Exclusive Report ‘सब्ज़ी दूध दिल्ली नहीं जाने देंगे, हम भी भूखे रहेंगे, दिल्ली को भी भूखा रखेंगे’
By संदीप राउज़ी
शुक्रवार की दोपहर जब पुलिस पंजाब और हरियाणा से आए किसानों पर आंसू गैस के गोले और पत्थर बरसा रही थी तो उससे कुछ ही दूरी पर एक बुज़ुर्ग दंपत्ति बैठा था। पुरुष की एक आंख पर पट्टी बंधी थी।
पूछने पर पता चला कि वे लोग पंजाब के ज़िला अमृतसर के अजनाले तहसील से आए हैं। वो पंजाब में किसानी करते हैं और अपने ही जैसे हज़ारों किसानों के साथ ट्रैक्टर ट्रालियों पर अपना राशन पानी लेकर दिल्ली पहुंचे हैं।
लेकिन उन्हें सोनीपत-दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर रोक लिया गया है। दिल्ली पुलिस उन्हें राज्य में प्रवेश नहीं करने दे रही है। दिल्ली की ओर भारी पुलिस का बंदोबस्त किया गया है। रास्ते को रोकर कर ब्लेड वाले तार लगाए गए हैं। लाउडस्पीकर से वापस जाने, लौट जाने, मान जाने की पुलिस घोषणाएं कर रही है। हालांकि पुलिस की आवाज़ किसानों के इँकलाब ज़िंदाबाद के नारों के बीच मिमियाती सी सुनाई देती है।
इस शख्स का नाम है जगबीर सिंह फौजी, उम्र 70 के पार। इन्हें पहले कोई बीमारी थी और आंसू गैस के गोले से बाईं आंख में दर्द शुरू हो गया तो पट्टी लगानी पड़ी। बर्न इंजरी की भी शिकायत है। लेकिन उनके और उनकी पत्नी के हौसले बुलंद हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि रात कहां और कैसे बीतेगी।
देश भर के क़रीब 500 किसान संगठनों के मंच ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोआर्डिनेशन कमेटी (एआईकेएससीसी) के ‘दिल्ली चलो’ आह्वान पर पंजाब के किसान 27 नवंबर को सिंघु बॉर्डर से तो हरियाणा के किसान टिकरी बॉर्डर से दिल्ली में घुसने की कोशिश में थे।
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हम भी भूखे रहेंगे, दिल्ली भी भूखी रहेगी..
पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच चल रही इस रस्साकशी में सुस्ता रहे इस दंपत्ति से कुछ देर बात करने पर ही लग गया कि ये किसान यहां सिर्फ अपनी आमद या प्रतिरोध दर्ज कराने नहीं आए हैं, बल्कि वो ये जंग जीत कर जाना चाहते हैं।
इसका अंदाज़ा जगबीर की पत्नी के उस जवाब में छिपा था जिसमें उन्होंने बड़े ही सपाट चेहरे से कहा था, “कोई चीज, सब्ज़ियां, दूध दिल्ली नहीं जाने देंगे अगर सरकार ने हमारी नहीं सुनी। जबतक सरकार अपना रुख़ स्पष्ट नहीं करती, हम पंजाब से कोई सामान दिल्ली नहीं जाने देंगे। हम भी भूखे रहेंगे और दिल्ली वाले भी भूखे रहेंगे।”
ये किसान रास्ते में पग पग पर हरियाणा सरकार द्वारा डाली गई अभूतपूर्व बाधाओं, अवरोधों, कंटीले तारों, गढ्ढों को पार करके दिल्ली की सीमा तक पहुंचे थे।
जगबीर कहते हैं, “लड़ते लड़ते हम दिल्ली पहुंच जाएंगे, ऐसा सोचा था। दिल्ली तो पहुंच गए लेकिन अधिक समस्या संघु बार्डर पर रही।यहां बहुत संघर्ष हुआ, तब जाकर हमें यहां रुकने की इजाज़त मिली। बैनर तोड़ दिया गया, लेकिन फिर बैनर लाया गया। पंजाब से बैनर यहां तक लाने में हमें बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा।”
वो बताते हैं कि “एक जगह सड़क पर गढ्ढा खोद दिया गया था, जहां उसे भरने में ही किसानों को दो घंटे लग गए। इतनी मुश्किलें झेल कर जब हम दिल्ली पहुंचे, यहां सारी सड़कें और रास्ते बंद मिले।”
एक तो कोरोना महामारी का समय चल रहा है, उस पर सरकार ने किसानों की मदद करने की बजाय तीन कृषि क़ानून पास कर दिए जिसमें आवश्यक वस्तु अधिनियम को संशोधित कर जमाखोरी की खुली छूट दे दी गई, खुले बाज़ारों में जींस बेचने की अनुमति दी गई और ठेका खेती की इजाज़त दे दी गई।
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यहां से कहीं नहीं हिलेंगे..
