ट्रॉली टाइम्स- कारपोरेट मीडिया के मुकाबले किसान आंदोलन का अपना मीडिया
किसान आंदोलन का अपना अखबार निकालना केवल सिख किसानों के साधन संपन्न होने का संदेश नहीं देता, यह दिखाता कि हिंदी मीडिया के नामी अखबार खबरों को लेकर संदिग्ध हो चले हैं, आम आंदोलनकारी उन पर भरोसा नहीं कर सकता।
दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किसान आंदोलन इस मायने में खास है कि यह पूरी तरह आत्मनिर्भर आंदोलन है।
आंदोलनकारियों को जब लगा कि हिंदी के अखबार जब चीजों को कुछ का कुछ छाप रहे हैं और लोगों को आपस में ही सटीक जानकारी नहीं मिल पा रही तो उन्होंने आंदोलन चलने तक अपना खुद को अखबार निकालने का फैसला किया।
आंदोलन में लगभग 90,000 ट्रैक्टर्स हैं, तो अखबार का नाम भी इसी से जुडा रखा गया, ट्राॅली टाइम्स।
इसकी वजह यह थी कि ट्रॅाली पर बैठे बैठे ही कुछ आंदोलनकारियों को अपना अखबार निकालने का खयाल आया था।
- निशाने पर अडानी अंबानी के बाद अब मार्क ज़ुकरबर्ग भी, भारी विरोध के बाद फ़ेसबुक ने बहाल किया किसानों का पेज
- मौजूदा किसान आंदोलन मोदी सरकार के सामने अभूतपूर्व चुनौती क्यों है?
अखबार के संपादक और प्रकाशक हैं 46 वर्षीय सुमीत मावी, जो फिल्मों के पटकथा लेखक हैं और 27 वर्षीय गुरदीप सिंह धालीवाल, जो डॉक्यूमेंटरी फिल्म फोटोग्राफर हैं।
चार पृष्ठों के इस बुलेटिन में तीन पृष्ठ पंजाबी केे हैं और एक पृष्ठ हिंदी का।
चूंकि सिंघु और टिकरी बाॅर्डेर पर सारा दिन भाषण, गतिविधि, घोषणा आगमन होते हैं और सभी के लिए इस कई किलोमीटर में फैले आयोजनों की जानकारी रखना सम्भव नहीं।
इसीलिये यह अखबार अब सारी सूचना एक साथ सभी तक ले जा रहा है। ट्रॉली टाइम्स में गतिविधियों की जानकारी दी जाती है और किसान नेताओं के वक्तव्य प्रकाशित किये जाते हैं।
- मुंबई में रिलायंस हेडक्वार्टर पर हज़ारों लोगों का हल्ला बोल, कारपोरेट लूट के ख़िलाफ़ निर्णायक जंग छेड़ने की अपील
- अम्बाला में खट्टर को दिखाए काले झंडे, सिंघु बॉर्डर पर दुष्यंत चौटाला के गुमशुदगी वाले पोस्टर
साथ ही फोटो, कार्टून, कविताएँ और खबरें भी। शुरू में खर्च संपादकों ने अपनी जेब से किया, पर अब उन्हें दूसरों से आर्थिक सहयोग मिल रहा है।
इस अखबार को kisanekta.in वेबसाइट पर भी पढ़ सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि कारपोरेट मीडिया की रिपोर्टिंग से किसान आंदोलन में एक किस्म का आसंतोष है। सिंघु बॉर्डर पर बड़े मीडिया घरानों के ख़िलाफ़ लोगों में इतना असंतोष है कि वो रिपब्लिक, आजतक, ज़ी न्यूज़ से मीडिया कर्मियों के ख़िलाफ़ नारेबाजी होती है।
लेकिन वैकल्पिक मीडिया जैसे छोटे यूट्यूब चैनलों, वेबसाइटों, पत्रिकाओं पर लोगों का भरोसा अधिक दिखता है।
इसी के चलते एक हफ़्ते पहले किसानों की तरफ़ से किसान एकता मोर्चा के नाम से फ़ेसबुक पेज, यूट्यूब चैनल, ट्विटर और इंस्टाग्राम की शुरुआत की गई। लेकिन शुरू से ही इसकी बढ़ती लोकप्रियता के चलते फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम पेज को फ़सेबुक ने बंद कर दिया।
लेकिन भारी विरोध के चलते चार घंटे में ही इसे फिर से चालू करना पड़ा। तबसे ये पेज और तेज़ी से लोकप्रिय हो रहे हैं और कथित मुख्य धारा की मीडिया को चुनौती दे रहे हैं।
ट्रॉली टाइम्स भी इन्हीं माध्यमों में से एक है, जिस पर किसानों को भरोसा है और जो आंदोलनों की ख़बर में किसानों के पक्ष को मजबूती से रखता है।
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