बजटः किसानों को सज़ा, खेती, खाद, ग्रामीण विकास और मनरेगा कुल 93,484 करोड़ काट लिए

बजटः किसानों को सज़ा, खेती, खाद, ग्रामीण विकास और मनरेगा कुल 93,484 करोड़ काट लिए

By मुनीष कुमार

कारपोरेट का हित ही अब देश का हित है। देश की वित मंत्री निर्मला सीतारमण ने विगत 1 फरवरी को प्रस्तुत बजट में साफ संदेश दे दिया है। इस बजट से देश का पूंजीपति वर्ग प्रफुल्लित है और शेयर बाजार कुलांचे मार रहा है।

वित मंत्री ने बजट से पूर्व 14 दिसम्बर को देश के पूंजीपतियों के संगठन फिक्की, सीआईआई व ऐसोचेम आदि से बैठक कर बजट पर सुझाव मांगे थे। पूंजीपतियों के सुझावों को सरकार ने बड़ी मुस्तैदी के साथ बजट में शामिल किया है।

सीआईआई के अध्यक्ष उदय कोटक ने कहा था कि ऐसे दौर में जब सरकार की टैक्स से आमदनी गिर रही है, विनिवेश और सम्पत्तियों को भुनाने का आक्रामक अभियिान सरकार को थोड़ी राहत पहंचा सकता है।

वित मंत्री ने इस बजट में कारपोरेट घरानों के सुझावों की स्पष्ट छाप देखी जा सकती है। कारपोरेट घरानों की आय पर लगने वाले प्र्रत्यक्ष करों से सरकार को प्राप्त होने वाले राजस्व में निगम कर व आयकर की राशि का हिस्सा कम दिखया गया है तथा इसकी पूर्ति के लिए उदय कोटक की सलाह को विशेष तबज्जों दी गयी है।

वित्तीय वर्ष 2021-21 के बजट में सरकार के पास आने वाले 1 रुपये (100 पैसे) में से निगम कर के रुप में 18 पैसे तथा आयकर से 17 पैसे आने का अनुमान लगाया गया था। जिसे वर्तमान बजट 2021-22 में सरकार ने काफी कम करके दिखाया है। सरकार के पास निगम कर के रूप में 13 पैसे तथा आयकर से 14 पैसे आएंगे।

सरकार अपने घाटे को पाटने के लिए 1.75 लाख करोड़ रुपये विनिवेश से जुटाएगी। इसके लिए जीवन बीमा निगम व दो बैंकों की अपनी हिस्सेदारी को सरकार बेचेगी तथा साथ में एयर इंडिया, बी.पी.सी.एल, शिपिंग कारपोरेशन आफ इंडिया, समेत दर्जनों संस्थानों की नीलामी की जाएगी।

ऐसे वक्त में जब देश के किसान 3 कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर चारों तरफ से दिल्ली को घेरकर बैठे हैं। सरकार ने किसानों की आवाज सुनने की जगह इस बजट में भी किसानों के हितों पर कुठाराघात करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है।

वित्तीय वर्ष 2020-21 में सरकार ने कृषि बजट पर 1,54,775 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था जिसे घटाकर 1,48,301 करोड़ रु. कर दिया गया है।

खाद और उर्वरकों पर पिछले बजट में सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-21 में कुल 1,39,382 करोड़ रुपये खर्च किए हैं परन्तु नये बजट में इसे बढ़ाने की जगह घटाकर 84,041 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

ग्रामीण विकास की मद को 2,16,342 करोड़ रुपये के मुकाबले घटाकर होनहार वित मंत्री ने 1,94,633 करोड़ रु. पर सीमित कर दिया है।

मनरेगा पर खर्च 1,11,500 करोड़ रु से घटाकर 73,000 करोड़ रु. कर दिया गया है।

किसान सम्मान निधि के तहत देश के किसान परिवारों को प्रति वर्ष 6000 रु सरकार देती है। जिसकी मद में वर्ष 2020-21 में सरकार ने 75000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था इस वर्ष में इसे घटाकर सरकार ने 65,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

अगर ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े इन सारे मदों को जोड़ लिया जाए तो मोदी सरकार ने कुल 93,484 करोड़ रुपये काट लिए हैं। और वो भी तब जब किसान इतिहास के सबसे बड़े आंदोलन के साथ दिल्ली घेरे बैठे हैं।

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली मोदी सरकार ने देश की 65 करोड़ महिलाओं के लिए खर्च की जाने वाली राशि पर भी हमला किया है।

निर्मला सीतारमण ने एक महिला हाने के बावजूद भी के महिलाओं की सुरक्षा व उनके विकास से सम्बंधित बजट को घटा दिया है। महिला एवं बाल विकास के लिए उन्होंने 2020-21 के बजट में 30507 करोड़ रुपये आबंटित किये थे। इस बजट में इसे घटाकर 24934 करोड़ रु कर दिया है।

महिला सशक्तिकरण के बजट में तो और भी भारी कटौती की गयी है। वर्ष 2019-20 के बजट में महिला सक्तिकरण पर 901 करोड़ रु. खर्च किए गये थे। 2020-21 के बजट में 1,163 करोड़ रुपये महिला सशक्तिकरण का बजट था। जिसे इस बजट में मात्र 48 करोड़ रुपयों की नाममात्र की राशि पर सामित कर दिया गया है।

शिक्षा बजट पर सरकार ने पिछले बजट में 99,312 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था जिसे इस बजट में घटाकर 93,224 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

अल्पसंख्यक विकास के बजट को 1820 करोड़ से घटाकर 1564 करोड़ रु. कर दिया गया है। इतना ही नहीं समाजिक कल्याण का बजट भी पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 के 53,876 करोड़ के मुकाबले घटाकर 48,460 करोड़ रु. का कर दिया गया है।

इकनामिक टाइम्स के अनुसार इस बजट में सरकार स्वास्थ्य पर कुल 1,22,123 करोड़ रुपये खर्च करेगी। जिसमें 71,268 करोड़ रु स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर खर्च होंगे।

2,663 करोड़ रु. स्वास्थ्य अनुसंधान पर तथा 13,192 करोड़ रु. फायनेंस कमीशन से स्वास्थ्य की मद में अनुदान के तौर पर प्राप्त हुए है।

स्वास्थ्य बजट में 35,000 करोड़ व 13,192 करोड़ रु. कोरोना के कारण बढ़ाए गये हैं। इस तरह स्वास्थ्य पर सरकार का वास्तविक खर्च 73,931 हजार करोड़ का ही है। जो कि देश की 130 करोड़ की आबादी के लिए प्रतिदिन 2 रुपये से भी कम है।

कुल मिलाकर इस बजट का मूल मंत्र है धनी को और धनी बनाओ, निर्धनों को कंगाल।

(लेखक समाजवादी लोक मंच के संयोजक हैं।)

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