लोहड़ी पर पूरे देश में जलाई गईं कृषि क़ानूनों की प्रतियां, गुड़गांव में लेबर कोड को भी किया आग के हवाले
किसान मोर्चे के आह्वान पर बुधवार को पूरे देश में लोहड़ी के मौके पर कृषि क़ानूनों की प्रतियां जलाकर लोगों ने त्योहार मनाया।
गुड़गांव औद्योगिक बेल्ट के मज़दूरों ने किसान आंदोलन के समर्थन में काली पट्टी लगाकर अपना आक्रोष व्यक्त किया और शाम चार बजे राजीव चौक के पास लगे किसान मोर्चे पर अपनी एकजुटता ज़ाहिर करने पहुंचे।
इस मौके पर वहां तीनों कृषि क़ानूनों और चार लेबर कोड की प्रतियां जलाकर मोदी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया गया।
दिल्ली बॉर्डरों पर जमें किसानों ने लोहड़ी अपने घर से दूर मनाते हुए नए कृषि कानूनों की प्रतियां जलाईं। किसानों के समर्थन में पूरे देश में जगह जगह सरकार के ख़िलाफ़ ऐसे ही कार्यक्रम आयोजित किए गए।
संयुक्त किसान मोर्चा के परमजीत सिंह ने कहा कि अकेले सिंघू बॉर्डर पर ही कृषि कानूनों की एक लाख प्रतियां जलाई गईं। योगेंद्र यादव, गुरनाम सिंह चढूनी समेत अन्य किसान नेताओं ने भी कृषि कानूनों की प्रतियां जलाईं।
संयुक्त किसान मोर्चा के नेता डॉ. दर्शनपाल, बलबीर सिंह राजेवाल आदिने शाम साढ़े पांच बजे कृषि कानूनों की प्रतियां जलाकर लोहड़ी मनाई।
किसानों ने सरकार विरोधी नारे लगाए और देशभक्ति के गीत गाकर त्योहार मनाया।
उन्होंने बताया कि सभी प्रदर्शन स्थलों पर कानूनों की प्रतियां जलाकर लोहड़ी मनाई गई। मोर्चा आंदोलन को तेज करने की रणनीति के लिए बैठक करेगा।
हरियाणा के करनाल जिले से आए 65 वर्षीय गुरप्रीत सिंह संधू ने कहा, ‘‘उत्सव इंतजार कर सकते हैं। केंद्र की ओर से जिस दिन इन काले कानूनों को वापस लेने की हमारी मांग को मान लिया जाएगा, हम उसी दिन सभी त्योहारों को मनाएंगे।‘‘
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तीनों क़ानूनों पर स्टे लगाते हुए एक कमेटी गठित की थी। इसके अलावा 15 जनवरी को केंद्र सरकार के साथ प्रस्तावित बैठक के बीच संयुक्त किसान मोर्चा के पूर्व घोषित आंदोलन की रूपरेखा में कोई बदलाव नहीं है।
किसान संगठन आगामी 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली के लिए जनसमर्थन जुटाने के प्रयास में लगे हुए हैं।
लोहड़ी पंजाब का एक प्रमुख त्यौहार है और इसे दुल्ला भाटी की याद में मनाया जाता है, जिसने मुग़ल सल्तन से लोहा लिया और शहीद हुए थे।
रामनगर में भी जलाई गईं प्रतियां
उत्तराखंड के रामनगर में भवानीगंज चौराहे पर इंकलाबी मौजूद केंद्र के बैनर तले कृषि कानूनों एवं श्रम संहिताओं के कानूनों की प्रतियां फूंकी की गई।
इसमें प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन व प्रगतिशील भोजन माता संगठन के कार्यकर्ता भी शामिल हुए। प्रतियां फूंकने से पहले एक संक्षिप्त सभा की गई जिसमें केंद्र की मोदी सरकार द्वारा किसानों व मजदूरों के खिलाफ बनाए गए कानून को कॉरर्पोरेट वर्ग को समर्थन वाला बताया गया।
वक्ताओं ने कहा कि कृषि कानूनों के लागू होने के बाद किसानों को जहां उनकी फसलों का उचित मूल्य मिलना बंद हो जाएगा वही श्रम संहिताओं के लागू होने के बाद मजदूरों को 150 साल पहले की अधिकार विहीनता की स्थिति में ढकेल दिया जाएगा।
कृषि कानूनों के लागू होने के बाद मजदूरों और मेहनतकशों के लिए महंगाई बेतहाशा बढ़ जाएगी। अतः इन कानूनों का रद्द होना बहुत जरूरी है और इसके लिए पुरजोर संघर्ष करना पड़ेगा।
आज की केंद्र की फासीवादी सरकार जन संघर्षों की आवाज को सुनना पसंद नहीं कर रही है और उसको खालिस्तानी आंदोलन कहकर बदनाम कर उसका दमन करने का शडयंत्र कर रही है और हद तो अब ये हो गई है कि सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र सरकार की कुटिल नीतियों को लागू कराने के लिए उसका अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग कर रहा है।
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