दिल्ली की सरहदों से अन्नदाता का सवाल, हमारे होते मुल्क में भुखमरी क्यों?
By पावेल कुसा
देश के शासकों! हम दिल्ली के बार्डरों से आपको मुखातिब हैं। हमने यहां बैठे हुए यह खबर सुनी है कि दो संस्थायों ‘कन्सर्न वर्ल्डवाईड ‘ एवं ‘ वैलट हंगर हिलफे ‘ ने सांझे तौर पर दुनिया में भुखमरी के बारे में एक इंडेक्स जारी की है।
इसमें दुनिया के 116 देश हैं जिनमें भारत का 101वां स्थान है। इतनी बड़ी दुनिया में सिर्फ 15 देश हैं जहां भारत से भी ज्यादा भुखमरी है। हमारे आस -पास के कई छोटे-छोटे देशों का हाल भी हमारे जितना बुरा नहीं है।
जब पिछले साल हम यहां पर आए थे, उस समय इस इंडेक्स में हमारा स्थान 94वां था। एक साल में देश में भूखे पेटों की संख्या और बढ़ गई। आपने तो बेशक इस रिपोर्ट की कमी निकालकर पीछा छुड़ा लिया है, लेकिन आस – पास फैलती भूख व अनाज को तरसते लोग तो सारी दुनिया को दिखाई देतें हैं।
एक दिन के दौरे पर आए किसी राष्ट्रपति के लिए झुग्गियों को ढंककर गरीबी की हकीकत को छुपा सकते हैं,लेकिन दुनिया से भूखे भारतीयों का दर्द नहीं छुपा सकते।
हमें अन्नदाता कहा जाता है। हम अनाज समेत सभी कुछ इस ज़मीन से पैदा करते हैं, हर कठिन-सुखद मौसम के बावजूद हम ये करते हैं। सूखे की मार में भी, बाढ़ के कहर में भी। हमने कभी भी गोदाम खाली नहीं रहने दिये। एक समय था जब आप को अनाज के लिए अमेरिका जैसे देशों के आगे हाथ फैलाना पड़ता था,परन्तु हमें पूरे मुल्क का पेट भरने की जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठाई व निभाई।
हमने अनाज के गोदाम भर दिए। जो बीज आपने कहे, जो कीटनाशक आपने बताई, हमने उसका ही उपयोग किया। इन जहरीले रसायनों ने बेशक हमारी पृथ्वी व पर्यावरण को दूषित कर डाला, हमारे हिस्से बेशक आत्महत्याएं ही आईं, पर हम अपनी ज़िम्मेदारी से हटे नहीं।
हमारी ज़िम्मेदारी अनाज पैदा करने की थी ,जो हमने किया। आपकी ज़िम्मेदारी इसको मंडियों में बर्बाद होने से बचाने की थी, देश के हर एक बाशिंदे तक पहुंचाने की थी, लेकिन आपने यह ज़िम्मेदारी नहीं निभाई! न आप से पहलों ने निभाई!
हमारा पैदा किया अनाज मंडियों में रौंदा जाता रहा या गोदामों में गलता-सड़ता रहा, आपने उसको ज़रूरतमंदों को बांटा भी नहीं। हमारे होते हुए, आपके होते हुए इस मुल्क के मज़दूरों के पेट खाली रहे!
हम और आप अभी तक अंग्रेजों के जमाने में पड़ते आकाल की बातें करते रहे हैं। मुल्क में अभी भी भूख से होती मौतें व कुपोषण के हालात किसी आकाल से कम नहीं। हमारे पैदा किए अनाज को मेहनतकशों तक पहुंचाने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली का जो प्रबंध था, आप उसमें कटौती करने में क्यों लगे रहे?
