कैसे शुरू हुआ किसानों का आंदोलन और यहां तक कैसे पहुंचा? किसान आंदोलन-2
By एस.एस. माहिल
वर्तमान किसान आंदोलन की शुरुआत ग्रामीण क्षेत्र से जमीनी स्तर से शुरू हुई है। जैसे ही सरकार ने इन तीन अध्यादेशों को जारी किया, जुलाई के महीने से ही किसानों ने संगठित होकर इन अध्यादेशों के खिलाफ जिला स्तर पर प्रदर्शन शुरू कर दिए।
इसके बाद, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) में सम्मिलित किसान संगठनों ने मोगा, बरनाला, पटियाला, फगवाड़ा और अमृतसर में पांच बड़े प्रदर्शन करके विरोध जाहिर किया।
भारतीय किसान यूनियन (उग्राहन) ने पटियाला और बादल गांव में धरना दिया। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति से संबंधित संगठनों ने पंजाब बंद के आह्वान किया और सभी किसान संगठनों से इन अध्यादेशों के खिलाफ एकता के लिए अपील की।
इस बीच भारतीय किसान यूनियन के कुछ समूह और कुछ स्थानीय संगठनों सहित 13 संगठनों ने एकजुट होकर भारत बंद का समर्थन करने का फैसला किया।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की पहल पर मोगा में पंजाब में सक्रिय सभी किसान संगठनों की एक बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में 30 किसान संगठनों ने मिलकर एक साझा मंच बनाया।
लेकिन बाद में उग्रहान गुट ने तय किया कि वे इस मंच में तो सम्मिलित नहीं होंगे लेकिन समन्वित कार्रवाईयों में शामिल रहेंगे। किसानों के आह्वान पर 25 सितंबर को पूरा पंजाब बंद रहा।
जनता के सभी तबकों ने न केवल इस बंद का समर्थन किया बल्कि इसमें सक्रिय रूप से सम्मिलित हुए। बंद पूरी तरह से सफल रहा। इस सफलता ने आंदोलन को नयी गति दी। संयुक्त मंच का अगला कदम था रेलों के आवगमन पर रोक।
आंदोलनकारियों ने पटरियों पर धरना देकर रेल यातायात जाम कर दिया। भारतीय जनता पार्टी के कार्यालयों और नेताओं के घरों, अंबानी और अडानी के व्यवसायिक केंद्रों और टोल प्लाजा का घेराव किया।
पंजाब में लगभग 150 स्थानों पर धरने दिए गए। इस संघर्ष का निशाना भाजपा सरकार, भाजपा और कारपोरेट पूंजीपति, खासकर अम्बानी और आडानी थे।
पंजाब के किसानों की संघर्ष परंपरा
पंजाब में जमीदारी (बिस्वेदारी) के खिलाफ पेप्सू आंदोलन (चालीस और पचास के दशक में) के बाद वर्तमान किसान आंदोलन तीसरा बड़ा आंदोलन है।
इस क्रम में पहला बड़ा आंदोलन पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो द्वारा 1959में सिंचाई के लिए किसानों पर लेवी (betterment levy) के रूप में लगाए गए टैक्स के विरोध में हुआ था।
उस वक्त किसान सभा के नेतृत्व में जेल भरो आंदोलन के साथ विशाल किसान आंदोलन हुआ था। आंदोलन इतना व्यापक था कि अकाली दल के स्थानीय कार्यकर्ता भी अपने पीले झंडे लेकर आंदोलन में शरीक हो गए थे।
सरकार ने हजारों लोगों को जेल में ठूंसा, उनपर भारी जृर्माने लगाए गए। जुर्मानों की वसूली के लिए आंदोलनकारियों की संपत्ति कुर्क करने की भी कोशशें की गई। जनता का प्रतिरोध अनेक जगह पुलिस के साथ टकराव में बदला।
