टोल ख़त्म बीजेपी ख़त्म, उत्तराखंड के पर्वतीय इलाके की पहली किसान पंचायत में बोले किसान नेता
‘टोल प्लाज़ा के साथ भाजपा का गहरा संबंध है। जहां जहां टोल ख़त्म हुए, भाजपा ख़त्म हो गई। पंजाब में टोल ख़त्म हुए तो भाजपा भी सिमट गई। हरियाणा में भी यही हुआ। अब बारी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की है।’
ये कहना था संयुक्त किसान मोर्चे के प्रमुख नेताओं में से एक रजिंदर सिंह दीपसिंहवाला का जो दिल्ली के सिंघु बॉर्डर से आए थे।
उत्तराखंड के पर्वतीय इलाक़े में यह पहली किसान पंचायत थी और आंदोलन में हमेशा आगे रहने के लिए जाने जानी वाली महिलाओं की भारी उपस्थिति थी।
रामनगर के शहरी लोगों की अच्छी खासी संख्या के अलावा वन गुर्जर समुदाय के लोगों की अच्छी भागीदारी रही, जो पिछले कई सालों से वन ग्राम में मालिकाने हक़ के लिए संघर्ष कर रहे हैं और वन विभाग की ज़्यादतियों के ख़िलाफ़ उनका संघर्ष लंबे समय से चल रहा है।
पैंठपड़ाव में मुनीष कुमार के संचालन में आयोजित जनसभा के दौरान दूर-दूर से आये वक्ताओं ने केंद्र सरकार पर किसान आंदोलन की अनदेखी करने की तोहमत मढ़ते हुए कहा कि इस शताब्दी का यह पहला आंदोलन है जिस पर विश्वभर के छात्र शोध कर रहें हैं। भविष्य में यह आंदोलन देश के स्वतंत्रता आंदोलन की तरह इतिहास में दर्ज होगा, जिसे पूरी दुनिया पढ़ेगी। लेकिन केंद्र सरकार इस महत्त्वपूर्ण आंदोलन को किसानों की ताक़त को जाने बगैर कुचलने के मंसूबे बना रही है, जिसका अंजाम सरकार के लिए ठीक नहीं होगा।
इस किसान पंचायत में उत्तराखंड की खेती किसानी की समस्यों पर गहरी चिंता व्यक्त की गई। असल में यहां किसानों और वन विभाग के बीच हमेशा से संघर्ष की स्थिति रही है और जंगलों में लकड़ी और जड़ी बूटी लाने तक की मनाही कर देने से आबादी के एक बड़े हिस्से की आजीविका प्रभावित हुई है।
इसके अलावा जंगली जानवरों की समस्याओं की चिंता भी वक्तव्यों में झलकी।
वक्ताओं ने कहा कि बीस सालों में उत्तराखंड के साथ गांव खेती बर्बाद होने के कारण खाली हो चुके हैं। नये कृषि कानून के चलते पूरे देश की यही स्थिति हो जायेगी। सरकार को पूरी तरह से असंवेदनशील बताते हुए कहा कि भोजन जैसी आवश्यक चीज को यह सरकार जनता के लिए जरूरी नहीं मानती, जिसके चलते खाद्य पदार्थों को इसने आवश्यक वस्तु अधिनियम की सूची से बाहर कर दिया है। किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिशों की मुखालफत करते हुए वक्ताओं ने कहा कि आज़ादी के आंदोलन में कोई हिस्सेदारी न करने दोरंगे लोग तिरंगे के अपमान का झूठा आरोप देश के अन्नदाता पर लगाकर उसका अपनाम करने पर उतारू हैं।
वक्ताओं ने केंद्र की मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान करते हुए कहा कि खुद 35 साल तक भीख मांगकर गुजारा करने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पूंजीपति मित्रों के लाभ के लिए पूरे देश की जनता को भीख मांगने की स्थिति में ले जाना चाहते हैं। जिसे देश की किसान बिरादरी कभी नहीं होने देगी।
वक्ताओं ने वन ग्राम व गोट खत्ते वासियों को जमीन पर मालिकाना हक दिए जाने वो किसानों, के, कृषि ऋण (एनपीए) को माफ किए जाने की मांग को भी प्रमुखता से उठाया। कार्यक्रम में 26 जनवरी की दिल्ली किसान रैली में शहीद हुए नवरीत सिंह वह दिल्ली के बॉर्डर पर शहीद हुए 300 किसानों को भी श्रद्धांजलि दी गयी।
शहीद नवनीत के पिता साहिब सिंह को किसान पंचायत में विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया था। जनसभा को असित चौधरी, आशीष मित्तल, जगतार सिंह बाजवा, तेजिंदर सिंह विर्क, दीवान कटारिया, संतोष कुमार, सुखविंदर सिंह, दर्शन सिंह, तरुण जोशी, पीसी तिवारी, ललिता रावत, जोगेन्द्र सिंह, चौधरी बलजीत सिंह, इंद्रजीत सिंह, सतपाल सिंह, अवतार सिंह मोहम्मद शफी, इस्लाम हुसैन, दिगम्बर सिंह दर्जनों किसान नेताओं ने संबोधित किया।
कार्यक्रम में सितारगंज, खटीमा, नानकमत्ता, काशीपुर, बाजपुर, अल्मोड़ा, सल्ट, रामगढ़, धानाचूली, ढोलीगांव, उप्र के कालागढ़, ठाकुरद्वारा, बिलासपुर, बरेली सहित कई स्थानों से आये लोगों ने हिस्सा लिया।