एक समय ज़रूरत की वस्तुओं भी लोगों को सस्ते दाम पर दी जाती थीं, पर पहले आप ने वस्तुओं में कटौती की, दाम बढ़ाए, मिट्टी का तेल भी बंद कर दिया। फिर अनाज-दाल तक सीमित कर दिया। अब राशन की सूचियों से लोगों को निकालना शुरू कर दिया और मजदूरों का बहुत बड़ा हिस्सा इस से बाहर कर दिया।
गोदामों में चूहे अनाज खाते रहे और मेहनतकशों के बच्चे कुपोषण के शिकार हो कर मौत के मुंह में जाते रहे। आपकी विशाल ताकत किसी काम न आई? पिछले सालों में आपने दूसरे देशों से कितने टैंक खरीदे, तोपों से लेकर युद्धक जहाज खरीदे, पड़ोसियों पर सर्जिकल स्ट्राइकें भी कीं, पर आप मंडियों में आ रहा अनाज संभाल न पाए, न ही नए गोदाम बनाए। गोदामों में पड़ा अनाज गरीबों/मेहनतकशों के मुंह तक न पहुँच सका ।
हम आपकी सत्ता के बार्डरों के नजदीक बैठे पिछले साल भर से जो कह रहे हैं, अब इस रिपोर्ट ने भी उसकी पुष्टि कर दी है। हम कृषि कानूनों को रद्द करने की, एम.एस.पी. व सरकारी खरीद की मांग करते हैं, हम सभी मजदूर मेहनतकश लोगों के लिए अनाज, खाद-पदार्थ आदि (पी.डी.एस.) का हक माँगते हैं।
आपके बनाए नए क़ानून अनाज को बड़े-बड़े कारपोरेट के हवाले करने वाले हैं। यदि हमारा पैदा किया अनाज आप गरीबों तक नहीं पहुंचा सके, तो फिर किसी कारपोरेट घराने को क्या जरूरत है कि वह अनाज जरूरतमंद तक पहुंचाए।
कोई बहुराष्ट्रीय विदेशी कंपनी हमारा पैदा किया अनाज जहाजों में भर कर विदेशों में लेकर जाएगी व श्रमिकों के मासूम बच्चे दाने -दाने के लिए तरसेंगे। वह हमारे साथ समझौते करके हमें वो फसलें बोने के लिए मजबूर करेंगे, जिनकी उन्हें अन्य दूसरे मुल्कों में जरूरत है। हमारे खेतों में उनके व्यापार व मुनाफे में बढ़ोतरी वाली फसलें होंगी।
यहाँ पर बैठे हम अक्सर आपकी ओर से बनने जा रही विश्व ताकत के ऐलान सुनते हैं। क्या भूखे पेटों के साथ भी कोई देश विश्व ताकत बन सकता है? क्या विश्व ताकत बनने का रास्ता यह है कि न अपने किसानों की फसलें खरीदो व न लोगों को अनाज दो। इन झमेलों में ही न पड़ो। हम ऐसी विश्व ताकत बनने से इनकार करते हैं।
अभी तक आप यही कहते रहे कि सरकार इतने पैसे जुटा कर इतना अनाज कैसे खरीदे व सस्ते दामों पर गरीबों को कहाँ से सप्लाई करे? इतना पैसा कहां से आएगा?
क्या मुल्क के पास सचमुच पैसे की कमी है? हमें बीज, खाद, कीटनाशक, मशीनरी बेचने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने हमारे इन खेतों से ही अरबों/खरबों रुपये कमाए हैं। मुल्क के अमीर परिवार दुनिया के चोटी के अमीरों में शामिल हो गए हैं। मुल्क में अरबपतियों की संख्या बढ़ती जा रही है।
गगन चूमती दौलत के ढेर में से कुछ प्रतिशत टैक्स वसूल कर क्या गरीबों को अनाज नहीं दिया सकता? जब धनकुबेरों के व्यापार व मुनाफों का ग्राफ जरा सा भी नीचे आए तो हमारी आय से भरा सरकारी खजाना राहत पैकेजों के नाम पर झटपट उनके लिए खुल जाता है। लेकिन अब श्रमिकों के पेट भी पूरे नहीं भर रहे तो क्या उन दौलतों से लोगों को अनाज देने के लिए सरकारी खजाना भरा नहीं जा सकता?
दुनिया हमें बता रही है कि दुनिया में भुखमरी की हालात क्या है। ये नए कानून इस हालात को अधिक ख़राब कर देंगे। भुखमरी से निकलने का रास्ता हमारी पैदा की हुई फसलों को आपकी ओर से खरीदने व सभी जरूरतमंदों तक पहुंचाने में है।
इसके लिए किसी रॉकेट साइंस की ज़रूरत नहीं। कोई माहिर नहीं चाहिए, कोई सैद्धांतिक ज्ञान नहीं चाहिए, बस खरा ईरादा चाहिए, लोगों से वफादारी चाहिए व अपनी जिम्मेदारी का अहसास चाहिए, जो आपको कभी हुआ ही नहीं। इसलिए तो आप भूखे रहते भारत का अनाज देशी-विदेशी कारपोरेट के हवाले कर रहे हो।
हम भरे गोदामों वाले मुल्क में, फसलों के अंबार लगाने वाले मुल्क में, भूखे मरते लोगों के मुल्क में अन्न का व्यापार मुनाफे के लिए नहीं होने देंगे। इस पर देशी व विदेशी कारपोरेट का कब्जा नहीं होने देंगे। हम सिर्फ अनाज पैदा नहीं करेंगे, इसकी रक्षा भी करेंगे व इसको भूखे पेटों तक पहुंचाने के लिए भी लड़ेंगे। ऐसे खेतों के पुत्र होने का फर्ज अदा करेंगे।
(लेखक पंजाबी पत्रिका सुर्ख लीह के संपादक हैं। संपर्क-pavelnbs11@gmail,com पंजाबी ट्रीबयून अखबार (8नवम्बर 2021)मे छपे लेख से हिंदी अनुवाद।)
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