दुनिया में 4.5 अरब किसान को खत्म कर 90 लाख पर समेटने की योजनाः अरुण त्रिपाठी
By अरुण त्रिपाठी
यह दिलचस्प है कि कारपोरेट और हिंदुत्व के संयुक्त हमले का जवाब देने के लिए देश के ग्रामीण तबके उठ खड़े हुए। और आज के समय उम्मीद वहीं दिखती है।
शहरी आबादी ने कारपोरेट और हिंदुत्व के पैकेज को अपना लिया है, इसलिए वो इस लड़ाई को नहीं लड़ सकता। देश के ग्रामीण इलाकों में अभी इसकी पहुंच कम है, इसलिए वहां अभी भी संघर्ष की संभावना बरकरार है।
अपने 35 साल के पत्रकारीय कैरियर में मैंने ऐसा आंदोलन नहीं देखा। इस देश में यह एक ऐतिहासिक आंदोलन रहा।
आज हम जिस मोड़ पर हैं, ये आंदोलन देश को ही नहीं दुनिया को दिशा देने वाला आंदोलन है। क्योंकि जिस तरह पूरी दुनिया पर साम्राज्यवाद का जो हमला है उसका मुकाबला कैसे किया जा सकता है, इस आंदोलन से इसके कुछ सूत्र निकलते हैं।
हम इस आंदोलन में जब घूमे तो हमें भगत सिंह और अम्बेडकर की तस्वीरें दिखीं, लेकिन गांधी की नहीं। पर, जब लोगों से बातचीत हुई तो उनमें गांधी की प्रेरणा साफ झलक रही थी।
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किसानों की खत्म करने की अंतरराष्ट्रीय परियोजना
अगर हम एक नया समाज बनाने का उद्यम करते हैं तो ये तीन महानायक हमारे प्रेरणा स्रोत होंगे।
इस आंदोलन को तमाम तरीके से हिंसक बनाने की कोशिशें हुईं लेकिन बावजूद यह आंदोलन शांतिपूर्ण बना रहा। और यही इस आंदोलन की विजय का सबसे बड़ा कारण था।
सारे उकसावे, साजिशों, मीडिया की दुर्भावनापूर्ण रिपोर्टिंग के बावजूद ये आंदोलन अगर अहिंसक बना रहा तो इसके मूल में भारतीयता की प्रेरणा था, जिसकी वजह से इस आंदोलन के सामने केंद्र को झुकना पड़ा। असल में आजादी का सच्चा अमृत महोत्वस इस आंदोलन ने मनाया है।
जाने माने अर्थशात्री जेसी कुमारप्पा ने कहा था कि पर्यावरण बचाने, पृथ्वी पर हिंसा को न्यूनतम करने और एक टिकाऊ अर्थव्यवस्था बनाने के लिहाज से खेती एक बहुत महत्वपूर्ण व्यवसाय है।
जबकि अमेरिका के ब्रेटनवुड परियोजना और भूमंडलीकरण, वैश्विकरण की नीतियां पूरी दुनिया में किसानों को खत्म कर देना चाहती हैं।
दुनिया की आबादी 7.9 अरब है और इसमें करीब 4.5 अरब किसान हैं। इस आबादी को घटाकर 90 लाख तक लाने की योजना पर वैश्विकरण काम कर रहा है।
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इसमें कितने किसानों को गांव से शहर लाया जाएगा, कितनों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया जाएगा, कितनी जमीनें छीन ली जाएंगी, ये भयावह है, लेकिन ये परियोजना चल रही है।
लेकिन इस ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने इस परियोजना को थोड़े समय के लिए ही सही रोक दिया है।
भारत में किसानों की एक बड़ी आबादी है और ये इस बात का निर्धारण करने में सक्षम है कि नया भारत कैसा बने।
संयुक्त किसान मोर्चा ने एक व्यापक साझा मंच बनाया है और उसमें वो ताकत है कि वो बताए कि डब्ल्यूटीओ, आईएमएफ़ और वर्ल्ड बैंक ये सोचना बंद कर दें कि वे किसानों को खत्म कर देंगे।
द जर्नी ऑफ फार्मर्स रिबेलियन
लेकिन किसान इस दुनिया में रहेंगे, वो अपने मुस्तकबिल का निर्माण करेंगे और उसी से ये दुनिया अच्छी बनेगी।
वरना ये दुनिया बहुत क्रूर, आत्महत्याओं वाली, दमनकारी और तानाशाही वाली दुनिया बनकर रह जाएगी।
इस किताब के सभी इंटरव्यू में वैश्विकरण से लड़ने के सूत्र हैं। अगर हम वैश्विकरण से लड़ेंगे तभी हिंदुत्व के खतरे से भी लड़ पाएंगे और बहुसंख्यकवाद से भी लड़ सकेंगे।
(वरिष्ठ लेखक और पत्रकार अरुण त्रिपाठी ने बीते 18 सितम्बर को दिल्ली के प्रेस क्लब में ‘द जर्नी ऑफ़ फार्मर्स रिबेलियन’ किताब के विमोचन के दौरान अपनी बात रखी। भाषण का ट्रांस्क्रिप्ट यहां प्रस्तुत है। यह किताब वर्कर्स यूनिटी, ग्राउंड ज़ीरो और नोट्स ऑन द एकेडेमी ने संयुक्त रूप से प्रकाशित की है।)
इस किताब को यहां से मंगाया जा सकता है। मेल करें- [email protected] या फोन करें 7503227235
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