30 आप्रैल को संसद मार्च से किसान मोर्चा ने खुद को अलग किया, दिल्ली के अस्पतालों के लिए लंगर लगाएंगे किसान
संयुक्त किसान मोर्चे के दो घटक संगठनों की ओर से 30 अप्रैल को संसद मार्च का पोस्टर जारी करने पर हुए विवाद के बीच संयुक्त मोर्चे ने कहा है कि उनकी ऐसी कोई योजना नहीं है।
मोर्चे ने एक बयान जारी कर कहा है कि ‘सोशल मीडिया पर शरारती तत्वों द्वारा एक पोस्टर साझा किया गया जिसमें बीकेयू क्रांतिकारी, एसएफएस और लख्खा सिधाना की ओर 30 अप्रैल को संसद मार्च का आह्वान किया है। संयुक्त किसान मोर्चा यह स्पष्ट करता है कि यह पोस्टर पूरी तरह से गलत है और फर्जी आईडी द्वारा साझा किया गया है जो किसान मोर्चा को लगातार कमजोर करना चाहते हैं।’
संयुक्त किसान मोर्चा ने ग़लत बयानबाज़ी से किसान संगठनों और समर्थक संगठनों में फूट डालने के इस कदम की कड़ी निंदा की है। भविष्य में किसान संगठनों द्वारा मोर्चे को मजबूत करने और संघर्ष को तेज करने के लिए किए गए फैसलों को संयुक्त किसान मोर्चे द्वारा संयुक्त रूप से सार्वजनिक किया जाएगा।
उधर, 27जैसे जैसे दिल्ली में कोरोना महामारी के कारण हालात खराब हो रहे हैं, बार्डर्स को बीते पांच महीने से घेरे बैठे किसान मदद को आगे आ रहे हैं। पहले उन्होंने सिंघु बॉर्डर से अपनी तरफ़ के बैरिकेड हटाए और ऑक्सीजन ले जाने वाले वाहनों को रास्ता दिखाना शुरू किया और अब दिल्ली के अस्पतालों में खाना और ज़रूरी सामान पहुंचाने का फैसला लिया है।
सयुंक्त किसान मोर्चा ने बयान जारी कर कहा है कि किसान संगठनों के समन्वय के तहत दिल्ली के बॉर्डर्स पर बैठे किसानों द्वारा दिल्ली के हस्पतालों में खाने के पैकेट व अन्य जरूरी वस्तुओं भेजी जाएगी।
गाज़ीपुर बॉर्डर पर पहले से ही किसान मोर्चे के वालंटियर दिल्ली के बस अड्डो, स्टेशनों व हस्पतालों में खाना वितरित कर रहे हैं। 27 अ्रप्रैल से सिंघु बॉर्डर पर भी पैकिंग की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। टिकरी बॉर्डर पर एक समूह ने सेवाओं की घोषणा करते हुए दिल्ली में किसी भी जरूरतमंद को खाने की समस्या है तो वे किसान मोर्चे से संपर्क कर सकते हैं।
सरकारी तंत्र के फैल होने पर देश के नागरिक खुद एक दूसरे की मदद कर रहे हैं । दिल्ली में स्वास्थ्य व्यवस्था का बुरा हाल होने पर लोगों का एक दूसरे की सेवा करना बंधुत्व एवं एकता की मिशाल है।
किसान मोर्चे के रास्ते मे जो भी ऑक्सिजन या अन्य सेवाएं लेकर वाहन पहुंच रहे हैं, वालंटियर उन वाहनों को पूरी मदद करके गन्तव्य स्थान पर पहुँचने में मदद कर रहे हैं। किसानों का यह आंदोलन मानवीय मूल्यों का आदर करता है।
किसान नेताओं का कहना है कि हम कोरोना संक्रमण के तकनीकी पक्ष से वाकिफ हैं परंतु सरकार इसे अपने लिए ढाल न बनाए। कोरोना से लड़ने की बजाय इसके बहाने देश मे विरोध की आवाज को नहीं दबा सकती।
किसान अपनी फसल के उचित दामों की सुरक्षा के लिए लड़ रहे है कहीं भी नाजायज नहीं है। कॉरपोरेट घरानों को खुश रखने की चाह में किसानों के आंदोलन को खत्म करना सरकार का मकसद हो सकता है परंतु किसान तीनों कानूनों की वापसी व MSP की कानूनी मान्यता न मिलने तक इस आंदोलन को वापस नहीं लेंगे।
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