किसान आंदोलन के समर्थन में एकजुट हुए बहुजन संगठन, ग़ाजीपुर बॉर्डर तक निकाला माटी संकल्प मार्च
किसान आंदोलन में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बहुजन संगठनों ने अपना समर्थन देते हुए रविवार को ग़ाज़ियाबाद में कौशाम्बी से ग़ाज़ीपुर बॉर्डर तक मार्च निकाला।
बहुजन समाजवादी मंच (बसम) द्वारा आयोजित ‘माटी संकल्प मार्च’ में ग़ाज़ियाबाद, बुलंदशहर, मेरठ और उत्तराखंड से आए सैकड़ों लोगों ने भागीदारी की।
रविवार को ही दलित स्कॉलर रोहित वेमुला की छठीं बरसी थी। प्रदर्शनकारियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।
रोहित वेमुला ने छह साल पहले हैदराबाद विश्वविद्यालय में अपने कमरे में आत्महत्या कर ली थी, जिसके बाद पूरे देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे।
दलित संगठन रोहित वेमुला की आत्महत्या को संस्थानिक हत्या बताकर मोदी सरकार और तत्कालीन शिक्षामंत्री स्मृति ईरानी को कठघरे में खड़ा किया था।
मार्च से पहले कौशाम्बी के अम्बेेडकर मूर्ति पर लोग इकट्ठा हुए और वहां एक सभा भी हुई।
इस मौके पर सिंघु बॉर्डर पर मौजूद संयुक्त किसान मोर्चे के प्रतिनिधि भी शामिल हुए और संविधान ख़त्म कर रही मोदी सरकार के ख़िलाफ़ बहुजन संगठनों को किसान आंदोलन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर एकजुट होने का आह्वान किया।
भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) के नेता ने कहा कि यूपी में यादव बनाम गैर यादव करके बीजेपी ने दलितों का वोट हासिल किया। इसी तरह हरियाणा में जाट बनाम गैर जाट का द्वंद्व खड़ा कर वोट हासिल किया।
उन्होंने कहा कि बीजेपी की यही नीति है कि जहां जिसका वोट अधिक है, उसे वो हासिल करने के लिए बहुजनों के बीच ही भेद डाल दिया। पंजाब में जट सिखों के ख़िलाफ़ दलितों को अपने पक्ष में लाने के लिए बीजेपी रैलियां कर रही है, लेकिन इस आंदोलन ने बीजेपी की इस बांटने वाली नीति को खारिज कर दिया है।
उन्होंने कहा कि बाबा साहब के संविधान को ख़त्म करने वाली मोदी सरकार के ख़िलाफ़ निर्णायक लड़ाई करनी होगी।
किसान आंदोलन और दलित आंदोलन एकजुट कैसे होगा, इसे लेकर उनका कहना था कि मोदी सरकार बाबा साहेब के संविधान को ख़त्म कर मनुस्मृति लागू करना चाहती है और बहुजन इसका पुरज़ोर विरोध कर रहे हैं और जब मोदी सरकार पूरी तरह घिरी हुई है, बहुजन संगठन भी अब आगे आ रहे हैं।
वो कहते हैं कि मोदी आरएसएस की नीति यही है कि सभी को बांट कर एक एक कर मारा जाए, लेकिन लोग इस नीति को अब समझ चुके हैं। मोदी सरकार के ख़िलाफ़ इतना बड़ा आंदोलन हो रहा है, अगर ये लड़ाई हार गए तो फिर कोई लड़ाई खड़ी नहीं हो पाएगी।
उन्होंने कहा कि ‘मोदी सरकार अपनी आखिरी लड़ाई लड़ रही है जबकि हमारी ये पहली लड़ाई है और अभी शुरू ही हुई है। हम अपील करते हैं कि किसानों के नेतृत्व में जो आंदोलन हो रहा है उसमें लोगों को शामिल होकर मोदी सरकार के पिछले छह सात सालों में किए गए अत्याचारों का विरोध करना चाहिए।’
उन्होंने कहा कि अगर ये आंदोलन हार गया तो देश में फासीवाद लागू हो जाएगा, मनुस्मृति लागू होगी और ब्राह्मणवादी राजसत्ता बनाई जाएगी और सभी को गुलाम बना दिया जाएगा। इसलिए जो भी लूटे जाने वाले लोग हैं वो किसान आंदोलन के पक्ष में आ रहे हैं।
यह मार्च दिल्ली के सभी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में किया गया है। बसम के बयान में कहा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा कृषि और श्रम क्षेत्र में सुधार के नाम पर बनाए जाने वाले क़ानून जनविरोधी हैं।
बसम के संयोजक संजीब माथुर ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार लगातार पूँजीपतियों के हितों को साधने का काम कर रही है। वैसे तो भारत की अब तक की सभी सरकारों ने पूँजीपतियों का ही साथ दिया है लेकिन पिछले छह सालों से शासन कर रही मोदी सरकार ने तो लोकतंत्र की मर्यादा को तार-तार कर दिया है।
समाजवादी लोकमंच से जुड़े मुनीश कुमार ने कहा कि इस सरकार ने सारे फ़ैसले जनविरोधी लिए हैं। इस सरकार ने आने-पौने दामों पर देश की संपत्ति को बेचा है। यह सरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निर्देश पर मज़दूर और किसान विरोधी क़ानून बना रही है। तीनों कृषि क़ानून और चारों श्रम संहिताएँ इसका एक उदाहरण है।
कार्यक्रम से जुड़े अशोक ने कहा कि नई शिक्षा नीति भी पूँजीपति हितों और मनुवादी सोच को स्थापित करने वाली है। वर्तमान किसान आंदोलन इन्हीं जनविरोधी नीतियों और जनआक्रोश की उपज है। ये इंडिया बनाम मेहनतकशों के भारत की लड़ाई है।
उन्होंने कहा कि बसम इस लड़ाई में मेहनतकश बहुजन भारत के पक्ष में है। अपनी इसी पक्षधरता के चलते माटी संकल्प मार्च किया है।
इस मार्च के अंदर चार राज्यों के पच्चीस ज़िलों के खेत-खलिहानों की माटी कलशों में लाई गई है। ये माटी कलश आंदोलन कर रहे
किसानों को स्मृति चिह्न के रूप में भेंट किए गए। दस किव्ंटल आटा और पच्चीस हज़ार चौदह रूपये बतौर समर्थन सहयोग दिया।
बसम का कहना है कि यह माटी संकल्प मार्च किसान आंदोलन में बहुजन समाज की सक्रिय भागीदारी का प्रमाण है। यह मार्च सरकार और भाजपा की विभाजनकारी नीतियों को भी एक चुनौती है।
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