न्यूज़ क्लिक पर छापेमारी कलम पर बंदूक की पहरेदारी हैः संयुक्त किसान मोर्चा
किसान संगठनों द्वारा किसान महापंचायतों का दौर जारी है। संयुक्त किसान मोर्चे का कहना है कि देशभर में किसानों से मिल रहे भारी समर्थन से यह तय है कि सरकार को तीन कृषि कानूनों को वापस करना पड़ेगा।
बिलारी और बहादुरगढ़ में 12 फ़रवरी को आयोजित महापंचायतों में भारी संख्या में किसान इकट्ठा हुए। किसान नेताओं ने कहा है कि रोटी को तिजोरी की वस्तु नहीं बनने देंगे और भूख का व्यापार नहीं होने देंगे।
किसान नेताओं का कहना है कि सरकार की किसान विरोधी और कॉरपोरेट पक्षीय मंशा इसी बात से भी स्पष्ट होती है कि बड़े बड़े गोदाम पहले ही बन गए और कानून फिर कानून बनाये।
हाल ही में सरकार ने संसद में जवाब दिया कि किसान आंदोलन के शहीदों को कोई सहायता देने का विचार नहीं है।
मोर्चा ने बयान जारी कर कहा है कि संसद की कार्रवाई में शहीद किसानों को श्रद्धांजलि देने में भी भाजपा व सहयोगी दलों के सासंदो नें जो असंवेदनशीलता दिखाई उसकी हम निंदा करते है। अब तक 228 किसान शहीद हो चुके हैं। हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि ओर कितने किसानों का बलिदान चाहिए?
किसान नेताओं का कहना है कि इस सरकार का कलम और कैमरे पर सख्त दबाव है। इसी कड़ी में पत्रकारों की गिरफ्तारी और मीडिया के दफ्तरों पर छापेमारी हो रही है।
बयान में कहा गया है कि, ‘हम न्यूज़क्लिक मीडिया पर बनाये जा रहे दबाव की निंदा करते हैं। ऐसे वक़्त में जब गोदी मीडिया सरकार का प्रोपोगेंडा फैला रहा है, चंद मीडिया चैनल लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की लाज बचाये हुए हैं व उन पर हमला निंदनीय है।’
बयान के अनुसार, 14 फरवरी को, पुलवामा हमले के शहीदों को याद करते हुए, भाजपा सरकार के छद्म राष्ट्रवाद को बेनकाब करने के लिए, एक मीडिया हाउस के एंकर के लीक गुप्त व्हाट्सएप चैट की पृष्ठभूमि के खिलाफ और यह दिखाने के लिए कि किसान सही मायने में हमारे जवानों का सम्मान करते हैं, पूरे भारत के गाँवों और कस्बों में मशाल जूलूस और कैंडल मार्च का आयोजन किया जाएगा।
साथ ही आंदोलन में शहीद किसानों को श्रद्धांजलि भी दी जाएगी। जय जवान, जय किसान के आंदोलन के आदर्श को दोहराया जाएगा।
बीती 13 फरवरी को, कर्नाटक राज्य रैता संघ के संस्थापक जाने-माने किसान नेता प्रो नंजुंदस्वामी की जयंती पर संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रगतिशील और न्यायसंगत समाज के लिए अपनी सोच को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता दोहराई, जिसमें किसानो के अधिकारों पर ज़ोर दिया गया।
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