसका उद्घाटन स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा किया गया और जिसमें केंद्रीय श्रममंत्री के साथ विभिन्न राज्यों के श्रम मंत्रियों की भागीदारी रही।
इसके मद्देनजर लेबर कोड के खिलाफ देश भर में मज़दूर संगठनों व ट्रेड यूनियनों ने विरोध प्रदर्शन आयोजित किए। तिरुपति में इस विरोध को कुचलने के लिए पहले से तैनात 2000 पुलिस बल द्वारा प्रदर्शनकारियों पर बर्बरतापूर्वक बल प्रयोग करते हुए उन्हें गिरफ्तार किया गया। आज भी उसी तरह हमारे मज़दूर साथियों को आंबेडकर भवन के बाहर पुलिस बल द्वारा रोक लिए गया।
अलिक का आरोप है इस तरह की गतिविधियों से पुलिस हमारे प्रदर्शन को कमजोर बनाना चाहती थी। लेकिन मजदूरों के विरोध के बाद प्रदर्शनकारियों को बसों में बैठा कर धरना स्थल पर छोड़ा गया।
उनका कहना है कि अब इस लड़ाई को बड़ा रूप देने की जरूरत है। मोदी सरकार को मज़दूरों की ताकत दिखाने के लिए सभी मज़दूरों संगठनों और ट्रेड यूनियनों को एक साथ प्रदर्शन करने की ज़रूरत है। ठीक उसी तरह जिस प्रकार किसानों में 3 कृषि कानून को वापस लेने की मांग को लेकर किया गया था।
रोज़गार के चरित्र का कोई स्पष्टीकरण नहीं
इंडियन फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियन (IFTU) की नेता अपर्णा ने कहा – ‘कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स के नाम पर मज़दूरों को बड़े पैमाने पर भर्ती किया जा रहा है। मोदी सरकार यह वादा करती है कि हज़ारों करोड़ों मज़दूरों को रोज़गार दिया जायेगा। लेकिन इस बात का कहीं भी स्पष्टीकरण नहीं होता कि रोज़गार का चरित्र कैसा होगा?’
उनका आरोप है कि मोदी सरकार की हर नीति में पूंजीपतियों का फायदा देखा जाता है, इसलिए कम वेतन वाले ठेका मज़दूरों को भारी संख्या में भर्ती किया जाता है। लेकिन उनसे काम उतना ही लिए जाता है जितना स्थाई मज़दूरों से करवाया जाता है। उन्होंने बताया कि दादरी में स्थित NTPC प्लांट में 80 फीसदी ठेका मज़दूर काम करते हैं, जबकि मात्र 20 फीसदी ही स्थाई मज़दूर हैं।
अपर्णा का कहना है कि ठेका प्रथा को ख़त्म करनी चाहिए। इसमें बड़े पैमाने पर मज़दूरों का शोषण किया जा रहा है। मज़दूरों को बहुत कम वेतन दिया जा रहा है। जबकि पूंजीपतियों की जेब लगातार भरी जा रही है।
‘मोरबी की घटना ही गुजरात मॉडल है’
टीयूसीआई के प्रेसिडेंट अमरीश पटेल ने कहा कि मोरबी की घटना इस बात की मिसाल है कि मोदी ने किस तरह का गुजरात मॉडल बनाया है। एक तरफ अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफरत भड़का कर उन्हें निशाना बनाया जा रहा है दूसरी तरफ याराना पूंजीपतियों को खुली छूट दी गई है।
उन्होंने कहा कि आज का वक्त इस विनाशकारी नीति से निर्णायक रूप से लड़ने का है। चार लेबर कोड मजदूरों को मिले वो सारे अधिकार छिन जाएंगे जिन्हें सालों के संघर्ष से उन्होंने हासिल किया है।
अमरीश पटेल ने कहा कि जब चुनाव आता है तो मोदी उस राज्य में अधिकतम समय बिताते हैं और हज़ारों करोड़, लाखों करोड़ की घोषणाएं करते हैं लेकिन क्या मजदूरों को न्यूतनम वेतन मिलता है? इस पर बात नहीं होती है।
