पंजाब में किसान आंदोलनकारियों पर 17,000 मामले दर्ज हुए- किसान आंदोलन-3
By एस.एस. माहिल
वह क्या वजह है कि जिस व्यापक स्तर पर पंजाब के किसान आंदोलित है, अन्य राज्यों के किसान इतना आंदोलित नहीं हैं? कुछ लोगों का कहना है उपज की सरकारी खरीद मुख्य तौर पर पंजाब, हरयाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में है।
यह कारण मुख्य नहीं है क्योंकि हरयाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में इतने व्यापक स्तर पर किसान आंदोलित नहीं हैं, जितना पंजाब के किसान। यह सवाल महज न्यूनतम समर्थन मूल्य या उपज की सरकारी खरीद तक सीमित नहीं है। बेशक ये आंदोलन के अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे हैं।
किसानों के नजरिए से ठेका खेती का मुद्दा अधिक गंभीर है। कृषि में कारपोरेट के प्रवेश से किसानों के वर्गीय अस्तित्व के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है।
साल 2019 में दूसरी बार सत्ता में आने के बाद मोदी के इशारे पर केंद्र सरकार द्वारा जनता पर फासीवादी हमला तेज हो गया है। इसकी तैयारी मोदी के प्रधानमंत्रित्व के पहले काल 2014-2019 में की जा चुकी थी।
पहले दौर में यह आक्रमण मुख्यरूप से राजनीतिक स्तर पर था। ऐसे राजनीतिक हमलों के उदाहरण जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करना और इसे विखंडित करना, तीन तलाक को अपराध बनाना, प्रलोभन और दमन की नीति के जरिए जोड़-तोड़, न्यायिक इतिहास में शर्मनाक बाबरी मस्जिद पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला, नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और नागरिकता के राष्ट्रीय पंजीका (NRC) की शुरुआत हैं।
करोना के बावजूद, राजनीतिक मुद्दों पर इन हमलावर नीतियों के खिालाफ देश में संघर्ष जारी है।
विदेशियों के आगमन पर रोक और विदेश से आने वाले भारतीयों को अनिवार्य रूप से क्यूरंटाइन करके करोना को शुरुआत में ही रोका जा सकता था।
परंतु सरकार ने यह नहीं किया क्योंकि वह चाहती थी कि करोना देश में फैले। बल्कि सरकार ने करोना को लेकर अनावश्यक रूप से भय का वातारण बनाया।
करोना को फासिस्ट हमले के हथियार के रूप में इस्तेमाल करके सरकार ने पूरे देश को घरों में कैद कर दिया। पंजाब के मुख्यमंत्री ने एक कदम आगे बढ़कर कर्फ्यू घोषित कर दिया।
पंजाब में पहली बार लॉकडाउन के समय हमने इस बीमारी की प्रकृति और विभिन्न पहलुओं से इसे समझने की कोशिश की। कार्यकर्ताओं को वरिष्ठ नागरिकों और बीमारों के प्रति सावधानी व सजगता के प्रति शिक्षित करने और सरकार द्वारा उत्पन्न किए जा रहे भय के वातावरण में फर्क को समझने में सहायता की।
लॉकडाउन के दूसरे दौर में जमीन प्राप्ति संघर्ष समिति और पेंडु मजदूर यूनियन ने गांव स्तर पर, सड़कों और घरों के सामने विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया। जनता के मानसिकता को जांचने के लिए यह एक कदम था।
हम इस नतीजे पर पहुंचे कि शहरी क्षेत्रों में, खासतौर से मध्यवर्ग में, भय ज्यादा है; गांवों, खासतौर से गरीबों में ऐसा भय नहीं है।
भाकपा माले न्यू डेमोक्रेसी की पहल पर आठ राजनीतिक दलों और संगठनों के मोर्चे ने 13 अप्रैल को जलियावालां दिवस पर प्रदर्शन और शहीदों को श्रंद्घांजलि देने के लिए कार्यक्रम और मई दिवस पर आयोजन का आह्वान किया।
पहली मई को ग्रामीण क्षेत्र में मई दिवस पर जनसभा का आयोजन किया गया। इसके बाद कर्फ्यू तोड़ने, केंद्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन किए बगैर जनता के ज्वलंत मुद्दों पर आंदोलन करने का निर्णय लिया।
हमने कार्यकर्ताओं को करोना के प्रति सचेत एवं शिक्षित किया कि यह बीमारी दरअसल है क्या और इसके नाम पर फैलाए जा रहे भय का मकसद क्या है। संगुर के भवानीगढ़ में 15 मई को पहली बड़ी जनसभा आयोजित की गई।
जमीन प्राप्ति संघर्ष समिति के नेतृत्व में कारखाने के गेट से हजारों की संख्या में मजदूरों का एक जुलूस निकला, जिसमें मजदूर मास्क नहीं पहने थे और सरकार द्वारा निर्देशित दूरी का पालन भी नहीं किया गया। यह दो किलोमीटर लंबा जुलूस था।
इफ्टू की अगुआई में 22 मई को सैकड़ों लोग सरकार द्वारा तयशुदा एहतियात को दरकिनार करके सड़कों पर आए, कर्फ्यू तोड़ा। आंदोलन का मुद्दा था श्रमिकों को राहत तथा प्रवासी श्रमिकों की वापसी के लिए उचित व्यवस्था।
मांग मानी जरूर गईं परंतु 200 लागों के विरुद्घ मुकदमे भी दर्ज किए गए। जून में मछली बाजार हटाए जाने के विरोध में कॉमरेड निर्भय सिंह धुंडिके को छा़त्र और नौजवान नेताओं के साथ गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया।
इस गिरफ्तारी का विरोध और रिहाई के लिए राज्यव्यापी प्रदर्शन आयोजित किए गए। मोगा में किर्ति किसान यूनियन के नेतृत्व में तीन हजार लोगों ने विरोध प्रदर्शन संगठित किया। इसके बाद अन्य अनेक जन प्रदर्शन हुए।
आंदोलन का नेतृत्व करने वालों, कार्यकर्ताओं और पार्टी के जनसंगठनों के नेताओं पर लगभग 1700 हजार मामले दर्ज किए गए। मुकदमों और जेल की परवाह किए बगैर जन आंदोलन और प्रदर्शनों का यह सिलसिला जारी रहा।
इस तरह से कोरोना का डर और सरकार द्वारा लादे गए प्रतिबंध हवा हो गए। इसके बाद, अन्य सभी राजनीतिक दलों और संगठनों ने जन आंदोलन संगठित करना शुरू किए।
राज्य सरकार को इस स्थिति को मानने के लिए विवश होना पड़ा। जन प्रतिरोध के इस क्रम ने वर्तमान विशाल किसान उभार के लिए आधारभूमि विकसित करने में भूमिका अदा की है। (क्रमशः)
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