यह लड़ाई सिर्फ राजनीतिक सत्ता के खिलाफ़ ही नही ,कॉरपोरेट के खिलाफ़ भी है- हरिंदर बिंदु
हरिंदर बिंदु उस वक्त केवल चौदह साल की थीं, जब 1991 में खालिस्तान का विरोध करने वाले उनके पिता की हत्या कर दी गई थी। आज 43 साल की हरिंदर भारतीय किसान यूनियन उग्राहां की महिला विंग की अध्यक्ष हैं और उन्हें बीते सालों का कोई मलाल नहीं है।
नेशनल हेराल्ड के मुताबिक, किसान आंदोलन में उनकी तैनाती टीकरी बॉर्डर पर है। वह कहती हैं, ‘इतने सालों में मैं एक घर तक नहीं बना सकी, मेरा बेटा अपनी नानी के साथ रहता है, एक फुलटाइम वर्कर की जिंदगी ऐसी ही होती है।’
उनके मुताबिक, वह वास्तव में उस जिदंगी का अफसोस नहीं करतीं, जो एक 43 साल की महिला की अपने बच्चे के साथ होती है।
वह कहती हैं कि ‘महिलाओं को शिक्षित करना और अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखाना मुझे राहत देता है, यही भूमिका मुझे सुकून देती है।’
40,000 महिला सदस्यों वाले यूनियन की प्रमुख बिंदु मानती हैं कि जब तक किसी प्रक्रिया में महिलाएं आगे आकर भाग नहीं लेंगी, तब तक कोई बदलाव नहीं आ सकता।
यही वजह है कि वह गांव- गांव जाकर महिलाओं को संगठित करती हैं, इनमें महिला मजदूर भी शामिल हैं।
ख़ुदकुशी करने वाले किसानों के परिवारों को 96 करोड की राहत दिलाने में मदद देने करने वाली बिंदु कहती हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण बात है कि महिलाएं हम पर भरोसा करती हैं और किसी भी मामले में हमसे बात करने में झिझकती नहीं।
वह बताती हैं कि उनका संगठन बलात्कार पीडितों और दलितों के अधिकारों की लडाई भी लड़ रहा है।
कड़कड़ाती ठंड में बच्चों को आंदोलन में शामिल करने की आलोचना के सवाल पर बिंदु कहती हैं कि “किसी आंदोलन में समाज के सभी तबकों का जोड़ना जरूरी होता है और आखिरकार यह लड़ाई बच्चों के आने वाले कल के लिए भी तो है।”
उनके मुताबिक, बच्चों और युवा पीढी के लिए यह सबक भी जरूरी है कि अपना हक पाने के लिए चुनौतियों से पार पाना पड़ता है।
इस सवाल पर कि कम से कम सोच के स्तर पर यह आंदोलन पहले ही कामयाब साबित हो चुका है।
वह कहती हैं ” यह एक लंबी लडाई है। हमें लोगों को यह एहसास दिलाना है कि यह केवल राजनीतिक सत्ता के नहीं बल्कि कॉरपोरेट के खिलाफ लडाई भी है। हमें इस लडाई को न आधे रास्ते में छोड देना है और न इसमें हार माननी है।”
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