सत्ता का असली चरित्र समझा दिया इस किसान आंदोलन ने: भाग-5

सत्ता का असली चरित्र समझा दिया इस किसान आंदोलन ने: भाग-5

               By एस. वी. सिंह

सोशल मीडिया पर कुछ अपुष्ट ख़बरों (अफवाहों) के अनुसार सरकार इस आन्दोलन को क्रूर दमन से ख़त्म करने का मन बना रही थी लेकिन वैसा अभी तक नहीं हुआ जिसकी वज़ह इस आन्दोलन का देशभर में लगातार हो रहा विस्तार है।

29 दिसम्बर को पटना में बिहार के सभी जिलों से आए किसानों ने ज़बरदस्त मोर्चा निकाला जहाँ उस पर नितीश सरकार ने पुलिस    से लाठियां बरसवाईं। कई किसान गंभीर ज़ख़्मी हुए।

दूसरी तरफ दक्षिण भारत के सभी राज्यों से किसान आन्दोलन के समर्थन में मोर्चे निकाले गए। आन्दोलनों को पुलिस दमन से ‘सबक  सिखाने’ में यकीन रखने वाली मौजूदा फासिस्ट मोदी सरकार ने इसी वज़ह से अभी तक ऐसा दुस्साहस नहीं किया है।

सत्ता के नशे में चूर मोदी सरकार को किसानों ने विनम्रता भी सिखा दी है। ना सिर्फ़ 30 दिसम्बर की मीटिंग में किसानों ने सरकार को उनकी दो मांगों, भले छोटी हों, को मानने को मज़बूर कर दिया बल्कि स्वाभिमान, मूछों की लडाई भी जीत ली। किसान पहली मीटिंग से ही मुफ़्त के सरकारी भोज को अस्वीकार करते आए हैं और अपने खाने और पीने के लिए चाय भी अपने   लंगर से ही लेकर  आते हैं। इस बार सरकारी मंत्रियों-संत्रियों ने ‘सौहार्द बढाने’ के लिए उनके साथ लंगर वाला खाना ही ग्रहण किया।

मीटिंग ‘बहुत आत्मीयता, भाईचारे और सौहार्दपूर्ण माहौल’ में संपन्न हुई। मंत्री जी के ये उदगार जानकर देश धन्य हुआ।

लगभग दिन से लाखों किसान अपनी जान कि परवाह ना करते हुए भयानक ठण्ड में सर्द हवाओं में खुले में डटे हुए हैं। 60 से  ज्यादा      लोग अब तक  शहीद हो चुके हैं लेकिन कहीं भी हिंसा, उपद्रव या तोड़फोड़ की कोई घटना नहीं घटी।

कई बार तोड़फोड़ और अराजकता फैलाकर आन्दोलन को बदनाम करने और फिर सरकारी दमन से आन्दोलन को ख़त्म करने के मक़सद से गए लोग पकडे गए, उनके पास से खालिस्तान के झंडे आदि भी बरामद हुए लेकिन किसान कार्यकर्ताओं के साथ हिंसा नहीं की बल्कि उनके विडियो बनाए और उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया।

बड़ी तादाद में महिलाएं संघर्ष में अपनी भागीदारी कर रही हैं। कहीं भी महिलाओं के साथ अभद्रता की कोई ख़बर नहीं। पंजाब को शराबखोरी और नशाखोरी के लिए बदनाम किया जाता है शायद कुछ सच्चाई भी होगी लेकिन किसी भी मोर्चे पर ऐसी कोई वारदात नहीं हुई।

बिक चुका, सड़ चुका, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का दरबारी हिस्सा शुरू से ही आन्दोलन को बदनाम करने के अपने ‘नित कर्म’ में लगा हुआ है। अब इस सच्चाई से कोई हैरान भी नहीं होता। उनके रिपोर्टर्स के साथ भी कोई हिंसा नहीं हुई हालाँकि उनके कर्मों से किसान बहुत गंभीर रूप से आहत हैं।

किसान ना सिर्फ़ लंगर चला रहे हैं बल्कि मेडिकल कैंप,हेयरकटिंग सलून यहाँ तक की किसान मॉल भी सिंघू और टीकरी बॉर्डर पर चल रहे हैं जहाँ ज़रूरी इस्तेमाल की वस्तुएं मुफ़्त दी जा रही हैं। कहीं कोई अव्यवस्था नहीं, कहीं कोई छीना झपटी नहीं।

‘किसानों को बहकाया गया है’ ऐसे उद्गार किसी मानसिक विक्षिप्त के ही हो सकते हैं!!

सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हर रोज़ ज्यादा से ज्यादा लोग देश में ही नहीं विदेशों में भी, इस शानदार किसान आन्दोलन के साथ जुड़ते जा रहे हैं। सत्ता का असली चरित्र समझते जा रहे हैं। ये बात बहुत दूर तलक जाने वाली है।

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Abhinav Kumar

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