निशाने पर अडानी अंबानी के बाद अब मार्क ज़ुकरबर्ग भी, भारी विरोध के बाद फ़ेसबुक ने बहाल किया किसानों का पेज
तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ अभी तक देशी कारपोरेट घरानों अम्बानी और अडानी के ख़िलाफ़ ही किसानों का गुस्सा था, लेकिन रविवार की शाम अचानक ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोआर्डिनेशन कमेटी के फ़ेसबुक पेज को डीएक्टिवेट किए जाने से गुस्सा अब फ़ेसबुक के मालिक ज़ुकरबर्ग के ख़िलाफ़ भी भड़क गया है।
कृषि कानून के खिलाफ देश भर के किसान संगठन दिल्ली में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, जिसका सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर भी खासा असर देखा जा रहा है।
संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से फेसबुक पर बनाए गए किसान एकता मोर्चा के पेज के रविवार देर शाम निष्क्रिय कर दिया गया। हालांकि, किसानों के नाराजगी जताने के बाद फेसबुक ने पेज को दोबारा बहाल कर दिया, लेकिन तबतक मार्क ज़ुकरबर्ग की छीछालेदर हो चुकी थी।
किसान आंदोलन को लेकर इंटरनेट पर फैलाए जा रही अफवाहों पर अपना पक्ष रखने और आंदोलन को सोशल मीडिया पर आगे बढ़ाने के लिए चार दिन पहले ही संयुक्त किसान मोर्चा ने सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स जैसे ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और स्नैप चैट पर किसान एकता मोर्चा नाम से अकाउंट बनाया था।
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चार दिन में इस अकाउंट पर हर घंटे हज़ारों की संख्या में फॉलोअर्स आ रहे थे। यही नहीं कई अकाउंट पर लोगों की पहुंच 12 लाख पार कर गई थी।
संयुक्त किसान मोर्चा की रविवार देर शाम प्रेस कॉन्फ्रेंस चल रही थी, जिसे फेसबुक पेज पर लाइव किया जा रहा था। लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म होने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा की आईटी टीम ने पाया कि उनका फेसबुक पेज डीएक्टिवेट हो गया है।
यही नहीं किसान एकता मोर्चा का कहना है कि उनका इंस्टाग्राम अकाउंट भी अब नहीं खुल रहा है। दोनों ही पेज पर मिलाकर कुल 1.50 लाख से अधिक फॉलोअर्स थे।
फेसबुक पेज को बंद करने को लेकर किसानों ने नाराजगी जताई। वहीं संयुक्त किसान मोर्चा ने किसानों की आवाज दबाने का आरोप लगाया। इसके कुछ देर बाद फेसबुक पेज फिर से एक्टिव हो गया।
लेकिन तबतक बात बिगड़ चुकी थी। सोशल मीडिया पर फ़ेसबुक के मालिक ज़ुकरबर्ग निशाने पर आ गए। उल्लेखनीय है कि अम्बानी की टेलीकम्युनिकेशन कंपनी जियो के साथ फ़ेसबुक ने हाल ही में एक बड़ी डील की है जिसके पीछे भारतीय बाज़ार के डिज़िटल प्लेटफ़ार्म में एकाधिकार स्थापित करने वाला माना जा रहा है।
सोशल मीडिया पर फ़ेसबुक को इस मनमाना कार्यवाही के लिए काफ़ी भला बुरा कहा जाने लगा। फ़ेसबुक यूज़र ध्रुव ने लिखा है, ‘कल पाखंडी का मत्था टेकने जाना और दूसरी तरफ फ़ेसबुक का किसान एकता मोर्चा का एकाउंट सस्पेंड करना और साथ में किसानों के मददगारों के यहां ED के छापे , तीनों पाखंडी की सोची समझी साज़िश का हिस्सा था।’
एक अन्य यूज़र असलम ख़ान ने लिखा है, ‘मुग़लो से लड़े तो सिख योद्धा थे,अंग्रेजो से लड़े तो सिख देशभक्त थे,लॉकडाउन में लँगर बांटा तो सिख फरिश्ते थे,और आज मोदी सरकार के खिलाफ है तो सिख देशद्रोही हो गये।’
बढ़ते गुस्से को देखते हुए फ़ेसबुक ने कुछ घंटों बाद ही इसे फिर से बहाल कर दिया।
लेकिन किसान एकता मोर्चा के लोगों ने अब इसका यूट्यूब पेज अधिक तेज़ी बढ़ाने की अपील की है और जल्द ही इसे 10 लाख पार कराने के लिए लोगों से समर्थन मांगा है।
इसका यूट्यूब पेज 16 दिसम्बर को बना था और वहां महज छह दिन के अंदर साढ़े सात लाख लोग इसके सदस्य बन चुके हैं।
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