भारत बंद के एक दिन पहले ही पंजाब में रेल रोको प्रदर्शन शुरू, पंजाब से गुजरने वाली कई ट्रेनें रद्द
मोदी सरकार के मनमाने तीन कृषि अध्यादेशों के ख़िलाफ़ किसान संगठनों और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने आपसी मतभेद भुलाकर 25 सितम्बर को भारत का बंद का आह्वान किया है।
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा देश के कई हिस्सों में भारत बंद का असर अधिक दिखने की संभावना है। पंजाब में तो एक दिन पहले ही बंद का असर दिखना शुरू हो गया।
पंजाब में किसान संगठनों ने रेल रोको आंदोलन चलाने की घोषणा की है जिससे तीन दिन तक रेल यातायात बाधित होने की आशंका है, जिसके कारण अमृतसर, लुधियाना और कई अन्य शहरों से ट्रेनों को रद्द किए जाने या डायवर्ट किए जाने की सूचना आ रही है।
यहां 31 किसान संगठनों ने आपसी एकजुटता बना कर 24 से 26 सितंबर तक ट्रेनों को रोकने का आह्वान किया है।
इस बंद का आह्वान अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने किया है, जिसे देश की प्रमुख बड़ी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने सक्रिय समर्थन देने का ऐलान किया है।
एआईकेएससीसी देश भर के छोटे-बड़े 250 किसान संगठनों का मंच है। मंच का कहना है कि उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और बिहार के किसान भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होने वाले हैं।
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ट्विटर पर 25 सितम्बर 5 बजे का ट्रेंड
हालांकि ‘पंजाब बंद’ के बाद 1 अक्टूबर से ‘अनिश्चितकालीन बंद’ का ऐलान भी किया गया है।
कल शाम से ही ट्विटर पर #25sep5baje25minute ट्रेंड कर रहा है और प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रमुखों ने ट्वीट कर मोदी सरकार को चेताया है।
स्वराज्य पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने ट्वीट कर कहा है कि ‘मोदी सरकार झूठ बोल रही है और अपने कॉरपोरेट मित्रों के फ़ायदे के लिए किसान को आज़ादी के नाम पर बंधुआ किसान बना रही है।’
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दलों पर किसानों को बरगलाने का आरोप लगाया था।
पिछले कुछ समय से मोदी सरकार पर नरमी दिखा रहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने केंद्र सरकार को किसानों को विश्वास में लेकर फ़ैसला लेने का सुझाव दिया है।
लेकिन मोदी सरकार भी बयानबाज़ी में पीछे नहीं है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने उलटे विपक्ष पर आरोप मढ़ा कि ‘जो लोग क़रीब पचास सालों तक सत्ता में थे वे आज पूछ रहे हैं कि एमएसपी को लेकर प्रावधान क्यों नहीं बना।’
हालांकि उनके मुखिया पिछले छह सालों से 70 साल का हिसाब मांग रहे हैं, शायद तोमर भूल गए।
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कृषि विधेयक
तीन कृषि विधेयक को संसद ने जिस अफ़रा तफरी और मार्शल लगा कर पास कराया गया, उसका जवाब अब सड़क से देने की तैयारी हो रही है।
1- कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020
असल में यही बिल इस समय सारे फसाद की जड़ मालूम होती है क्योंकि इसमें प्रावधान है कि मंडी के बाहर किसानों के फसलों को प्राईवेट कंपनियां, निजी व्यापारी खरीद सकते हैं। यानी व्यावहारिक रूप से सरकारी मंडी और सरकारी खरीद का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई ज़िक्र न होना इस बात का संकेत माना जा रहा है।
इसमें मार्केटिंग और परिवहन के खर्च को कम करने का सब्ज़बाग दिखाया गया है लेकिन किसान संगठनों का कहना है कि किसानों की आय दो गुना करने के मोदी के वायदे की तरह ये भी गुमराह करने वाला है।
2- कृषि (सशक्तिकरण व संरक्षण) क़ीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर क़रार विधेयक, 2020
दूसरा सबसे ख़तरनाक विधेयक है ये, जिसमें खेती के कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग को क़ानूनी बना देता है।
आधिकारिक भाषा में ये बिल कृषि उत्पादों की बिक्री, फ़ार्म सेवाओं, कृषि बिज़नेस फ़र्मों, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जुड़ने के लिए सशक्त करता है।
अनुबंधित किसानों को गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति सुनिश्चित करना, तकनीकी सहायता और फ़सल स्वास्थ्य की निगरानी, ऋण की सुविधा और फ़सल बीमा की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
3- आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020
तीसरे और अंतिम इस विधेयक को बड़े उद्योगपतियों, कारपोरेट कंपनियों के लिए जमाखोरी का रास्ता खोलने वाला समझा जा रहा है।
क्योंकि इस बिल से अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज़ आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर कर दिया गया है।
तर्क दिया जा रहा है कि ऐसे प्रावधानों से किसानों को सही मूल्य मिल सकेगा जोकि आजतक वहां भी नहीं मिल रहा जहां ठेका खेती की जा रही है।
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