चुनाव नतीजों के बाद किसान आंदोलन तेज करने का ऐलान, कहा- बीजेपी को जनता ने नकार दिया
भले ही ये विधानसभा चुनाव रहे हों लेकिन बीते पांच महीने से दिल्ली के बॉर्डर्स पर डटे हुए किसानों के लिए इसकी अहमियत मोदी सरकार के ख़िलाफ़ रेफ़रेंडम यानी जनमत संग्रह से कम नहीं हैं।
शायद यही कारण है कि पांच राज्यों में हुए चुनावों के नतीज़ों में बीजेपी को कुल मिलाकर मिली करारी शिकस्त से किसान मोर्चे में खुशी की लहर है और मोर्चे ने आंदोलन को और तेज़ करने का ऐलान किया है।
किसान नेताओं का कहना है कि राज्य विधानसभा चुनावों में किसानों और मजदूरों के भारी गुस्से के कारण भाजपा की यह हार हुई है। तीन कृषि कानूनो के माध्यम से मंडी व्यवस्था खत्म करना, कॉरपोरेट को स्टॉक हेतु खुली छूट देना, किसानों की जमीनों पर कॉरपोरेट के कब्ज़ा कर लेने की महत्वकांक्षा किसानों को समझ मे आ गयी है।
संयुक्त किसान मोर्चे ने एक बयान जारी कर कहा है कि किसानों को MSP न मिलने के कारण व MSP के नाम पर झूठ फैलाने के कारण किसानों का गुस्सा इन चुनावों में फूटा है। वहीं मजदूर वर्ग ने भी वोट से चोट देते हुए भाजपा को सबक सिखाया है।
बयान के अनुसार, नए लेबर कोड के माध्यम से सरकार मजदूरों को पूर्ण रूप से गुलाम बनाना चाहती है। 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे काम करने का फैसला मजदूरों को मंजूर नहीं है। मजदूरों ने भाजपा सरकार की PDS बंद करने की सोच के ख़िलाफ़ वोट दिया है।
मोर्चे का कहना है कि किसान जब से अपने राज्यों में इन तीन कानूनो का विरोध कर रहे हैं और अब दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हैं, सरकार लगातार उन्हें बदनाम कर रही है। कभी किसानों को राजनैतिक दलों से जोड़ा जाता है कभी चरमपंथी और अलगाववादी कहा जाता रहा है।
भाजपा के ख़िलाफ़ इन राज्यों में प्रचार करने के अपने कदम को सही ठहराते हुए मोर्चे ने कहा है कि अनेक दौर की बैठकों में भी जब भाजपा सरकार अपने घमंड पर कायम रही तब भी किसानों ने शांतमयी धरने को जारी रखा। भाजपा केवल चुनाव की भाषा समझती है और इसलिए किसानों ने भाजपा के खिलाफ चुनाव प्रचार किया।
बयान के अनुसार, यह देश के लोगों का सयुंक्त किसान मोर्चा में विश्वास और किसानों के प्रति सम्मान का नतीजा है कि भाजपा को विधानसभा चुनावों में बुरी हार का सामना करना पड़ा है। हम भाजपा सरकार को फिर चेतावनी देते है कि अगर सरकार हमारी मांगे नहीं मानती तो उत्तरप्रदेश से लेकर देश के किसी भी हिस्से में भाजपा की सरकार नहीं बनने दी जाएगी। देश के किसान मजदूर व संघर्षशील लोग अब एकजुट हो चुके है।
बयान में कहा गया है कि चुनाव परिणाम आने के बाद किसान नेताओ ने देश की जनता का धन्यवाद किया जिन्होंने सयुंक्त किसान मोर्चो के “नो वोट टू बीजेपी” अभियान को सफल बनाया। अब इस ऊर्जा को किसान आंदोलन मजबूत करने की दिशा मे लगाने की ज़रूरत है। कोरोना महामारी में जरूरी सावधानियां बरतते हुए इस आंदोलन को तेज किया जाएगी। हम देश के किसानों मजदूरो व आम नागरिकों से अपील करते है कि वे पहले की तरह किसान आंदोलन में पूरा सहयोग बनाए रखे।
इस दौरान किसान आंदोलन के नेताओं ने कहा है कि जब तक किसान आंदोलन जारी है तब तक भाजपा व उसके सहयोगी दलों के नेताओ का सामाजिक बहिष्कार जारी रहेगा। उन्हें किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं आने दिया जाएगा और न ही शादी-ब्याह में बुलाया जाएगा। किसानों के इस ऐतिहासिक आंदोलन में अब भी कोई किसानों से गद्दारी कर रहे है तो उसे यही सजा दी जाएगी।
लॉकडाउन को लेकर किसान नेताओं का कहना है कि सरकारें कोरोना महामारी के खिलाफ तकनीकी व नीतिगत स्तर पर व्यवस्था बनाने के विपरीत लॉकडाउन लगा रही है। लॉकडाउन लगाकर जन विरोधी फैसले किये जा रहे है, इसलिए हम राज्य सरकारों व केंद्र सरकार से अनुरोध करते है कि वे कोरोना के नाम पर किसानों व आम नागरिको को परेशान करना बंद करें। हरियाणा सरकार से विशेष अनुरोध है कि धरने पर आ जा रहे किसानों को कोई भी परेशान न करें व उन्हें बदनाम करने की कोशिश न करें।
बयान के अनुसार, असम के किसान नेता अखिल गोगोई, जिसको सरकार ने झूठे आरोपों के आधार पर जेल में रखा हुआ है, ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की है। शिबसागर संसदीय क्षेत्र के नागरिको ने उनमें विश्वास दिखाया है। हम सरकार से किसान नेता अखिल गोगोई की तुरंत बेशर्त रिहाई की मांग करते है।
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