अंतरराष्ट्रीय समर्थन से गदगद किसान मोर्चे ने बिजली कर्मचारियों की हड़ताल को दिया समर्थन
अंतरराष्ट्रीय नामी हस्तियों की ओर से भारत के किसानों के समर्थन को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा ने खुशी ज़ाहिर की है और बिजली कर्मचारियों की एक दिवसीय हड़ताल को अपना समर्थन दिया है।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने कहा, केंद्र की निजीकरण नीति के खिलाफ देश भर के 15 लाख बिजली कर्मचारी 3 फरवरी को हड़ताल पर थे।
मोर्चा ने बयान जारी कर कहा है कि ‘भारत में चल रहे किसान आंदोलन के प्रति अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्वों के समर्थन को स्वीकार करता है। एक तरफ, यह गर्व की बात है कि दुनिया की प्रख्यात हस्तियां किसानों के प्रति संवेदनशीलता प्रकट कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत सरकार किसानों के दर्द को समझ नहीं रही है और कुछ लोग शांतिपूर्ण किसानों को आतंकवादी भी कह रहे हैं।’
मोर्चा ने देश भर के बिजली कर्मचारियों की एक दिन की हड़ताल को समर्थन किया है और कहा है कि ‘हम बिजली क्षेत्र के निजीकरण का कड़ा विरोध करते हैं। ड्राफ्ट इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2020 किसानों के साथ-साथ अन्य नागरिकों पर भी हमला है।’
गौरतलब है कि बुधवार को किसान आंदोलन के 71 दिन हो चुके हैं। मोर्चा का मानना है कि किसान आंदोलन दिन पर दिन मजबूत होता जा रहा है।
बयान में कहा गया है कि ‘उत्तर प्रदेश में किसान महापंचायतों में भारी समर्थन के बाद, किसानों ने मध्य प्रदेश के डबरा और फूलबाग, राजस्थान के मेहंदीपुर और हरियाणा के जींद में महापंचायतें आयोजित की हैं। आने वाले दिनों में बड़ी संख्या में किसान दिल्ली आएंगे।’
मोर्चा के नेता डॉ. दर्शन पाल ने कहा है कि राजस्थान और पंजाब के किसान लगातार शाहजहाँपुर सीमा पर पहुँच रहे हैं। सरकार व पुलिस के अत्याचारों के बाद, किसानों ने फिर से पलवल सीमा पर धरना शुरू कर दिया है।
उन्होंने उम्मीद जताई है कि ‘आने वाले दिनों में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से बड़ी संख्या में किसान इस स्थल पर पहुँचेंगे।’
मोर्चा ने सिंघु धरनास्थल पर पत्रकारों के प्रवेश को रोकने के लिए पुलिस की कार्रवाई की निंदा की है।
बयान में कहा गया है कि सरकार की ओर से इंटरनेट को पहले ही बंद कर दिया है और अब मीडिया के लोगों के विरोध स्थलों पर प्रवेश और कवरेज को भी सरकार रोक लगा रही है।
मोर्चा का कहना है कि सरकार इस आंदोलन की वास्तविकता को देश भर में आम लोगों तक पहुंचने से डर रही है और विरोध स्थलों से संचार को अवरुद्ध करने की पूरी कोशिश कर रही है। यह सब करके सरकार अपना किसान विरोधी प्रचार प्रसार करना चाहती है, जिसे किसान किसी भी कीमत पर नहीं होने देंगे।
संयुक्त किसान मोर्चे ने मांग की है कि जरूरत है कि इंटरनेट सेवाएं बहाल की जाएं, मुख्य और आंतरिक सड़कों की बैरिकेडिंग को हटाया जाए, आपूर्ति को स्वतंत्र रूप से अनुमति दी जाएं, निर्दोष प्रदर्शनकारियों को रिहा किया जाए, सुनियोजित भीड़ द्वारा शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर हमले सरकार द्वारा तुरंत रोके जाएं।
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