सरकारी सर्वे में खुलासा: रोजगार के अवसर घटे,बढ़ रही है कृषि और अवैतनिक श्रम पर निर्भरता

सरकारी सर्वे में खुलासा: रोजगार के अवसर घटे,बढ़ रही है कृषि और अवैतनिक श्रम पर निर्भरता

भारत में रोजगार की गुणवत्ता को लेकर एक सरकारी सर्वेक्षण ने गंभीर चिंता जताई है, भले ही 2023-24 में राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 3.2% पर स्थिर बनी हुई है।

पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) की नवीनतम रिपोर्ट में विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) नौकरियों में स्थिरता और कम वेतन वाली कृषि नौकरियों पर बढ़ती निर्भरता का खुलासा हुआ है, जो देश की रोजगार स्थिति को लेकर चिंता पैदा कर रही है।

प्रसिद्ध श्रम अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा के हवाले से द टेलीग्राफ ने उनको कोट करते हुए लिखा, ‘स्वरोजगार में महत्वपूर्ण वृद्धि एक चिंतनीय विषय है , जो मुख्य रूप से अवैतनिक पारिवारिक श्रम द्वारा प्रेरित होता है खासकर महिलाओं के बीच’।

मेहरोत्रा ने कहा कि यह प्रवृत्ति रोजगार की गुणवत्ता और आर्थिक वृद्धि के लिए गंभीर चुनौती है।

उन्होंने कहा, “महिलाओं की अवैतनिक कामों में बढ़ती भागीदारी चाहे वह पारिवारिक खेतों में हो या छोटे उद्यमों में सकारात्मक विकास नहीं है।”

पीएलएफएस 2023-24, जिसे राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा आयोजित किया गया था, ने जुलाई 2023 से जून 2024 के बीच 1,01,920 परिवारों को कवर किया।

डेटा से पता चला कि भारत के रोजगार क्षेत्र का लगभग पांचवां हिस्सा अब अवैतनिक पारिवारिक श्रम पर आधारित है।

इस श्रेणी में वे लोग शामिल हैं जो परिवार के व्यवसायों में काम करते हैं, लेकिन वेतन नहीं पाते।

यह श्रेणी देश के स्वरोजगार क्षेत्र के लगभग एक तिहाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करती है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) हालांकि, अवैतनिक पारिवारिक श्रम को औपचारिक रोजगार के रूप में नहीं मानता है, जिससे इन कामगारों के योगदान को मान्यता न मिलने की समस्या उजागर होती है।

रोजगार की गुणवत्ता पर इन चिंताजनक निष्कर्षों के बावजूद, सर्वेक्षण से कुछ सकारात्मक पहलू भी सामने आए।

श्रम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नियमित वेतन वाली या वेतनभोगी नौकरियों का प्रतिशत 2023-24 में लगभग एक प्रतिशत अंक बढ़ा है।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के आंकड़ों से यह पता चला है कि हर महीने लगभग 10 लाख औपचारिक नौकरियां सृजित हुई हैं।

हालांकि, मेहरोत्रा का कहना है कि औपचारिक रोजगार में यह मामूली वृद्धि कृषि जैसे बढ़ते असंगठित क्षेत्र के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

कामकाजी जनसंख्या अनुपात (WPR) जो कामकाजी उम्र की आबादी में से कितने लोग रोजगार में हैं, इसका सूचक है 2022-23 में 56% से बढ़कर 2023-24 में 58.2% हो गया, खासकर 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग में।

फिर भी, यह वृद्धि रोजगार की गुणवत्ता से जुड़े वास्तविक मुद्दों को छिपा देती है। सर्वेक्षण में पाया गया कि 2023-24 में भारत की 46.1% कार्यबल कृषि क्षेत्र में कार्यरत थी, जो पिछले वर्ष के 45.8% से अधिक है।

यह एक लंबे समय से चली आ रही प्रवृत्ति को उलटता है, जहां श्रमिक कृषि से हटकर अधिक उत्पादक क्षेत्रों जैसे विनिर्माण और सेवाओं की ओर जा रहे थे।

 

https://i0.wp.com/www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/04/Line.jpg?resize=735%2C5&ssl=1

https://i0.wp.com/www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/04/Line.jpg?resize=735%2C5&ssl=1

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें

Abhinav Kumar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.