जनवरी की कड़कड़ाती ठंड में टीकरी बॉर्डर पर भारत माता की दादियांः फ़ोटो फ़ीचर
मां को थोड़ा दुख पहुंचे तो इंसान वो सब कुछ तैयार हो जाता है, जिससे उसके आंसू पोछ पाए। लेकिन ये माएं, दादियां पिछले 45 दिनों से इस कड़कड़ाती ठंड में दिल्ली के बॉर्डर पर बैठी हैं। इन्हें देख कर कौन बेटा अपने घर में बैठ सकेगा!
ये इस बात का गवाह हैं कि आंदोलन की की ताक़त क्या है। उन बेटे बेटियां और कौम पर क्या बीत हो रही होगी जिनकी 80-80 साल बुज़ुर्ग माएं और दादियां इस ठंड में भारत के हालिया इतिहास के सबसे क्रूर शासक के ख़िलाफ़ लोहा ले रही हैं।
टीकरी बॉर्डर पर बैठी इन महिलाओं की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। मानसा के बलाडा से पूरे पिंड के लोग यहां आ गए हैं। 76 साल की बुज़ुर्ग गुरमीर कौर कराडवाला की रहने वाली हैं।
गुरमीर कौर कराडवाला स्कूल में ही हेड टीचर थीं और 2004 में रिटायर हो गईं। उनके पढ़ाए बच्चे भी बुज़ुर्ग हो चले हैं। दिलचस्प बात है कि उनके साथ पूरे पिंड के उनके पूर्व छात्र भी साथ आए हैं। फ़ोटोः नीरा जलक्षत्रि
टीकरी बॉर्डर पर ट्रॉलियों के बीच एक जगर पर ये सभी महिलाएं रात का खाना बना रही थीं, जब हम पहुंचे। इस भयंकर ठंड में आग के चारो ओर बैठी महिलाएं रोटी बना रही थीं। फ़ोटोः नीरा जलक्षत्रि
ये अपने गांव की सरपंच हैं और किसान आंदोलन में उसी तरह कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं जैसे वो अपने गांव की छोटी से छोटी ज़रूरत के लिए खड़ी रहती हैं। फ़ोटोः नीरा जलक्षत्रि
इन महिलाओं में किसी भी उम्र 60 से कम नहीं है। कई महिलाएं अस्सी साल की उम्र भी पार कर चुकी हैं। फ़ोटोः नीरा जलक्षत्रि
किसान आंदोलन के सामाजिक आंदोलन में तब्दील होने की कहानी कह रहीं ये महिलाएं, अपने घर पर भी उतनी ही सक्रिय हैं और अपने इलाक़े के सामाजिक आंदोलनों में भी। फ़ोटोः नीरा जलक्षत्रि
पंजाब में किसान यूनियनों की सक्रियता उग्रवाद के दौर से भी पहले की है। कीरती किसान यूनियन के कई नेता भी उस उग्रवाद की भेंट चढ़े लेकिन यूनियनों ने अपना काम नहीं समेटा और इसका नतीजा ये है कि किसानी एक वर्ग के रूप में स्थापित हो चुका है। फ़ोटोः नीरा जलक्षत्रि
सिंघु की अपेक्षा टीकरी बॉर्डर पर मध्यम और ग़रीब किसानों का जमावड़ा अधिक है। टीकरी बॉर्डर पर जुटी जत्थेबंदियां मानसा, फजिल्का, सिरसा के इलाक़े से आई हैं और इनमें महिलाओं की संख्या अधिक है। फ़ोटोः नीरा जलक्षत्रि
यहां के जमावड़े में किसान अधिकार से लेकर सम्राज्यवाद मुर्दाबाद के नारे लगाते हैं और राजनीतिक रूप से अधिक प्रौढ़ जनता की वजह से यहां का धरना बेहद अनुशासित दिखाई पड़ता है। फ़ोटोः नीरा जलक्षत्रि
भले ही ये लोग अपने पिंड से सैकड़ों किलोमीटर दूर शहर के बाहरी छोर पर ठीक हाईवे के ऊपर डेरा जमा लिया हो लेकिन इनका रुटीन बहुत पक्का है। अल सुबह उठना और शाम आठ बजे तक खा पीकर सो जाना। फ़ोटोः नीरा जलक्षत्रि
पिंड के मर्द, बुज़ुर्ग, बच्चे साथ हैं और इनके बीच प्यार को देखकर नहीं लगता कि ये एक ही घर या परिवार के नहीं हैं। आंदोलन ने इन्हें एक परिवार के सूत्र में जोड़ दिया है। फ़ोटोः नीरा जलक्षत्रि
इन महिलाओं का कहना था कि या तो कानून रद्द करा कर जाएंगे या फिर शहादत दकर ही अपने पिंड लौटेंगे। बुज़ुर्गों के मुंह से ये सुन कर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि नई पीढ़ी के दिल में क्या चल रहा होगा। फ़ोटोः नीरा जलक्षत्रि
सिंघु बॉर्डर पर जालंधर, लुधियाना, अमृतसर के समृद्ध इलाक़े की आबादी आई हुई है, इसलिए वहां देखने में अधिक संपन्न किसान मर्द महिलाएं मिल जाएंगे। लेकिन इन बुज़ुर्ग महिलाएं और मर्द जिस जज्बे के साथ जमे हैं, ऐसा नहीं लगता कि सरकार की मनमानी अधिक दिन तक चल पाएगी। फ़ोटोः नीरा जलक्षत्रि
(सभी तस्वीरें डॉ. नीरा जलक्षत्रि की।)
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