सरकार के साथ 9वें दौर की बातचीत भी बेनतीजा, कमेटी के बाकी सदस्यों से बाहर आऩे की अपील
आंदोलनरत किसानों और सरकार के बीच शुक्रवार को हुई नौवें दौर की बातचीत भी हर बार की तरह बेनतीजा रही।
किसान मोर्चे के नेता डॉ. दर्शनपाल ने एक प्रेस बयान जारी कर कहा है कि किसान तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने की मांग करते रहे और सरकार के प्रतिनिधि इन कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव देते रहे। अगली बैठक 19 जनवरी को तय की गई है।
बयान में कहा गया है कि किसान संगठनों द्वारा 13 जनवरी व 14 जनवरी को विभिन्न त्योहारों पर कृषि कानूनों की प्रतियां जलाने के कॉल पर देश-दुनिया से आये भारी समर्थन से किसानों का उत्साह बढ़ा है।
अब यह आंदोलन देशव्यापी और जनांदोलन बनता जा रहा है। हम उन तमाम संगठनों और व्यक्तियों का शुक्रिया अदा करते है जिन्होंने किसी भी रूप में किसान आंदोलन का समर्थन किया है।
बयान के अनुसार, ‘सरकार किसानों की मांग को सुनने की बजाय आंदोलन में शामिल लोगों को परेशान करने पर तुली है। जो समाजसेवी दिल्ली के लिए बसें भेज रहे है या शहीद किसानों को आर्थिक मदद कर रहे है उन्हें NIA – राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा बार बार जांच के नाम पर परेशान किया जा रहा है। हम इस मानसिक प्रताड़न का विरोध करते हैंं।’
डॉ. दर्शनपाल ने कहा कि ‘हम सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रस्तावित कमेटी के प्रस्ताव को पहले ही अस्वीकार कर चुके है। कमेटी के सदस्यों की सरकार की तरफ झुकाव की खबरे किसी से छुपी नही है। सदस्य भूपिंदर मान के कमेटी से बाहर होने के फैसले का हम स्वागत करते हैं, साथ ही हम अन्य सदस्यों से भी अपील करते हैं कि अंतरात्मा की आवाज़ सुनते हुए, इन कृषि कानूनों की असलियत को स्वीकार करते हुए वे भी अपना विरोध प्रकट करे और कानूनों को सिरे से रद्द करने की मांग रखे।’
मुम्बई फ़ॉर फार्मर्स के बैनर तले महाराष्ट्र के किसान संगठन, अन्य प्रगतिशील संगठनों के साथ मिलकर 16 जनवरी को विशाल रैली और आम सभा के आयोजन का फैसला लिया है।
सयुंक्त किसान मोर्चा ने अपील की है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग इसमें भाग लें।
सयुंक्त किसान मोर्चा की तरफ़ से कहा गया है कि ‘घोषित 26 जनवरी की किसान गणतंत्र परेड के संबंध में अनेक भ्रांतियां फैल रही हैं। हम यह स्पष्ट कर रहे है कि किसानों की इस परेड से भारत सरकार की परेड को नुकसान पहुंचाने का हमारा कोई मकसद नहीं है।’
मोर्चे ने स्पष्ट किया है कि 7 जनवरी को किसान संगठनों की मीटिंग में और 18 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद ही इस परेड की विस्तृत योजना बताई जाएगी।
इसके साथ ही मोर्चे ने इस बात को भी खारिज किया है कि सुप्रीम कोर्ट ही इस क़ानून को रद्द करने का फैसला ले। बयान के अनुसार, ‘मंत्रियों के समूह द्वारा यह दावा करना कि इन कानूनों को रद्द करने संबधी फैसला सुप्रीम कोर्ट ले, हम इस बयान का विरोध करते हैं। लोकसभा भारत के लोगों द्वारा चुने गए नेताओ का सदन है। ये कानून भी संसद ने बनाये हैं और इनको रद्द भी ससंद करे, यही हमारी मांग है।’
सयुंक्त किसान मोर्चा ने “सिक्ख फ़ॉर जस्टिस” नाम से एक संस्था द्वारा भड़काऊ बयानों की कड़ी निंदा की और विरोध दर्ज कराते हुए कहा कहा है, ‘हम किसानों से आग्रह करते हैं इस तरह के संगठनों से जागरूक रहे।’
दिल्ली के सभी बॉर्डर्स पर लगातार किसान बड़ी संख्या में आ रहे है। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा दिल्ली में सभी धरना स्थलों पर मुलताई में 12 जनवरी 1998 को शहीद हुए 24 किसानों को श्रंद्धाजलि दी गई।
उत्तराखंड और राजस्थान में लगातार ट्रेक्टर मार्च हो रहे हैं और सैकड़ों की संख्या में किसान दिल्ली कूच कर रहे हैं। बिहार और मध्यप्रदेश में किसानों के पक्के मोर्चे लगे हुए हैं।
“किसान दिल्ली चलो यात्रा” 15 जनवरी को ओडिशा से शुरू हुई। यह यात्रा सात दिनों में ओडिशा से पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार , उत्तर प्रदेश होते हुए दिल्ली बॉर्डर पर बैठे हुए अपने किसानों के पास 21 तारीख को पहुंचेगी।
“किसान ज्योति यात्रा” 12 जनवरी से पुणे से शुरू हुई है और यह 26 जनवरी को दिल्ली पहुँचेगी।
सुप्रीम कोर्ट की महिला विरोधी टिप्पणी को जवाब देने महाराष्ट्र के जलगांव से महिलाओं का एक जत्था दिल्ली रवाना होगा।
500 से ज्यादा की संख्या में केरल से किसान शाहजहांपुर बॉर्डर पर पहुंचे हैं। तमिलनाडु के किसानों ने भी कृषि कानूनों की कॉपी जलाकर भारत सरकार के इस तर्क का जवाब दिया है कि केरल और तमिलनाडु में किसान इन कानूनों का समर्थन करते हैं।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।