जबसे ये तीनों क़ानून पास हुए हैं, पंजाब और हरियाणा के साथ 15 राज्यों के किसान आंदोलन कर रहे हैं। हालांकि पंजाब में ये आंदोलन मुखर रहा और ढाई महीने से किसान रेलवे ट्रैकों पर बैठे रहे।
जब इन्हें लगा कि उनकी आवाज़ दिल्ली तक नहीं पहुंच रही है, इन्होंने रणनीति बदली और सीधे दिल्ली की सल्तनत को जगाने आ पहुंचे।
जगबीर की पत्नी कहती हैं, “हम तो अपने साथ अपना राशन खुद लेकर आए हैं, पूरा परिवार अपने साथ आया है। हम खाना पका सकते हैं और खा सकते हैं, हमें कोई दिक्कत नहीं है।”
“ट्राली, ट्रैक्टर, ट्रकों पर हम अपना राशन लेकर चले थे, हमे पता था कि मोदी की नीतियां बहुत खतरनाक हैं और जबसे मोदी आकर बैठा है हमारे साथ बहुत ज्यादतियां की हैं। जबसे हमारी ज़मीनों का सरकार ने सौदा किया तभी से हम संघर्ष जारी रखे हुए हैं, क़रीब तीन महीने हो गए हैं।”
उन्होंने कहा, “पहले हमने सोचा अपने यहां ही ये मसले हल कर लेंगे, पहले उन्होंने 15 दिन की मोहलत मांगी। अगर हम यहां नहीं आते तो पीछे से वे वही करते, जो उन्होंने किया है। हमने तय किया है कि हम यहीं बैठे रहेंगे, कहीं नहीं हिलेंगे, हम लगातार यही काम जारी रखेंगे।”
किसानों को लगा रहा है कि जो कष्ट वो आऩे वाले वक्त में झेलेंगे, उससे बुरा तो आज का संघर्ष नहीं है। जगबीर कहते हैं, “हमें ये (पुलिस) उकसाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन किसानों ने बहुत दुखदर्द देखा है, यहां भी सह लेंगे। अपने हक की लड़ाईयां तो हमारे गुरु साहब ने शुरू किया था, हम भी वैसा ही करेंगे।”
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हमारे पुरखों ने सिखाया नाइंसाफ़ी से लड़ाई..
जगबीर की पत्नी कहती हैं, “ये नाइंसाफ़ी और झगड़े हमारे गुरु साहब के साथ भी तो हुए ही थे, उन्होंने भी अपनी ड्यूटी निभाई। पीछे लाखों की संख्या में किसान गाड़ियों, ट्रैक्टरों, ट्रालियों में आ रहे हैं, हम दिल्ली पहुंचेंगे ज़रूर।”
इस देश में किसानों की उम्मीद से ऊंचा दुनिया में कोई पहाड़ नहीं होगा। उन्हें अपनी ताक़त पर भरोसा है। वो पथरीली ज़मीन से फसल उगा सकते हैं तो तानाशाह से तानाशाह सरकार का सिर भी झुका सकते हैं।
और ये उम्मीद और साहस इस दंपत्ति में दिखता है, जब वे ये कहते हैं, “कुछ को रास्ते में रोक लिया जाएगा कुछ दिल्ली पहुंच ही जाएंगे, लेकिन सरकार को हमारी बात सुननी ही पड़ेगी।”
बहुत जल्दबाज़ मोदी सरकार के पास क्या इतना धैर्य और साहस है?
कहा जाता है कि पहले जिसकी आंख झपकी वो पहला राउंड हार गया। जिस तरह पहली झड़प के बाद ही दिल्ली पुलिस ने किसानों को बुरारी के पास निरंकारी मैदान में जगह देने की बात मान ली, किसान अपनी लड़ाई में एक कदम आगे बढ़ गए।
हालांकि किसानों ने दिल्ली पुलिस की ये पेशकश ठुकरा दी है। यहां तक कि स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव को अपनी अगुवाई करने से भी मना कर दिया। अन्ना आंदोलन से देश की जनता ने कुछ सीखा है।
किसानों ने शुक्रवार की रात सिंघु बॉर्डर पर ही बिताने का फैसला किया। वहीं खाना बना, लंगर लगा और ठिठुरती रात बीती।
किसानों और सरकार के बीच पहला राउंड 1-0 पर ख़त्म हुआ। अगले राउंड में क्या होता है, ये आने वाला वक्त बताएगा।
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