यूरोप के कई देशों में किसान आंदोलन उफान पर, फ्रांस में किसानों ने किया प्रमुख राजमार्गों पर कब्ज़ा
By Rachel Marsden
फ्रांस में चल रहे किसानों के आंदोलन के बाद फ्रांसीसी सरकार देश के प्रमुख राजमार्गों से बड़ी संख्या में ट्रैक्टरों को हटाने के लिए संघर्ष कर रही है.
किसान आंदोलन के प्रभाव को लेकर ओडोक्सा द्वारा किये गए सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 89% फ्रांसीसी नागरिक प्रदर्शनकारी किसानों का समर्थन कर रहे हैं.
अब फ्रांस के भी किसान उस आंदोलन में शामिल हो गए हैं, जिसमें अब यूरोपीय संघ का लगभग 20% हिस्सा शामिल है. इस एक खास ब्लॉक के 27 देशों में से पांच में किसानों ने अपनी मांगो को लेकर सड़कों को अवरुद्ध कर रखा हैं.
पोलैंड, रोमानिया, जर्मनी और नीदरलैंड के किसानों के इस आंदोलन को फ्रांस के किसानों का समर्थन मिलने के बाद इस आंदोलन में एक तीव्र गति देखी जा रही है.
फ्रांसीसी किसानों की शिकायतें भी पूरे यूरोपीय संघ के किसानों की शिकायतों से मिलती-जुलती हैं. वे अपनी ही सरकारों से नाराज़ हैं.
किसानों को इस बात से शिकायत है कि ब्रुसेल्स में हुए मीटिंग के बाद उनकी अपनी निर्वाचित सरकारें टेक्नोक्रैट के दबाव में अपनी नीतियों को किसानों के खिलाफ बदल रहे हैं.
इन पांचो ही देशों में किसानों को अपनी सरकार के इन्हीं नीतियों के खिलाफ सड़क पर उतरना पड़ा,इसलिए उनकी मांगें भी समान है.
किसान ऊर्जा के लिए उचित मूल्य चाहते हैं जबकि यूरोपीय संघ ने न केवल महंगी जलवायु नीतियां लागू की हैं जो जीवाश्म ईंधन को प्लेग की तरह मानती हैं. बल्कि रूस-यूक्रेन में यूक्रेन का समर्थन करने के लिए यूरोप की अर्थव्यवस्था को चलाने वाली सस्ती रूसी गैस की अपनी आपूर्ति को नष्ट करने का भी फैसला किया है.
साथ ही उन्होंने यूक्रेन से वस्तुओं और सेवाओं पर आयात शुल्क हटाने का फैसला किया, जिससे यूरोपीय संघ में ट्रक ड्राइवरों की बाढ़ आ गई जो स्थानीय प्रदाताओं को कम कीमत पर अपना सामान बेचते हैं. और तो और उन कृषि उत्पादों को भी कम कर देते हैं जो यूरोपीय किसानों के यूरोपीय संघ के मानकों को भी पूरा नहीं करते हैं.
इन सब नीतियों की वजह से सरकारें अपनी खर्च को कम करने के उपाय ढूंढ रही हैं और ऐसे में किसानों पर बोझ डाला जा रहा है.
किसानों का कहना है कि ” सरकार अपने सरकारी खजाने को भरने के लिए किसानों के करों में बेतहाशा बढ़ोतरी कर रही है. ब्रुसेल्स में हुए सम्मलेन के बाद अंतहीन मुक्त व्यापार सौदों के माध्यम से सस्ते विदेशी आयात को प्रतिस्थापित कर रही है. जिन देशों के साथ मुक्त व्यापर को बढ़ावा दिया जा रहा ,वहां के किसानों को समान नियामक आदेशों के तहत काम नहीं करना होता जबकि हमें जलवायु परिवर्तन नीतियों के साथ काम करना पड़ता है.”
किसानों के इस आंदोलन के साथ आम लोगों की भी सहानुभूति देखी जा रही है. आम लोग भी देश में गैस और बिजली के बढ़ते दामों से परेशान है, उनकी क्रय शक्ति ख़त्म होती जा रही है.
लोगों में गुस्सा तब और बढ़ गया जब उनकी अपनी सरकार यूक्रेन को समर्थन देने को अपनी नैतिक जिम्मेदारी बताती है. जबकि ये युद्ध खुले तौर पर देश के पूंजीपति घरानों और सैन्य औद्योगिक परिसर के लिए व्यापर बढ़ने का एक अद्भुत मौका रहा है.
आम जनता की शिकायत है कि इन सब नीतियों पर सरकारी नुमाइंदे अपने विचार प्रकट कर देते है ,लेकिन जब फ्रांसीसी नेशनल असेंबली में बढ़ते महंगाई को नियंत्रित करने के लिए भत्ते के रूप में €300 ($327) प्रति माह की वृद्धि को मंजूरी दी जाती है तब सरकार इसको अनसुना कर देती है.