जनता का दमन करने के लिए पुलिस ने अनेक जगहों पर लाठी-गोली का इस्तेमाल किया। दो किसान शहीद हुए, हजारों घायल हुए।
इसके बाद, पंजाब में किसानों का दूसरा बड़ा आंदोलन 1983 -1984 में मालवा क्षेत्र में भारतीय किसान यूनियन के नेतृत्व में तथा माझा और दोआब में कीर्ति किसान यूनियन (KKU) की अगुआई में हुआ।
इस आंदोलन की शुरुआत बिजली के मुद्दे से हुई थी परंतु आंदोलन के अंतर्गत वे तमाम मुद्दे जुड़ गए, जिनता सरोकार भूमिधर किसानों से था। वर्तमान किसान आंदोलन 1947 के बाद हुए किसान आंदोलनों में तीसरा बड़ा आंदोलन है, जिसमें इतने व्यापक स्तर पर जनता सम्मिलति हुई है।
यह आंदोलन भी हालांकि किसानों की समस्या से प्रारंभ हुआ है लेकिन पूरा पंजाब (शहरी इलाकों में भाजपा को छोड़कर) आंदोलित हो गया है।
केवल किसानों का नहीं पूरा पंजाब संघर्ष में है?
हम इसे केवल पंजाब के किसानों का ही नहीं पूरे पंजाब का संघर्ष क्यों कह रहे हैं? पहली बात तो यह है कि पंजाब में बेरोज़गारी की समस्या अत्यंत भयावह है। इसकी वजहे हैं-
1. कृषि क्षेत्र में अत्यधिक यांत्रिकीकरण के कारण यहां रोजगार के अवसर कम हो गए हैं।
2. पंजाब औद्योगिक रूप से पिछड़ा राज्य है, बल्कि कहा जा सकता है कि खालिस्तानी आंदोलन के बाद यहां विऔद्योगीकरण और पड़ोसी पहाड़ी राज्यों को रियायतें जारी हैं।
3. पंजाब के बाहर से आए प्रवासी मजदूरों ने यहां श्रम बाजार का संतुलन गड़बड़ा दिया है। अब सरकार ने ये तीन कानून लागू किए हैं। इसके बाद, कृषि क्षेत्र में कॉरपोरेटों के आने के साथ विपणन का पूरा ढांचा मशीनीकृत हो जाएगा।
इस तरह यहां जो रोजगार के जो अवसार उपलब्धए हैं, खतम हो जाएंगे। दूसरा, कृषि में कारपोरेटों का कब्जे के साथ बड़े-बड़े कृषि फार्म बन जाएंगे। ये आधुनिक मशीनों से पूरी तरह से मशीनीकृत होंगे।
इससे खेती में जो कुछ कामों में रोजगार मिल जाया करता है, समाप्त हो जाएगा। अभी जो किसान खेती-बारी में लगे हैं, बेराजगारों की फौज में धकेल दिए जाएंगे।
इसके अलावा, कृषि उपज की सरकारी खरीद समाप्त होने और भंडारण की सीमा समाप्त करने से जमाखोरों की बन आएगी। फसल के समय वे भंडारण और इस तरह बिना रोक-टोक जमाखोरी के लिए आजाद हो जाएंगे।
कृषि उपज के दाम को कृत्रिम रूप से बढ़ा करके वे खाद्य महंगाई को बेलगाम कर देंगे। इसका प्रभाव सभी पर होगा। जब सरकारी खरीद नहीं होगी राशन व्यवस्था, सार्वजनिक वितरण प्रणाली भी खत्म हो जाएगी।
मुख्य बात यह है कि पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है। यहां की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। कृषि पर दुष्प्रभाव का नतीजा पूरे राज्य को भुगतना होगा। इससे हर क्षेत्र प्रभावति होगा।
यही वजह है कि यह संघर्ष केवल किसानों का संघर्ष नहीं, पूरे पंजाब का संघर्ष है। (क्रमशः)
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