आंदोलनजीवी कहने से भड़के किसान नेता, कहा, आंदोलनजीवियों ने आज़ाद कराया, बीजेपी के पूर्वज अंग्रेजों के ख़िलाफ़ कभी आंदोलन नहीं किया
संयुक्त किसान मोर्चा ने सोमवार को राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में किसानों के लिए किए गए अपमानजनक शब्दों के लिए निंदा की है।
मोदी ने किसान आंदोलन को समर्थन देने वालों को आंदोलनजीवी कहा था, जिस पर मोर्चे ने बयान जारी कर प्रधानमंत्री की लानत मलानत की है।
बयान में मोर्चे ने कहा है कि ‘किसान प्रधानमंत्री को याद दिलाना चाहेंगे कि वे आन्दोलनजीवी ही थे जिन्होंने भारत को अंग्रेज़ी हुकूमत से मुक्त करवाया था और इसीलिए हमें आंदोलनजीवी होने पर गर्व भी है। यह भाजपा और उसके पूर्वज ही है जिन्होंने कभी भी अंग्रेजों के खिलाफ कोई आंदोलन नहीं किया। वे हमेशा जन आंदोलनों के खिलाफ थे इसलिए वे अभी भी जन आंदोलनों से डरते हैं।’
मोर्चे ने मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि अगर सरकार अब भी किसानों की मांगों को स्वीकार करती है, तो किसान वापस जाकर पूरी मेहनत से खेती करने के लिए अधिक खुश होंगे। यह सरकार का अड़ियल रवैया है जिसके कारण ये आंदोलन लंबा हो रहा है जो कि आंदोलनजीवी पैदा कर रहा है।
बयान में कहा गया है कि एमएसपी पर खाली बयानों से किसानों को किसी भी तरह से फायदा नहीं होगा और अतीत में भी इस तरह के अर्थहीन बयान दिए गए थे। किसानों को वास्तविकता में और समान रूप से टिकाऊ तरीके से तभी लाभ होगा जब सभी फसलों के लिए एमएसपी को ख़रीद समेत कानूनी गारंटी दी जाती है।
मोदी ने कहा था कि एमएसपी हमेशा रहेगी और पहले भी थी। हालांकि मोदी का एफ़डीआई का जुमला उलटा पड़ गया जिसे उन्होंने फॉरेन डिस्ट्रक्टिव इनवेस्टमेंट कहा था।
मोर्चे ने कहा है कि हम सभी तरह के FDI का विरोध करते हैं। पीएम का एफडीआई दृष्टिकोण भी खतरनाक है, यहां तक कि हम खुद को किसी भी FDI “विदेशी विनाशकारी विचारधारा” से दूर करते हैं। हालांकि, मोर्चा रचनात्मक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के साथ खड़ा है जो दुनिया में कहीं भी बुनियादी मानवाधिकारों को बनाए रखते हैं और पूरी दुनिया में सभी न्यायसंगत विचारधारा वाले नागरिकों से समान पारस्परिकता की अपेक्षा करते हैं क्योंकि “कहीं भी हो रहा अन्याय हर जगह के न्याय के लिए खतरा है”।
मोर्चे ने किसानों की मांगों को गंभीरता से और ईमानदारी से हल करने में मोदी सरकार की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाया है।
बयान में मोर्चे ने कहा है कि ‘हम इस तथ्य पर सवाल उठाते है कि सरकार किसान संगठनों को ड्राफ्ट बिल वापस लेने का आश्वासन देने के बावजूद विद्युत संशोधन विधेयक संसद में पेश कर रही है।’
बयान में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश में किसान महापंचायतों द्वारा दिए गए विशाल समर्थन से दिल्ली के धरनों पर बैठे किसानों में उत्साह बढ़ा है। आने वाले दिनों में इन महापंचायतो से किसान दिल्ली धरनों में शामिल होंगे।
मोर्चे ने कहा है कि ट्विटर अकाउंट्स के बाद, चल रहे किसान आन्दोलन से संबंधित कई वीडियो को YouTube से हटा दिया गया है। हम लोगों की आवाज को दबाने के इन प्रयासों का कड़ा विरोध करते हैं।
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