गाज़ीपुर मोर्चे को बचाने वाले किसान नेता अजीत सिंह नहीं रहे, किसान मोर्चे में शोक की लहर

गाज़ीपुर मोर्चे को बचाने वाले किसान नेता अजीत सिंह नहीं रहे, किसान मोर्चे में शोक की लहर

देश के पूर्व कृषि मंत्री व राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष किसान नेता चौधरी अजीत सिंह का गुरुवार को निधन हो गया। वो कोरोना से संक्रमित हो गए थे और उनका गुड़गांव के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था।

जैसे अजीत सिंह के देहांत की ख़बर आई दिल्ली बॉर्डर पर बैठे किसान मोर्चे में शोक की लहर दौड़ गई। सयुंक्त किसान मोर्चा ने भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुए कहा कि अजीत सिंह ने हमेशा साम्प्रदायिकता से परे किसानों के दर्द को मुख्य धारा की राजनीति में रखा था।

एक बयान जारी कर मोर्चे ने कहा कि अपने पिता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के विचारों को आगे ले जाते हुए अजीत सिंह ने इस किसान आंदोलन को भी खुले मन से समर्थन दिया था।

गौरतलब है कि 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च के बाद किसान धरने पर सरकार की ओर से बढ़े दबाव के बीच गाज़ीपुर बॉर्डर खाली कराए जाने का मन बना लिया था। हालांकि राकेश टिकैत के रोने की ख़बर प्रसारित होते ही भारी संख्या में जब पश्चिमी यूपी और हरियाणा के किसान पहुंचे तो सरकार को पीछे हटना पड़ा।

हालांकि पश्चिमी यूपी के जाट नेताओं के करीबी लोगों का ये कहना है कि 28 जनवरी की शाम को जब गाज़ीपुर के नेताओं के साथ मिलकर राकेश टिकैत ने गिरफ़्तारी देने का ऐलान किया तो अजीत सिंह उन नेताओं में से एक थे, जिन्होंने फ़ोन कर राकेश टिकैत की हौसला अफ़जाई की।

कहा तो यहां तक जाता है कि अजीत सिंह ने मोर्चे से किसी भी क़ीमत पर पीछे न हटने को कहा था और हर तरह के समर्थन देने का आश्वासन दिया था। राकेश टिकैत के क़रीबी लोगों ने निजी बातचीत में ये माना था कि अजीत सिंह का सपोर्ट उस समय बहुत महत्वपूर्ण था।

28 जनवरी को गाज़ीपुर मोर्चा बचने से पूरे किसान आंदोलन को एक नई संजीवनी दे गया, जिसे संयुक्त किसान मोर्चे के शीर्ष नेता भी मानते हैं। उसके बाद अजीत सिंह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में कई महा पंचायतों को आयोजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

यही वो टर्निंग प्वाइंट था जब मोदी सरकार को अपनी आक्रामक रणनीति से पीछे हटना पड़ा और उसके बाद किसी और मोर्चे पर हाथ डालने की उसकी आजतक हिम्मत नहीं पड़ी।

निश्चित तौर पर चौधरी अजीत सिंह के असमय चले जाने से किसान आंदोलन की एक बड़ी क्षति है। सभी दलों के नेताओं ने उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें भारतीय राजनीति का पुरोधा कहा।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अवधेश प्रसाद ने अजित सिंह को किसानों की आवाज बताया और कहा कि बुझते किसान आंदोलन के लिए वह आक्सीजन बन आगे आए। उनके समर्थन से ही किसान आंदोलन को नई ताकत मिली जो आज भी चल रहा है। अजित सिंह को कभी किसान नहीं भूला पाएगा।

आंदोलन से जुड़े सोशल मीडिया पेज बंद किए

वर्तमान किसान आंदोलन को कवर रहे सोशल मीडिया अकाउंट्स पर सरकार द्वारा लगातार दबाव बनाया जा रहा है। बुधवार को amaanbali ट्विटर हैंडल को भारत सरकार के दबाव में सस्पेंड कर दिया गया। यह एकाउंट किसान मोर्चे में हो रहे शहीदों की जानकारी समेत किसान आंदोलन से जुड़ी हर छोटी बड़ी जानकारियां लोगों के साथ साझा करता रहा है।

इस एकाउंट से कोरोना महामारी से संबंधित भी लोगों की मदद की जा रही है। किसान आंदोलन में लगातार लंगर और अन्य जरूरी सामान की सेवा करने वाले और कोरोना महामारी में आम लोगों की बढ़ चढ़कर मदद करने वाले सामाजिक कल्याण संगठन खालसा एड के प्रमुख रवि सिंह का फेसबुक अकाउंट भी सस्पेंड कर दिया है।

संयुक्त मोर्चा ने कहा है कि पहले भी किसान एकता मोर्चा के फेसबुक व इंस्टाग्राम पेज को बंद किया गया था। इसके बाद आंदोलन से संबंधित अन्य स्वतंत्र पेज को भी सस्पेंड किया गया था। इंटरनेट बैन करके सरकार ने एक तरफा एजेंडा भी फैलाया।

मोर्चा ने कहा है कि सरकार की स्वतंत्र पत्रकारिता और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हमले की हम निंदा व विरोध करते हैं और इन एकाउंट्स को तुरंत एक्टिव करने की मांग करते हैं।

कटाई के सीजन के लगभग पूरा होते ही किसानों ने वापस दिल्ली मोर्चो पर पहुंचना शुरू कर दिया है। गुरुवार को सिंघु बॉर्डर पर किसान अपनी ट्रैक्टर ट्रॉली में बड़ी संख्या में पहुँचे। आने वाले दिनों में भी दिल्ली मोर्चो पर इकट्ठा होकर सरकार पर दबाव मनाया जाएगा।

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Workers Unity Team

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