Big Breaking किसानों के सामने मोदी ने घुटने टेके, तीनों कृषि क़ानून वापस लेने का ऐलान
किसान आंदोलन के 12 महीने पूरे होते होते तीन कृषि क़ानूनों पर अड़ी नरेंद्र मोदी सरकार ने आखिरकार घुटने टेक दिए हैं। बीबीसी के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को राष्ट्र को संबोधित करते हुए तीनों विवादित कृषि क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा की है।
हालांकि किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि पहले सरकार संसद में इससे संबंधित प्रस्ताव पारित करे उसके बाद किसान दिल्ली के बॉर्डर से हटने की सोचेंगे।
मोदी ने कहा, ”आज मैं आपको, पूरे देश को, ये बताने आया हूँ कि हमने तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे।”
मोदी ने गुरुनानक देव के प्रकाश पर्व के दिन इसकी घोषणा की। चूंकि इस आंदोलन में सिख किसानों की एक बड़ी संख्या है और पंजाब में कुछ ही महीनों बाद चुनाव होने वाले हैं, इसलिए इसे एक चुनावी फैसला भी माना जा रहा है।
Addressing the nation. https://t.co/daWYidw609
— Narendra Modi (@narendramodi) November 19, 2021
प्रधानमंत्री ने कहा, ”हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए। कृषि अर्थशास्त्रियों ने, वैज्ञानिकों ने, प्रगतिशील किसानों ने भी उन्हें कृषि क़ानूनों के महत्व को समझाने का भरपूर प्रयास किया। किसानों की स्थिति को सुधारने के इसी महाअभियान में देश में तीन कृषि क़ानून लाए गए थे।”
हालांकि आंदोलन शुरू होने के कुछ महीने बाद ही जब सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों को निलंबित कर दिया था तब भी कहा गया है कि अब किसानों को वापस लौट जाना चाहिए, लेकिन किसान संगठनों का कहना था कि जिस सरकार ने ये कानून लागू किए थे, वही इसे लिखित रूप से वापस करने का ऐलान करे।
क्या किसान वापस लौटेंगे?
अभी मोदी के ऐलान के बाद भी क्या किसान वापस लौटेंगे, ये पूरी तरह नहीं कहा जा सकता, क्योंकि दो अन्य मांगों, एमएसपी पर क़ानून बनाना और बिजली संशोधन बिल 2020 को वापस लेने की मांग पर मोदी ने कुछ नहीं किया है।
हालांकि मोदी ने एमएसपी पर एक कमेटी गठित करने का भी वादा किया है और कहा है, ”एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए, ऐसे सभी विषयों पर, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, निर्णय लेने के लिए, एक कमिटी का गठन किया जाएगा। इस कमिटी में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे, किसान होंगे, कृषि वैज्ञानिक होंगे, कृषि अर्थशास्त्री होंगे।”
उन्होंने कहा, ”आज ही सरकार ने कृषि क्षेत्र से जुड़ा एक और अहम फ़ैसला लिया है. ज़ीरो बजट खेती यानी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए, देश की बदलती आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर क्रॉप पैटर्न को वैज्ञानिक तरीक़े से बदलने के लिए, एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए, ऐसे सभी विषयों पर, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, निर्णय लेने के लिए, एक कमिटी का गठन किया जाएगा।”
ये कहा जा रहा है कि आगामी पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले केंद्र सरकार के सामने भयंकर सत्ताविरोधी लहर का डर मौजूद था।
हालांकि विपक्षी पार्टियां, जिनमें आम आदमी पार्टी भी शामिल है, इस निर्णय को किसानों की जीत बता रही हैं लेकिन किसानों की सिर्फ इतनी मांग नहीं है। स्वामिनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की भी मांग इसमें शामिल है।
उधर रविवार को संयुक्त किसान मोर्चे की सिंघु बॉर्डर पर बैठक है और उसमें आगे के आंदोलन पर फैसला लिया जाना है। अब सरकार के इस संदेश के बाद नई परिस्थिति पर भी बात होगी।
बीते साल 26 नवम्बर को किसान दिल्ली बॉर्डर पर पहुंचे थे और तबसे लेकर अबतक संयुक्त किसान मोर्चे के अनुसार, 700 से अधिक किसान शहीद हुए हैं। इसके अलावा सैकड़ों किसानों पर मुकदमें दर्ज किए गए हैं।
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