काले कृषि कानूनों के खिलाफ झारखंड के आदिवासी समुदाय ने खोला मोर्चा

काले कृषि कानूनों के खिलाफ झारखंड के आदिवासी समुदाय ने खोला मोर्चा

झारखंड के खूंटी जिले में स्थानीय आदिवासी संगठनों ने 28 जनवरी को तीन नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर जिला मुख्यालय में महाधरना का आयोजन किया।

इस कार्यक्रम का नेतृत्व दयामनी बारला ने किया।

इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला ने कहा की इन कृषि कानूनों के लागू होने से परंपरागत खेती-किसानी नष्ट हो जाएगी।

कॉर्पोरेट की घुसपैठ से भोले-भाले ग्रामीणों की जमीन भी धीरे धीरे कंपनियों के हाथ में चली जाएगी जिससे किसानों के बीच बेरोजगारी बढ़ेगी।

झारखंड राज्य में विस्थापित परिवार, भूमिहीन परिवार की संख्या बहुत अधिक है। इसके अलावा 56 लाख बीपीएल परिवार भी है, जो  खाद्य संकट का सामना कर सकते है।

इन कानूनों से छोटे व्यापारी भी ख़त्म होंगे और आम उपभोक्ता भी महंगे दाम में अनाज खरीदने को मजबूर होंगे।

बारला का मानना है कि झारखंड में खेती-किसानी के क्षेत्र में कॉर्पोरेट के प्रवेश को किसी हाल में होने नहीं देंगे।

झारखंड राज्य के किसानों के आय को दोगुनी करने के लिए ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी किसानों के जल, जंगल, जमीन, झील-झरना, पहाड़-नदी नाला जैसे परंपरागत प्राकृतिक धरोहर की सुरक्षा की गारंटी करने की जरुरत है।

किसान का बेटा हूं.. झारखंड में कृषि कानूनों को लागू नहीं होने दूंगा

धरना को संबोधित करते हुए झारखंड के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने कहा कि झारखंड सरकार ने किसानों के हित को ध्यान में रखकर ही राज्य में 50,000 रुपए तक के किसानों के ऋण को माफ़ किया था।

उन्होंने कहा कि वे  दिल्ली के सिंघु बॉर्डर में दो दिन गुजारे थे और किसानों का दर्द समझा।

कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ झारखंड में किसान आंदोलन को झारखंड सरकार समर्थन करती है।

उन्होंने किसानों को आश्वासन दिया कि ‘ हम आपके अधिकारों के लिए मर मिटने के लिए तैयार हैं। मैं आपके आंदोलन के साथ खड़ा हूं।’

आज के महाधरना में शामिल आंदोलित किसानों का मानना है कि नए कृषि क़ानून लागू होने से परंपरागत खेती- किसानी, देसी खाद , बीज, अनाज सभी खत्म हो जाएंगे।

किसान अपनी भूमि के आकार-प्रकार के आधार पर उसमें गोडा, मडुआ, बदाम, शकरकंदा , चंवरा धान जैसे कई धान अपनी मर्ज़ी के अनुसार खेती करते हैं. उनके खेत– टांड के अगल- बगल हर मौसम में परंपरागत साग सब्जी की खेती होती है. जैसे चाकोड साग, सिलयारी साग और कोयनार।

यह बाजार में अच्छी कीमत में बिकता है। यह उनके लिए पौष्टिक आहार भी है और कॉर्पोरेट खेती से यह सब नष्ट हो जाएगा।

इस अवसर पर किसानों ने राज्यपाल,राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के नाम अपना एक मांग पत्र खूंटी जिला के उपायुक्त को सौपा। इस मांग पत्र की प्रमुख मांगे हैं :

1.तीनों नये कृषि कानून को रद्द किया जाए।

2.धान के साथ सब्जियों का एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय किया जाए।

3.जो गैर मजरुआ आम, गैर मजरुआ खास जमीन को भूमि बैंक में शामिल किया गया है, उसे तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाए।

4.क्षेत्र के सभी जल स्त्रोतों, नदी-नाला का पानी लिफ्ट ऐरिगेशन के तहत पाइप लाइन द्वारा किसानों के खेतों तक पहुंचाया जाए।

5.जमीन के दस्तावेजों के साथ हो रही छेड़छाड़ एवं जमीन की हेराफेरी बंद की जाए।

6.संविधान की पांचवी अनुसूची को कड़ाई से लागू किया जाए।

7.भूमिहीन परिवार को 5 एकड़ खेती का जमीन उपलब्ध कराया जाए।

8.किसानों को भूमिहीन बनाने वाली- भारतमाला सड़क परियोजना, जो खूंटी जिला के कर्रा प्रखंड के किसानों की खेती से होकर गुजरने वाली है, रद्द किया जाए।

9.अनाज के साथ सब्जी का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाए।

 

वर्कर्स यूनिटी के समर्थकों से एक अपील, मज़दूरों की अपनी मीडिया खड़ी करने में सहयोग करें

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

 

 

Abhinav Kumar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.