मात्र 15 दिनों का रोज़गार करने को भी तैयार हैं दिहाड़ी मज़दूर
भारत की आबादी आज 130 करोड़ से अधिक है, जिनमें अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों की संख्या बहुत बड़ी है। लेकिन इनदिनों दिहाड़ी मज़दूरों को रोज़गार की तलाश में दर-दर भटकन पड़ रहा है।
हाल ही में आई आजीविका ब्यूरो की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि देश में दिहाड़ी मज़दूर कम से कम 15 दिनों की रोज़गार तलाश कर रहे हैं।
राजस्थान की एक एनजीओ आजीविका ब्यूरो के सेंटर फॉर माइग्रेशन एंड लेबर सॉल्यूशंस की प्रोग्राम मैनेजर दिव्या वर्मा ने कहा कि देश में आर्थिक मंदी की वजह से मज़दूरों को आधे महीने से भी कम समय के लिए नौकरी मिल पाई है।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि इन दिहाड़ी मजदूरों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक रोजगार की अनिश्चिता है। किसी भी दिन इस बात की गारंटी नहीं होती कि उन्हें काम मिल जाएगा। सितंबर में आयोजित संकल्प ग्लोबल समिट 2022 में दिव्या ने कहा कि हाल में हमने कुछ आवासीय बस्तियों का दौरा किया, जहां भारी संख्या में दिहाड़ी मज़दूर रहते हैं। उन्होंने बताया कि मौजूदा आर्थिक मंदी के दौर में मज़दूरों को 15 दिनों से भी कम दिनों का काम मिल रहा है।
आजीविका ब्यूरो एक विशेष सार्वजनिक सेवा पहल है, जो भारत के अनौपचारिक और प्रवासी मज़दूरों के लिए सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पुणे में रोजाना करीब 2000 दिहाड़ी मजदूर सड़क और फ्लाईओवर्स के किनारे नौकरी की तलाश में इकट्ठा होते हैं। इस पर दिव्या ने कहा कि सिर्फ पुणे में 30 नाके (लेबर चौक) हैं। ऐसे नाकों पर प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में दिहाड़ी मज़दूर इकट्ठा होते हैं, जो ठेकेदारों, लेबर सप्लायर्स और बिचौलियों की प्रतीक्षा करते हैं।
नहीं मिलता कोई लिखित दस्तावेज
उन्होंने बताया कि इन मज़दूरों और ठेकेदारों के बीच बिना किसी लिखित दस्तावेज के मजदूरी दर, काम के घंटे और कार्य की प्रकृति पर बात होती है। दिव्या का कहना है कि यही कारण है जो भगुतान के अंतिम दिन नियमों का उल्लंघन होता है।
दिव्या ने कहा कि दिहाड़ी मज़दूरों को दैनिक मज़दूरी मात्र 500 से 600 रुपये है। इस हिसाब से मज़दूरों महीने के अंत तक सिर्फ 10 हजार रुपये ही मासिक वेतन मिल पता है। उनका कहना है कि यह देश में निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से बहुत कम है। इतना ही नहीं सर्वे के दौरान ये भी सामने आया है कि महिलाओं को पुरुष मज़दूरों की तुलन में काम दिहाड़ी दी जाती है। जब की दोनों से एक ही तरह का काम करवाया जाता हैं।
सामाजिक सुरक्षा का दिखावा
जारी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ईएसआईसी, भविष्यनिधि और असंगठित मजदूरों के लिए लॉन्च किये गए ई-श्रम पोर्टल द्वारा दी जाने वाली सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ भी दिहाड़ी मज़दूरों को नहीं मिल रहा है। रिपोर्ट में पुणे में हुए एक हादसे का उदहारण भी दिया गया है। पुणे में ऑटोमोबाइल निर्माण इकाई में काम के दौरान एक 19 साल के ठेका मज़दूर की चार उंगलियां काट गयी थी। हादसे के दिन तक उनका ईएसआईसी में रजिस्ट्रेशन नहीं था। जिसके कारण उसे अपने इलाज के ईएसआईसी सुविधा का लाभ नहीं मिल पाया।
सर्वे की रिपोर्ट में कंपनियों से आग्रह किया है दिहाड़ी मज़दूर या ठेका मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में शामिल करें।
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सर्वे में पाया गया है कि कंपनियां बिना किसी प्रशिक्षण के बहुत काम उम्र के दिहाड़ी मज़दूर या ठेका मज़दूरों को काम पर रख लेती हैं। इतना ही नहीं फैक्ट्री मालिकों द्वारा कार्यस्थल की सुरक्षा पर भी खासा ध्यान नहीं जाता है ,यही वजह है कि इन जगहों पर दुर्घटनाएं बढ़ जाती हैं।
पिछले साल 42000 दिहाड़ी मजदूरों ने की आत्महत्या
गौरतलब है कि देश में दिहाड़ी मज़दूरों के परेशनियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। सितम्बर में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने कुछ आकड़े के साथ एक रिपोर्ट जारी की थी। जिसमें दिहाड़ी मज़दूरों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं के आकड़े दिए गए थे। जो सच में हैरान करें वाले थे। जारी आंकड़ों में पाया गया है कि साल 2021 में कुल आत्महत्या करने वालों में अकेले दिहाड़ी मजदूरों द्वारा आत्महत्या करने की संख्या एक चौथाई है, जो अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है।
मिली जानकारी के मुताबिक साल 2021 के दौरान दर्ज किए गए 1,64,033 आत्महत्या के मामले सामने आये। इनमें 41 हजार से अधिक मामले दिहाड़ी मजदूरों से जुड़े हैं। कुल आत्महत्या के मामलों में 25.6 प्रतिशत मौतों की संख्या दिहाड़ी मजदूरों के नाम दर्ज हैं।
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