उन्होंने कहा कि मजदूर वर्ग हिंदुत्व के मुद्दे पर बंटा हुआ है। जब लड़ाई चार लेबर को खत्म किए जाने, न्यूनतम वेतन 27000 रुपये किए जाने की होनी चाहिए, हिंदुत्व की राजनीति ने मजदूर वर्ग को उलझा दिया है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
उन्होंने कहा कि सबसे ताज्जुब की बात है कि जिस कांग्रेस ने ठेकादारी प्रथा को शुरू किया था, वो कह रही है कि ये प्रथा खत्म होनी चाहिए। आज मजदूर वर्ग के सामने बड़ी चुनौती है, क्योंकि जो चार लेबर कोड है, उसे पूंजीपति वर्ग पहले ही लागू कर चुका है। इसलिए हमें बेहतर जीवन के लिए लड़ना होगा।
TUCI के इस धरने का समर्थन किसानों के संगठन ने भी किया। आल इंडिया क्रांतिकारी किसान संगठन के सदस्य प्रदीप सिंह ठाकुर ने कहा कि 2015 के बाद से यह साफ हो चुकी है कि तत्कालीन मोदी सरकार किसानों के साथ मज़दूर विरोधी भी है। उनका कहना है कि नए लेबर कोड के विरोध में मज़दूरों को तत्काल एकजुट होकर विशाल प्रदर्शन करने की जरुरत है।
TUCI के सदस्य संजय सिंघवी का कहना है कि मज़दूरों में लड़ने की बहुत बड़ी ताकत है जिसके कई उदाहरण इतिहास में देखे जा सकते हैं। उनका कहना है कि मोदी सरकार लगातार इस प्रयास में है कि जल्द से जल्द नए लेबर को पारित कर दिया जाये, जबकि देशभर की ट्रेड यूनियन इसका विरोध कर रही हैं।
उन्होंने आगाह किया कि 44 पुराने लेबर कोड को खत्म करके लाये जाने वाले 4 नए लेबर कोड पूरी तरह से मज़दूर विरोधी हैं।
यदि यह संसद में पारित हो जायेगा, तो मज़दूरों और मज़दूर यूनियनों को मिलने वाले सभी अधिकार ख़त्म हो जायेंगे। इसलिए अब प्रदर्शन को विशाल रूप देने की जरुरत है।
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तीन दिवसीय धरना आगाज़
ज्ञात हो कि ट्रेड यूनियन सेंटर ऑफ इंडिया (TUCI) ने केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के विरोध में 5, 6 और 7 नवंबर को जंतर मंतर पर 3 दिवसीय धरना का आयोजन किया था।
इन तीन दिनों के दौरान धरने में भाग लेने वाले दिल्ली के प्रतिनिधियों के साथ, तेलंगाना, आंध्र, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, महा राष्ट्र, छत्तीसगढ़ आदि के नेताओं और टीयूसीआई और अन्य संगठनों के नेताओं ने अपना योगदान दिया।
TUCI की मुख्य मांग है कि मज़दूर विरोधी नए 4 लेबर कोड को रद्द किया जाये ,पीएसयू का निजीकरण बंद किया जाये, फांसीवादी विचारधारा का अंत किया जाये, न्यूनतम मज़दूरी को बढ़ाकर 27000 रुपए प्रति माह किया जाये।
TUCI द्वारा जारी रिपोर्ट से मिली जानकारी के मुताबिक ऑक्सफैम की रिपोर्ट है कि देश के 55.2 करोड़ लोगों के बराबर संपत्ति सिर्फ 98 अमीरों के पास है। जिस देश में करोड़ों मजदूर और मजदूर घोर गरीबी की खाई में फंसे हैं, इन्हीं चंद अमीर लोगों की मदद से देश को दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। इन अमीर सेठों की मीडिया दिन-रात दुष्प्रचार कर लोगों को नशा दे रही है।
TUCI के सदस्यों का कहना है कि इस कारपोरेट राज की राह में कोई बाधा न आए इसके लिए भय और आशंका का माहौल बनाया गया है। इसकी आड़ में अंधाधुंध निजीकरण हो रहा है।
