ट्रेड यूनियनों का बढ़ा विरोध, लेबर कोड लागू करने की जल्दीबाज़ी से पीछे हटी सरकार
ट्रेड यूनियनों की तरफ़ से बढ़ते विरोध और कई राज्यों की ओर से आपत्ति जताए जाने के बाद मोदी सरकार लेबर कोड को लागू करने की जल्दबाज़ी से रुक गई है।
दैनिक भास्कर में इस आशय की एक ख़बर दो दिन पहले प्रकाशित हुई थी, जिसमें ट्रेड यूनियनों के तीखे होते विरोध का ज़िक्र किया गया है।
गौरतलब है कि नवंबर महीने में ही दिल्ली में ट्रेड यूनियनों के कई बड़े प्रदर्शन हुए। 5-6-7 को टीयूसीआई ने जंतर मंतर पर धरना दिया। 13 नवंबर को करीब डेढ़ दर्जन ट्रेड यूनियनों के मंच मासा ने रामलाली मैदान में एक बड़ा प्रदर्शन किया। 21 नवंबर को जंतर मंतर पर कई ट्रेड यूनियनों ने दिन भर का धरना दिया।
हालांकि दैनिक भास्कर ने अपनी ख़बर में कहा है कि, “लेबर कोड के संबंध में जब श्रम मंत्रालय में मजदूर संगठनों की ओर से बैठक होती है, तब संगठनों की ओर से कोई विरोध दर्ज नहीं कराया जाता है। यह सच में हैरान करने वाली बात है कि जहां एक तरफ मजदूरों संगठन विशाल प्रदर्शन करके नए लेबर कोड्स का पुरजोर विरोध कर रहे हैं, वहीं दूसरी और श्रम मंत्रालय के सामने वो कुछ भी नहीं बोल रहे हैं।”
असल में अख़बार ने मोदी सरकार का पक्ष ही बताया है। ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि 44 श्रम क़ानून ख़त्म करके जो चार लेबर कोड बनाए गए, उसपर ट्रेड यूनियनों की कोई राय नहीं ली गई। यहां तक कि कई सालों से लेबर कांफ्रेंस तक नहीं की गई।
टीयूसीआई के जनरल सेक्रेटरी संजय सिंघवी ने वर्कर्स यूनिटी के साथ एक साक्षात्कार में बताया कि श्रम कानूनों को मोदी सरकार कार्पोरेट हितों के मुताबिक बनाना चाहती है इसलिए ट्रेड यूनियन बनाने के अधिकार से लेकर हड़ताल के अधिकार को भी इसमें छीन लिया गया है।
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ट्रेड यूनियनों का विरोध क्यों नहीं दिखता भास्कर को?
दैनिक भास्कर ने अपनी ख़बर में सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा है कि ‘बैठक के बाहर मजदूरों की नजर में अपनी छवि बनाने के लिए लेबर कोड के संबंध में गैर जरूरी विरोध दर्ज कराया जाता है। ताकि इससे लगे की सरकार जबरन लेबर कोड को लागू कराना चाहती है जबकि ऐसा नहीं है। शुरुआती दौर में ज्यादातर राज्यों ने भी चारों लेबर कोड पर अपनी सहमति दे दी थी।’
लेकिन हिंदी बेल्ट में खुद को नंवबर वन अख़बार कहलाना पंसद करने वाले इस अख़बार ने किसी ट्रेड यूनियन का बयान लेना भी उचित नहीं समझा, जबकि दिल्ली में सारे ट्रेड यूनियन के शीर्ष नेता मौजूद हैं।
असल में सरकार ने जिस तरह तीन कृषि क़ानूनों को लागू करने की जल्दीबाज़ी दिखाई और किसान यूनियनों से कोई सलाह मशविरा नहीं किया, उसी तरह लेबर कोड को लेकर सरकार एक ही झटके में इसे लागू करना चाहती है।
मोदी सरकार लेबर कोड को लेकर कितनी जल्दबाज़ी में है ये 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही दिख रहा है। मोदी सरकार ने शपथ ग्रहण करने के एक हफ़्ते के अंदर सुधार के नाम पर श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने की घोषणा कर दी थी।
इसीलिए लॉकडाउन के दौरान ही संसद खोलकर तीन कृषि कानूनों को पास कराने के 24 घंटे के भीतर लेबर कोड भी जबरदस्ती पास कराए गए। 26-27 नवंबर 2020 को दस बड़ी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने आम हड़ताल भी की थी।
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