अकेले हरियाणा में 48000 किसानों पर दर्ज हैं मामले, सरकार चाहती क्या है साफ़ करेः एसकेएम
कृषि क़ानूनों की वापसी के बाद संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के पास केंद्र सरकार की ओर से टेलीफ़ोन कॉल की ख़बरें हैें लेकिन अभी तक किसी तरह के लिखित संवाद की सूचना नहीं है।
सरकार चाहती है कि एसकेएम की ओर से एक समिति के लिए पांच नाम सुझाए जाएं। लेकिन एसकेएम ने कहा है कि ‘हमें इस बारे में कोई लिखित सूचना नहीं मिली है और न ही अब तक इस बारे में कोई विवरण उपलब्ध है कि यह समिति किस बारे में है, इसका अधिदेश या संदर्भ की शर्तें क्या हैं। ऐसे में इस पर प्रतिक्रिया देना जल्दबाजी होगी।’
इस बीच मोदी सरकार ने चालू संसद सत्र में बिजली संशोधन बिल 2021 को पेश करने के लिए अधिसूचित किया है, जिसपर एसकेएम ने गहरी नाराज़गी जताई है।
उल्लेखनीय है कि कानून वापसी के तुरंत बाद एसकेएम ने मोदी सरकार को एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें छह मांगों का ज़िक्र किया गया था। इनमें किसानों और किसान नेताओं पर लादे गए मुकदमों को वापस लेने की मांग भी रखी गई थी। मोर्चे के अनुसार, अकेले हरियाणा में ही क़रीब 48,000 किसानों पर मुकदमें दर्ज हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा ने स्पष्ट किया है कि भाजपा सरकारों द्वारा यहां-वहां अस्पष्ट बयान स्वीकार्य प्रतिक्रिया या आश्वासन नहीं हैं और एसकेएम लंबित मांगों पर ठोस आश्वासन और समाधान चाहता है। हरियाणा के मुख्यमंत्री पहले ही संकेत दे चुके हैं कि जब हरियाणा राज्य में लगभग 48000 किसानों पर दर्ज मामलों को वापस लेने की बात आती है, तो वह केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुसार कार्रवाई करेंगे, और मोदी सरकार किसानों के शेष मांगों को पूरा करने की अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है
एसकेएम ने चिंता व्यक्त की है कि जब 12 सांसदों ने कृषि क़ानूनों और संबंधित एमएसपी कानूनी गारंटी सहित मामलों पर बहस करने की कोशिश की, तो उन्हें संसद के पूरे शीतकालीन सत्र से निलंबित कर दिया गया। संसद में विस्तृत बहसों का दम घोंटना पूरी तरह से गलत और अलोकतांत्रिक है। झूठे बयानों और सरकार के अनैतिक व्यवहार के अलावा, संसद के भीतर लोकतांत्रिक कामकाज की निरंतर कमी आपत्तिजनक और अस्वीकार्य है।
संयुक्त किसान मोर्चा ने बयान में कहा है कि ‘छत्तीसगढ़ के बस्तर में स्थानीय समुदाय के लोग अपनी जीविका और आजीविका संसाधनों जैसे भूमि और जंगल पर अडानी ग्रुप के अवैध अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। सिलगर और बस्तर के अन्य स्थानों में छह महीने से अधिक समय से उनका अनिश्चितकालीन संघर्ष चल रहा है। इस ऐतिहासिक किसान आंदोलन की शुरुआत में, यह समझते हुए कि कृषि कानून पूँजीवादी मित्रों को मदद करने और खुश करने के लिए लाए गए थे, एसकेएम ने अडानी और अंबानी के कॉर्पोरेट घरानों के बहिष्कार और प्रतिरोध का आह्वान किया था। एसकेएम उन आदिवासी किसानों की भावना से खुद को जोड़ता है ,जो समुदायों के बुनियादी संसाधनों और जीवन के स्रोतों और आजीविका के कॉर्पोरेट अधिग्रहण के खिलाफ इस प्रतिरोध को खड़ा कर रहे हैं और अपनी एकजुटता प्रकट करता है।’
संयुक्त मोर्चे ने बिजली संशोधन बिल 2021 को मौजूदा संसद सत्र में पेश करने के लिए सूचिबद्ध किए जाने की निंदा की है।
मोर्चे ने कहा है कि भारत सरकार द्वारा दिसंबर 2020 में सरकार के साथ औपचारिक बातचीत कर रहे किसान संगठनों के प्रतिनिधिमंडल के प्रति की गई प्रतिबद्धता का एकमुश्त खंडन है। ऐसा ही मामला दिल्ली के वायु प्रदूषण के संबंध में बायोमास जलाने के लिए किसानों को दंडित करने का है। अविश्वसनीय व्यवहार की ऐसी अभिव्यक्तियों के साथ, यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि किसान संगठन किसी भी मौखिक बयान पर भारत सरकार पर भरोसा क्यों नहीं करेंगे।
एसकेएम ने अपने बयान में कहा है कि यह विडंबना है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पीठ 10 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार दिवस पर आशीष मिश्रा टेनी की जमानत याचिका पर सुनवाई करेगी। यूपी सरकार को जमानत अर्जी पर जवाब देने के लिए 10 दिन का समय दिया गया है। इस तरह की जमानत अर्जी पर निचली अदालत में सुनवाई में अभियोजन पक्ष ने यह बताया है कि कैसे किसानों को कुचलना पूर्व सोची-समझी साजिश और हत्या थी और 15 नवंबर 2021 को लखीमपुर खीरी कोर्ट में जमानत अर्जी खारिज कर दी गई। मंत्री अजय मिश्रा टेनी की गिरफ्तारी और केंद्र सरकार से बर्खास्तगी की मांग अभी भी लंबित है, लेकिन मोदी सरकार अपने अनैतिक और न्याय विरुद्ध व्यवहार पर कायम है और योगी सरकार ने नरसंहार के सूत्रधार पर कार्रवाई नहीं करने का निर्णय किया है।
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