महिलाओं ने संभाली ”किसान संसद” की कमान, नए कृषि कानून के विरोध में बुलंद की आवाज

महिलाओं ने संभाली ”किसान संसद” की कमान, नए कृषि कानून के विरोध में बुलंद की आवाज

किसान आंदोलन के 8 महीने पूरा होने पर जंतर मंतर पर महिलाओं ने किसान संसद की कमान संभाली। 26 जुलाई को सिंघू बॉर्डर से करीब 200 महिलाओं का जत्था बसों से जंतर मंतर पहुंचा। इस दौरान भारी संख्या में पुलिस बल नजर आया।

किसान संसद में इस दौरान महिलाओं से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा हुई और संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास किया गया।

किसान प्रतिनिधियों ने कहा कि  देश में 24 साल पहले महिलाओं को आरक्षण देने की बात कही गई थी, लेकिन आजतक ऐसा नहीं हुआ है।  महिलाओं के उत्थान के लिए जरूरी है कि पहले उन्हें 33 फीसदी आरक्षण दिया जाए। जिसे बढ़ाकर 50 फीसदी किया जाए।

किसान संसद में शामिल हुईं महिलाओं ने कहा कि देश की आधी आबादी का सभी क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व बढ़ना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि उन्हें संसद में 33 फीसदी आरक्षण मिले और जल्द से जल्द इसे लागू भी किया जाए।

चर्चा के दौरान महिलाओं ने तीनों कृषि कानूनों की खिलाफत की और उन्हें देश के किसानों के लिए घातक बताया। सोमवार को कुल तीन सत्र हुए जिनमें मुख्य तौर पर आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम पर जमकर बहस हुई। किसान संसद में सभी प्रतिनिधियों ने इस कृषि कानून को महंगाई बढ़ने का दस्तावेज बताया।

किसान नेता और पहले सत्र की उपाध्यक्ष जगमति सांगवान ने  कहा कि  इस कानून से खाद्य पदार्थों की महंगाई सांतवें आसमान पर पहुंच जाएगी।  इस कानून के जरिए निजी क्षेत्र को असीमित भंडारण की छूट दी जा रही है। यह जमाखोरी और कालाबाजारी को कानूनी मान्यता देने जैसा है।

वहीं, इस कानून में स्पष्ट लिखा है कि राज्य सरकारें असीमित भंडारण के प्रति तभी कार्रवाई कर सकती हैं जब वस्तुओं की मूल्य वृद्धि बाजार में दोगुनी होगी। एक तरह से देखें तो यह कानून महंगाई बढ़ाने की भी खुली छूट दे रहा है। उन्होंने कहा कि क़ानून की वजह से कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को होगा।

किसान संसद के तीन सत्रों की अध्यक्षता की जिम्मेदारी तीन महिला प्रतिनिधियों को सौंपी गई। प्रत्येक सत्र में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और स्पीकर रही। तीनों सत्रों में प्रमुख तौर पर कृषि कानूनों पर बहस हुई और सभी 200 महिलाओं ने कानूनों का विरोध किया।

पंजाब के भटिंडा से आई किसान ने सुखविंदर कौर ने कहा कि हक की इस लड़ाई में महिलाएं भी पूरे संघर्ष के साथ लड़ती रहेंगी। उन्होंने कहा कि वह पिछले सात महीने से आंदोलन में शामिल है।

इस बीच उन्होंने कई उतार-चढ़ाव भी देखें लेकिन वह आंदोलन में डटी रहीं। किसान नेता बलजीत ने कहा कि केंद्र सरकार कॉरपोरेट घरानों की हाथ की कठपुतली बन गई है। उसी के इशारों पर यह कानून लाए गए हैं। उन्होंने कहा कि आवश्यक वस्तु अधिनियम के लागू होने से किसान भूखे मरने को मजबूर हो जाएंगे और सिर्फ बड़े पूंजीपतियों को लाभ मिलेगा।

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Amit Singh

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