बढ़ रहा असंतोष
रेलवे, भेल, तेल, गैस, सड़कें, हवाई अड्डे, बंदरगाह, दूरसंचार, बिजली, कोयला, बैंक बीमा, रक्षा आदि सभी निजी संपत्ति को बेचा जा रहा है। नोटबंदी, जीएसटी और फिर कोरोना लॉकडाउन ने बेरोजगारों की एक बड़ी फौज खड़ी कर दी।
अब डॉलर के मुकाबले रुपया 82 के पार जाने की बात कोई नहीं करता। महंगाई आसमान छू रही है। इस मुद्रास्फीति ने वास्तविक मजदूरी में गिरावट का कारण बना दिया है, जिससे मज़दूर के लिए अपना गुजारा करना मुश्किल हो गया है।
असंगठित सेक्टर को खत्म करने की साजिश है। इसके बजाय अस्थायी नौकरी, कैजुअल कर्मचारी, ठेका कर्मचारी, प्रशिक्षु। निश्चित अवधि के कर्मचारी, जैसे विभिन्न प्रकार के सस्ते श्रम का वर्ग बनाना, “काम करना क्षेत्र के मज़दूर पहले से ही जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, अब संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए अपनी जरूरतों को पूरा करना मुश्किल है।
संगठन के सदस्यों का कहना है आज इस असंगठित क्षेत्र में करोड़ों ग्रामीण विस्थापित गरीब और बेरोजगार सेना बिना सामाजिक सुरक्षा के 8000 से 10000 रुपये की मजदूरी पाने की दौड़ में लगी हुई है।
एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि 1947 के बाद से इतिहास के सबसे बड़े हमले में मोदी सरकार ने इस साल के अंत तक मजदूर वर्ग के खिलाफ चार श्रम संहिताओं को लागू करने के लिए कदम उठाए हैं। संसद में मंजूरी के बाद विभिन्न राज्य सरकारों ने नियमों का पालन नहीं किया है, इसलिए इसे अब तक लागू नहीं किया गया है।
निजीकरण है मुख्य कारण
एक ओर निजीकरण न केवल इन उद्योगों में उपलब्ध नौकरियों की संख्या को कम करता है, बल्कि रोजगार की गुणवत्ता को भी कम करता है। दूसरी ओर, निजी नियोक्ता उन अधिकारों को हथियाने की कोशिश कर रहे हैं जो श्रमिकों ने वर्षों से लड़े हैं। न्यूनतम वेतन अभी बाकी है।
यह जीवित रहने के लिए पर्याप्त नहीं था। संघ में संगठित होने के अधिकार और आवाज उठाने और हड़ताल करने के अधिकार पर हमला हो रहा है। नई पेंशन योजना वास्तव में एक घोटाला है, जो श्रमिकों को उनके जीवन के अंत में किसी भी सुरक्षा से वंचित करती है।
यह सब पूंजी मालिकों, खासकर विदेशी निवेशकों के लिए प्रोत्साहन के नाम पर किया जाता है। सरकार का मानना है कि अगर बड़े कॉरपोरेट्स को भारी मुनाफा कमाने की इजाजत दी जाती है, तो इसका कुछ हिस्सा पूरी आबादी में फ़िल्टर हो जाएगा। यह सफेद झूठ है।
इसका एक ही परिणाम है कि अंबानी और अदानी अमीर से सुपर रिच की ओर जा रहे हैं, लेकिन आम कामगार सही मायने में गरीब होता जा रहा है। आज उनका स्वास्थ्य सुरक्षित नहीं है। सरकार की लापरवाही से ईएसआई योजना अस्त-व्यस्त हो गई है। प्रोविडेंट फंड (पीएफ) के फंड को तरह-तरह से लूटा जा रहा है।
इन चार श्रम संहिताओं के अधिनियमन से “स्थायी श्रम” का विचार हमेशा के लिए गायब हो जाएगा। नए श्रम संहिता के तहत, एक नियोक्ता किसी कर्मचारी को अपनी इच्छानुसार किसी भी समय काम पर रख सकता है और निकाल सकता है। अब संघ के साथ बातचीत करने और सभी श्रमिकों के लिए एक समान वेतन समझौता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
