दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा की मौत, यूपीए मामले में 7 माह पहले ही हुए थे बरी
दिल्ली के विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफ़ेसर डॉ. गोकरकोंडा नागा साईबाबा का शनिवार रात क़रीब 9 बजे निधन हो गया।
9 मई 2014 को कथित माओवादी संबंध मामले में गिरफ्तारी के बाद 5 मार्च 2024 को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने उन्हें बरी कर दिया था।
बरी होने के बाद से ही उनका सघन इलाज चल रहा था और उन्हें कई तरह की स्वास्थ्यगत समस्याएं पैदा हो गई थीं। शनिवार को निम्स में उन्हें इंटर्नल ब्लीडिंग हुई और फिर डॉक्टरों ने उन्हें
दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा का हैदराबाद में 28 सितम्बर को पित्ताशय की पथरी की सर्जरी हुई थी।
उनकी पत्नी वसंता ने एक बयान जारी किया है जिसमें उन्होंने बताया है, “पिछले महीने 28 सितंबर को हैदराबाद के निम्स अस्पताल में पित्ताशय निकालने के सफल ऑपरेशन के बाद साईबाबा स्वस्थ हो गए थे.”
“लेकिन उनके पेट में दर्द की शिकायत हुई. ऑपरेशन के छह दिन बाद पेट के अंदर उस जगह संक्रमण शुरू हो गया, जहां पित्ताशय को हटाकर स्टंट लगाया गया था.”
“पिछले एक हफ़्ते से साईबाबा को 100 डिग्री फ़ारेनहाइट से अधिक बुखार और पेट में तेज दर्द हो रहा था. वो डॉक्टर की निगरानी में थे.”
“इसके बाद 10 अक्तूबर को साईबाबा के पेट में जहां सर्जरी की गई थी वहां से मवाद निकाला गया. इसके बाद उन्हें आईसीयू में शिफ्ट किया गया था.”
“पेट में सूजन के कारण उन्हें काफी दर्द था. सर्जरी वाली जगह के पास इंटर्नल ब्लीडिंग हो रही थी, जिससे पेट में सूजन आ गई और उनका ब्लड प्रेशर कम हो गया था.”
“शनिवार को उनका हार्ट काम नहीं कर रहा था, जिसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें सीपीआर दिया लेकिन साईबाबा की जान नहीं बच सकी.”
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9 साल तक रखा गया जेल में
राजनीतिक और सामाजिक गलियारे में जीएन साईबाबा के नाम से लोकप्रिय 57 साल के प्रोफ़ेसर 9 साल तक महाराष्ट्र की जेल में रहे।
वो पोलियोग्रस्त थे और चल फिर नहीं सकते थे। जेल से रिहा होने के उन्होंने कहा था कि उनकी शारीरिक अक्षमता के बावजूद उन्हें अंडा सेल में सालों तक रखा गया।
9 मई 2014 को माओवादियों से कथित संबंध मामले में उनकी गिरफ़्तारी के बाद 5 मार्च को बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने उन्हें बरी कर दिया। 7 मार्च को उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया।
न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति वाल्मीकि एस.ए. मेनेजेस की खंडपीठ ने उन पर लगाई गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया और मामले में आरोपी पांच अन्य को भी बरी कर दिया।
साईबाबा, महेश करीमन तिर्की, हेम केशवदत्त मिश्रा, पांडु पोरा नरोटे और प्रशांत राही को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, जबकि छठे आरोपी विजय तिर्की को 2017 में एक विशेष अदालत ने 10 साल जेल की सजा सुनाई थी।
माओवादी संगठन से जुड़े होने का लगा था आरोप
उन पर अन्य आरोपियों – जेएनयू के छात्र हेम मिश्रा और उत्तराखंड के पत्रकार प्रशांत राही – की प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) और उसके कथित सहयोगी संगठन रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट के सदस्यों के साथ बैठक आयोजित करने का आरोप लगाया गया था।
साईबाबा दिल्ली विश्वविद्यालय के राम लाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे, जहां उन्होंने 2003 में ज्वाइन किया था।
संदिग्ध माओवादी संबंधों के लिए महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद 2014 में उन्हें कॉलेज से निलंबित कर दिया गया था।
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