ऑक्सीजन टैंकरों को किसानों ने दिल्ली बॉर्डर पर रोक रखा है? क्या है सच्चाई
दिल्ली में 26 अप्रैल तक जारी लॉकडाउन के बीच राजधानी के अस्पतालों में ऑक्सीजन और दवाओं की भारी किल्लत शुरू हो गई है। सोशल मीडिया पर इसका ज़िम्मेदार किसान धरने को ठहराया जा रहा है। लेकिन किसान मोर्चे ने इसका खंडन किया है।
संयुक्त किसान मोर्चे ने एक बयान जारी कर कहा है कि भाजपा आईटी सेल द्वारा लगातार प्रचार किया जा रहा है कि किसानों के धरने कोरोना से लड़ाई में बाधा डाल रहे हैं। यह झूठ फैलाया जा रहा है कि किसानों ने ऑक्सिजन से भरे ट्रक और अन्य जरूरी सामान के वाहन दिल्ली की सीमाओं पर रोके हुए हैं। किसानों पर यह भी आरोप लगाया जा रहा है वे कोरोना फैला रहे हैं।
असल में सिंघु, टीकरी और गाज़ीपुर बॉर्डर पर दिल्ली पुलिस की ओर से 26 जनवरी के बाद जो भारी बैरिकेटिंग की गई है, उसकी वजह से बाहरी राज्यों से आने वाले वाहनों को दिल्ली में प्रवेश करने में भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। और इसके लिए किसानों को दोषी ठहराया जा रहा है।
गौरतलब है कि हरियाणा की खट्टर सरकार ने इस कोरोना विस्फ़ोट के समय किसानों का धरना ख़त्म कराने के लिए अपील की है और जबरदस्ती किसानों को उठाने के लिए ऑपरेशन क्लीन चलाने की भी अफवाहें गर्म हैं।
किसान मोर्चे ने बयान में कहा गया है कि सयुंक्त किसान मोर्चा इन तमाम प्रयासों की निंदा व विरोध करता है। किसानों की कभी मंशा नहीं रही है कि वे सड़कों पर सोए, अपने घरों व ज़मीन से दूर रहे। सरकार ने अमानवीय ढंग से इन कानूनों को किसानों पर थोपा है। किसान कुछ नया नहीँ मांग रहे है, वे सिर्फ उसको बचाने की लड़ाई रहे है जो उनके पास है। इस अस्तित्व की लड़ाई में वे कोरोना से भी लड़ रहे है ओर सरकार से भी।
मोर्चे के बयान के अनुसार, लगातार हड़ताल, भारत बंद, रेल जाम करने के बाद भी जब सरकार ने किसानों की बात नहीं सुनी तो किसानों ने मजबूरी में दिल्ली का रुख किया। 26 नंवबर को किसान दिल्ली के अंदर आकर शांतिपूर्ण धरना करना चाहते थे परंतु किसानों को वहां तक पहुंचने नहीं दिया गया। 26 जनवरी की सरकार द्वारा सुनियोजित हिंसा के बाद दिल्ली की सीमाओं पर बड़े बड़े बैरिकेड, कीलें, पत्थर लगा दिए गए। पैदल जाने तक का रास्ता नहीं छोड़ा।
हालांकि आसपास के लोगों ने किसानों का समर्थन किया व वैकल्पिक रास्ते खोले। किसानों ने पहले दिन से ही जरूरी सेवाओ के लिए रास्ते खोले हुए है। सरकार द्वारा लगाए गए भारी बैरिकेड सबसे बड़े अवरोध है। हम सरकार से अपील करते है कि दिल्ली की तालाबन्दी तोड़ी जाए ताकि किसी को कोई समस्या न हो। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है पर मानवीय आधार पर किसान देश के आम नागरिक के साथ है।
उधर, सयुंक्त किसान मोर्चे ने दावा किया है कि किसानों मजदूरों के बड़े जत्थे दिल्ली की तरफ आना शुरू हो गए हैं। किसान फसल की कटाई के तुरंत बाद सिंघु, टिकरी, गाज़ीपुर, शाहजहांपुर मोर्चो को संभालने वापस आ रहे है। अगर सरकार को किसानों की सेहत की इतनी ही चिंता है तो तुरन्त तीन कानून रद्द करे व MSP पर कानून बनाए।
किसान मोर्चे ने देशभर से प्रवासी मजदूरों की लंबी यात्राओं के फिर से शुरू होने पर चिंता जताई है और कहा है कि दरअसल यह खतरा उन नवउदारवादी नीतियों का परिणाम है जिसका एक बड़ा भाग यह तीन कृषि कानून है। खुले बाजार व निजीकरण की नीतियों का ही परिणाम है कि आज हज़ारों लाखों की संख्या में मजदूर शहरों में सस्ती मजदूरी के लिए भटक रहे हैं।
सरकार खेती सेक्टर को मजबूत करने की बजाय खेती संकट पैदा करके शहरों में सस्ते मजदूर पैदा करना चाहती है पर अब किसान मजदूर इन नीतियों के ख़िलाफ़ हर हालत में डटकर लड़ेंगे।
गाज़ीपुर मोर्चे के किसान संगठनों व कार्यकर्ताओं ने खाने के पैकेट बना दिल्ली के बस अड्डो व स्टेशनों पर बॉटने शुरू कर दिये हैं। कौशाम्बी बस अड्डे पर प्रवासी मजदूरों को खाने के पैकेट वितरित किये गए।
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