इसके बजाय प्रत्येक कर्मचारी के साथ वेतन वार्ता अलग से की जाती है। यूनियन बनाने का अधिकार छीन लिया गया।
शीतकालीन सत्र में हो सकता है पारित
अब तक जहां 100 से अधिक श्रमिक कार्यरत थे, बर्खास्तगी या तालाबंदी के लिए हारने वाले से अनुमति लेना आवश्यक था। नए श्रम कानून के लागू होने के बाद यह प्रावधान केवल उन प्रतिष्ठानों पर लागू होगा, जहां 300 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। इस प्रमाण में श्रमिकों के अधिकारों में भी कटौती की जाती है। आज उनके पास न्यूनतम सुरक्षा है यानी जहां कहीं भी 20 से अधिक ठेका कर्मचारी काम करते हैं, तो उन्हें ठेकेदार पंजीकरण और लाइसेंस, विश्राम गृह आदि की आवश्यकता होती है। यह केवल वहीं लागू होगा जहां नए कानूनों के लागू होने के बाद 50 से अधिक संविदा कर्मचारी कार्यरत हैं।
ये नए श्रम कानून संसद में पारित हो चुके हैं, लेकिन विभिन्न राज्य सरकारों ने इन कानूनों के तहत नियम नहीं बनाए हैं और इसलिए उन्हें अब तक लागू नहीं किया गया है। यदि राज्य इस तरह के नियम नहीं बनाते हैं, तो हमें डर है कि केंद्र सरकार संसद के नवंबर सत्र में श्रम संहिता में संशोधन करके ऐसे नियम बनाने की अनुमति दे सकती है। केंद्र सरकार इस साल के अंत तक नए श्रम संहिता लागू करने की तैयारी कर रही है।
मजदूर वर्ग को इन चुनौतियों से लड़ना होगा। लगभग सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और अन्य बड़ी यूनियनों ने इन नए श्रम संहिताओं का विरोध किया। इसलिए उन्होंने सभी यूनियनों से श्रमिकों के अधिकारों पर सरकार के हमले के खिलाफ एक साथ आने का आह्वान किया। इसीलिए ट्रेड यूनियन सेंटर ऑफ इंडिया ने इस मुद्दे पर सार्वजनिक बहस के लिए 5, 6 और 7 नवंबर को दिल्ली में धरना दिया। इसके लिए देश के सभी प्रमुख ट्रेड यूनियनों को आमंत्रित करें।
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प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि 13 देश के किसान इस देश की राजधानी के चारों ओर एकत्र हुए और किसान विरोधी कानूनों को खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर लड़ाई लड़ी, सैकड़ों लोगों की कुर्बानी दी और हमारे सामने एक महान उदाहरण पेश किया। आइए हम उनके संघर्ष से प्रेरित हों। अब हम उस संघर्ष को उठाएं और अपने अधिकारों के लिए और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए लड़ें। क्रांतिकारी जयस ने कहा कि प्रतिरोध की इस शुरुआत को सफल बनाने के लिए आगे आए सभी कार्यकर्ताओं, लोकतांत्रिक संगठनों और व्यक्तियों के लिए।
TUCI की मुख्य मांगें
- नई चार मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को तत्काल बंद किया जाना चाहिए। निजीकरण को तत्काल रोका जाना चाहिए।
- संघ, हड़ताल और विरोध को बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकार दें। छंटनी और तालाबंदी को अवैध घोषित करें।
- अनुबंध प्रणाली को समाप्त करना और अनुबंध आधारित रोजगार जैसे निश्चित अवधि के कर्मचारी, अस्थायी प्रशिक्षु आदि को रोकना।
