गाज़ीपुर और पलवल बॉर्डर: आपसी सहयोग से आगे बढ़ा रहे आंदोलन को किसान-4
By एस. वी. सिंह
चौथा मोर्चा: गाज़ीपुर बॉर्डर
इस यादगार किसान संघर्ष का पूर्वी मोर्चा दिल्ली से लगभग 40 किमी दूर एन एच-24 पर गाज़ीपुर मंडी के पास है।
जिस दिन ये स्तंभकार आन्दोलन के इस स्थल पर पहुँचा उस दिन हाई वे पर कोई भी अवरोध नहीं था, वाहन बगैर किसी रूकावट के आ-जा रहे थे।
दरअसल इस मार्ग को अब एक्सप्रेस-वे में रूपांतरित किया गया है। दिल्ली-यू पी की इस बॉर्डर पर फ्लाईओवर की वज़ह से एक्सप्रेस वे ज़मीन से लगभग 10 मीटर की ऊंचाई पर है और वहाँ नज़दीक में कोई प्रवेश अथवा निकास का कट नहीं है और सिंघु बॉर्डर वाले तजुर्बे से सीखकर पुलिस ने किसानों को ऊपर ना चढ़ पाने के बंदोबस्त किए हुए थे।
इसलिए किसानों ने अपना पड़ाव नीचे ज़मीन पर फ्लाईओवर के नीचे और स्थानीय मार्गों पर डाला हुआ है।
इस भौगोलिक अड़चन वाली स्थिति से निबटने के लिए आन्दोलनकारी किसानों की रणनीति लाजवाब रही।
पुलिस को उनकी रणनीति में विफल करने के लिए जितनी जन शक्ति चाहिए असलियत में यहाँ उससे कम होने की वज़ह से ना सिर्फ़ प उ. प्र. के गांवों से और जन आपूर्ति की गई बल्कि सिंघु बॉर्डर से कुछ टुकड़ियाँ इस बॉर्डर पर भेजने का फैसला लिया गया।
जब यहाँ जमावड़ा पहले से दोगुना हो गया तो किसान अपने ट्रेक्टर-ट्रोलियों सहित रात में ऊपर चढ़ गए और विशाल आकार वाले इस पूरे हाई-वे को अपने क़ब्ज़े में ले लिया।
अब वहाँ से कोई भी वाहन नहीं गुजर सकता। यहाँ एक और तथ्य उल्लेख चाहता है। इस मोर्चे पर आन्दोलन की बागडोर भारतीय किसान यूनियन के दो धडों के पास है। एक के नेता वी एम सिंह थे और एक के नेता राकेश टिकैत।
करोड़पति ‘किसान’ नेता वी एम सिंह जो अखिल भारतीय किसान आन्दोलन संघर्ष समिति के संयोजक भी थे और जो द प्रिंट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ मेनका गाँधी के रिश्तेदार भी हैं, आन्दोलन के साथ गद्दारी कर सरकार की शरण में जा चुके हैं और अब इस किसान आन्दोलन को तोड़ने-भटकाने के लिए अपनी सेवाएँ दे रहे हैं।
किसान नेताओं ने तुरंत उन्हें राष्ट्रीय संयोजक के पद से बर्खाश्त भी कर दिया गया है।
दूसरे प्रमुख नेता राकेश टिकैत के बारे में भी मीडीया में ऐसी ही खबरें प्लांट की जाने लगी थीं लेकिन ऐसा नहीं हुआ और ऐसा ना हो पाने से आन्दोलनकारियों का मनोबल बढ़ा और सरकार का मनोबल कमजोर हुआ।
संघर्ष का ज़ज्बा तो इस टिकैत परिवार को विरासत में मिला ही है।महेंद्र सिंह टिकैत का 1988 का बोटक्लब तथा दिल्ली और मेरठ कचहरी के धरने लोग अभी तक नहीं भूले होंगे।
पांचवां मोर्चा: पलवल बॉर्डर
दिल्ली से आगरा वाले इस सबसे पुराने एक्सप्रेस वे पर दिल्ली से लगभग 62 किमी दूर वाला किसान पड़ाव तादाद में सबसे छोटा है।
हालाँकि यहाँ भी आन्दोलनकारियों कि तादाद बढ़ रही है। पुलिस ने उन्हें कुंडली-मानेसर-पलवल-गाज़ियाबाद-बागपत-कुंडली वाले परिधिकार मार्ग को अवरुद्ध करने में विफल किया हुआ है और वे लोग वहाँ फ्लाईओवर के नीचे डटे हुए हैं।
क्रमश:
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