घोषणा के साथ ही क्या मोदी सरकार की नीयत भी साफ़ है?
By शुभा
तीन कृषि कानून वापस करने की घोषणा तो हो गई है लेकिन इसमें बहुत दाँव पेंच मौजूद हैं।
मसलन क्या सरकार सभी देशवासियों से अपनी जिद और झूठ बोलने के लिये माफ़ी मांगेगी?
किसानों पर बने हज़ारों मुकदमे तुरन्त वापस होंगे? शहीद और घायल किसानों को मुआवज़े दिये जायेंगे? क्या भीमकाय कोरपोरेट गोदामों को सरकार जब्त करके सरकारी भंडारण के काम में लायेगी?
फसल में लागत के अनुसार लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करेगी? खाद, बीज, फसल सुरक्षा -बीमा आदि के नाम पर किसानो से होने वाला छल बन्द करके उनकी साफ़-सुथरी व्यवस्था होगी?
मंडियों का जाल पुख़्ता करेगी? बिजली और पुराने ट्रैक्टर से जुड़े कानून किसानों के हक़ में ढाले जायेंगे? हज़ार मामले सामने अटके हैं जिसमें सरकार की नीयत का सवाल भी है? क्या केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री से इस्तीफा लिया जाएगा उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा?
बात ये है कि कानून की घोषणा से बहुत पहले उसे व्यवहार में उतारने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है? इस प्रक्रिया से हुए नुक्सान को उलटने के लिये एक सुसंगत योजना की ज़रूरत है? बात यह भी है कि सार्वजनिक वितरण व्यवस्था ,सभी नागरिकों को अन्न की उपलब्धता कृषि ढांचे से जुड़ी है, आवश्यक वस्तु अधिनियम को फिर से किसान आन्दोलन की रोशनी में लागू किया जाएगा या नहीं?
खाद्य वस्तुओं का मूल्य नियन्त्रण आदि अनेक सवाल हैं?
फ़िलहाल किसान आन्दोलन ने अपने बेमिसाल संघर्ष से सरकार को कानून वापसी की घोषणा पर मजबूर कर दिया है इसके लिये किसानों को बधाई!
यह घोषणा सिर्फ़ चुनाव से पहले की, आन्दोलन को बिखेरने भर की घोषणा सिद्ध न हो इसके लिये हमें समझना चाहिए किसान आन्दोलन अपने अगले चरण में प्रवेश कर गया है। वह समाप्त नहीं हुआ है।
अभी कोई मुद्दा वास्तविक हल तक नहीं पहुंचा है इन्हें ठोस अन्जाम तक पहुंचाने के लिये अधिक एकजुटता की ज़रूरत होगी।
महामारी के दौर में ऐसे कानून लाना और भारी पैमाने पर नागरिकों को असुरक्षा में धकेल देना, बार्डर खड़े करना , बलप्रयोग करना, किसानों को कलंकित करना , बैरीकेड खड़े करके, सड़कें खोद कर नागरिकों को परेशान करना इन मामलों पर माफ़ी मांगकर सम्बद्ध लोगों पर कार्यवाही ज़रूरी है।
जिन चुने हुए प्रतिनिधियों ने किसानों के ख़िलाफ़ हिंसा करने का आह्वान किया था उनपर न्यायसंगत कार्यवाही ज़रूरी है।
किसान-आन्दोलन के साथ पुलिस-प्रशासन और सरकार जिस तरह पेश आई है उसकी समीक्षा संसद में होनी चाहिए और कृषि के सन्दर्भ में किसानों की पुरानी मांग के अनुसार कृषि पर संसद के विशेष सत्र के आयोजन की दरकार है।
किसानों की इस पहली जीत पर बधाई! आगे भी संघर्ष है और जीत है!
(लेखिका वरिष्ठ कवियत्री, रंगकर्मी और सामजिक कार्यकर्ता हैं।)
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