- मातृत्व अवकाश सहित स्थायी रोजगार, पेंशन, सामाजिक सुरक्षा और नौकरी की सुरक्षा प्रदान करें।
- घरेलू कार्यकर्ता, गिग वर्कर, प्लेटफॉर्म वर्कर, आशा वर्कर, आंगनवाड़ी वर्कर, मिड डे वर्कर आदि को “वर्कर” का दर्जा दिया जाए और सभी लेबर राइट्स दिए जाएं।
- जहां मलिन बस्तियां एकल घर का वादा पूरा करती हैं, वहां श्रमिकों के आवास का विनाश रुकना चाहिए।
- प्रवासी श्रमिकों को कार्यस्थलों पर आवास, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और सार्वजनिक राशन की सुविधा प्रदान की जाए।
- विक्रेता कानून लागू करें, तैयार ट्रैक और ई-रिक्शा वालों का उत्पीड़न बंद करें।
- रेलवे, भेल, तेल, गैस, सड़क, हवाई अड्डे, बंदरगाह, दूरसंचार, बिजली जैसे सार्वजनिक उपक्रम, कोयला, बैंक-बीमा, रक्षा आदि का निजीकरण तत्काल रद्द करें। यह एक राष्ट्रीय संपत्ति है। देश में सभी श्रमिकों को न्यूनतम वेतन 1000 रुपये प्रति दिन और 28000 रुपये प्रति माह और बेरोजगारी लाभ 15000 रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए।
- सभी ग्रामीण मजदूरों को साल भर काम की गारंटी दी गई और मांग की कि कई संघर्षों और बलिदानों के माध्यम से प्राप्त अधिकारों को लागू किया जाए।
‘मज़दूरों का संयुक्त मोर्चा बनाने की ज़रूरत’
टीयूसीआई के महासचिव संजय सिंघवी ने समापन भाषण दिया। उन्होंने कहा कि टीयूसीआई नए श्रम संहिता से लड़ने के लिए मज़दूरों का एक संयुक्त मोर्चा बनाने का प्रयास करेगा। इसके लिए हर राज्य में इसी तरह के धरनों का आयोजित किया जाएगा, जहां सभी यूनियनों को आमंत्रित किया जाएगा। इस तरह के एक संयुक्त संगठन के गठन का उचित तरीका खोजने के लिए अन्य सभी यूनियनों के साथ बातचीत की जाएगी।
उन्होंने वादा किया कि टीयूसीआई भी अपनी क्षमता के अनुसार 13 नवम्बर को मासा मोर्चा में भाग लेगा। उपस्थित सभी कार्यकर्ताओं ने कड़े शब्दों में कहा और नई श्रम संहिता से अंत तक लड़ने का संकल्प लिया।
इन सभी वक्ताओं के अलावा कॉमरेड संजय सिंघवी- टीयूसीआई के केंद्रीय महासचिव, कामरेड गिरी एटक के राष्ट्रीय नेता, कॉमरेड गौतम मोदी, एन.टी.यू.आई,आलिक चक्रवर्ती TUCI, कामरेड सब्यसाची मोहापटोन, टीयूसीआई, ओडिशा, भारत भूषण, टीयूसीआई, छत्तीसगढ़, कॉम. शाम मैथ्यू, टीयूसीआई, केरल, कॉमरेड गद्दाम सदानंदम – तेलंगाना सिंगरेनी माइन वर्कर्स यूनियन टीएसजीकेएस मानद अध्यक्ष, कॉमरेड भास्कर राव, ओपीडीआर, राष्ट्रीय नेता, शिवाजी रॉय, यूपी, राजीव धिमरी, ऐक्टू..और सैकड़ों प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
(स्टोरीः शशिकला सिंह।)
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मजदूर वर्ग की मुक्ति शोषण और प्रतारणा से सिर्फ समाजवाद में ही सम्भव है। समाजवादी क्रान्ति वर्ग संघर्ष के द्वारा ही हो सकता है है, और कोई विकल्प नहीं है।
लेबर कोड के खिलाफ संघर्ष या फिर दूसरे संघर्ष, जैसे कि किसानों का विरोध, बेरोजगारी और महंगाई के खिलाफ धरना प्रदर्शन, नागरिक कानून के खिलाफ संघर्ष, आदि मजदूर वर्ग को शिक्षित और एकताबद्ध करने के रास्ते भर हैं, अपने आप में पूर्ण संघर्ष नहीं हैं।