आम लोगों का भी यही मानना है कि सरकार ये सारे फैसले ब्रुसेल्स में हुए सम्मलेन के बाद उन टेक्नोक्रैट के फैसलों को अमलीजामा पहनाने के लिए कर रही है.सरकार बड़े घरानों के द्वारा संचालित नीतियों को आम जनता पर थोपने के लिए किसी भी हद्द तक जा सकती है.
24 जनवरी की दोपहर को दक्षिण पश्चिम फ़्रांस में एजेन प्रान्त के ठीक सामने गुस्साए फ्रांसीसी किसानों द्वारा टायरों और खाद की एक विशाल कतार में आग लगा दी गई. हालांकि उपस्थित कुछ किसानों ने इस कदम की निंदा की लेकिन सरकारी नीतियों को लेकर उनकी परेशानी समान थी. मौके पर पहुंचे पुलिस और अग्निशामकों ने भी पहचान छिपाते हुए कहा कि वो लोग भी राष्ट्रपति इमैनुअल की नीतियों से तंग आ चुके हैं.
फ्रांस के दक्षिण में रहने वाली 35 वर्षीय मवेशी और मक्का किसान एलेक्जेंड्रा सोनाक और उनके परिवार के तीन सदस्यों में से दो को टूलूज़ के पास किसानों की राजमार्ग नाकाबंदी के दौरान सुबह अंधेरे में एक कार ने टक्कर मार दी. सोनाक और उसकी 12 वर्षीय बेटी की मौत हो गई, जबकि उनके पति स्थिति चिंताजनक है.
लोगों का गुस्सा तब और बढ़ गया जब सोनाक के परिवार पर हमला करने वाले तीन अर्मेनियाई लोगों को कथित तौर पर सरकार द्वारा निष्कासन आदेश के तहत रख कोई करवाई नहीं की गई.
मालूम हो इससे पहले कनाडा में ट्रक ड्राइवर के हड़ताल के बाद प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो की सरकार द्वारा उन पर आपातकालीन अधिनियम लागू कर उनको गिरफ्तार कर लिया गया था, यहां तक की सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे इन लोगों के बैंक खातों को भी अवरुद्ध कर दिया गया था.
बाद में कनाडाई संघीय अदालत द्वारा इन सभी को रिहा कर दिया गया. अदालत ने इसके साथ ही कहा कि “सरकार का ये कदम बुनियादी अधिकारों और स्वतंत्रता का उल्लंघन है साथ ही ये बढ़ते अधिनायकवाद का बड़ा संकेत भी है.”
इससे पहले जर्मन किसानों और ट्रक ड्राइवरों ने भी देश में एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया है. किसानों ने बर्लिन की सड़कों को अपने ट्रैक्टर से जाम कर दिया.
वहां के किसानों ने भी अपनी सरकार की गुमराह ऊर्जा नीतियां, उनके कृषि वाहनों को ईंधन देने वाले डीजल पर अधिक कर लगाने,जीवाश्म ईंधन पर रोक और रूस से सस्ती गैस के खरीद को लेकर आंदोलन खड़ा किया.
जर्मनी के किसानों ने बताया की उनकी अपनी चुनी हुई सरकार ने उनके आंदोलन को कुचलने की लिए सभी हथकंडे अपनाये . यहां तक आंदोलनकारियों को कट्टरपंथी तक घोषित किया गया लेकिन आम लोगों से मिले समर्थन ने आंदोलन को ज़िंदा रखा.
इन आन्दोलनों को ट्रक चालक, बेकर, छात्र, अग्निशामक और पुलिस का समर्थन मिलता दिख रहा है. आंदोलन लगभग पुरे यूरोप में साझा रूप से दिख रहा है.
वही सरकारों का आंदोलन को कुचलने का हर तरीका विफल होता दिख रहा है. आंदोलन को तोड़ने के लिए बड़े जोत को छोटे जोत के विरुद्ध साथ ही विभिन्न राजनितिक विचारों में बांटने के सारे प्रयास लगभग पूरी तरह से किसानों ने विफल कर दिए हैं.
आंदोलन में शामिल युवा किसानों का कहना है कि ” वे सप्ताह में 80 घंटे काम करते हैं लेकिन यूरोपीय संघ की ओर से इतने नियम थोप दिए जाते है कि हम पंगु महसूस करते है. लालफीताशाही ने हमारे खेतों पर कब्ज़ा कर लिया है.”
आंदोलन का वर्तमान स्वरुप बता रहा की सरकारों की तरफ से आंदोलन को खत्म कराने के सारे हथकंडे आग में घी का काम करेंगे. किसानों की मांगो को पूरा कर के ही इस गहराते संकट का समाधान किया जा सकता है.
(RT.कॉम की खबर से साभार)
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