हसदेव बचाव आंदोलनः नाकाबंदी तोड़ हज़ारों लोग पहुंचे धरना स्थल पर, कोयले न निकलने देने की चेतावनी
छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले 50 सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने मिलकर हसदेव अरण्य के जंगलों के अंदर पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे हैं.
संघर्ष समिति ने बहुत पहले ही रविवार को एक बड़े विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था.
इस प्रदर्शन के चलते इस इलाक़े की चारो तरफ़ से नाकेबंदी कर दी गई. हसदेव अरण्य और इसके अंदर मदनपुर, जहां धरना चल रहा है, उधर आने वाले सारे रास्ते बंद कर दिए गए थे और भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया था.
इसकी वजह से लोगों को धरना स्थल पर पहुंचने में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक आलोक शुक्ला ने आरोप लगाया कि उनके कार्यकर्ताओं को पुलिस ने जगह जगह रोक दिया और टोल नाकों से आगे नहीं बढ़ने दिया गया. बहुत सारे लोग दूसरे रास्तों से पैदल चलकर धरनास्थल पर पहुंचे.
धरने पर कई वक्ताओं ने कहा कि हसदेव बचाओ आंदोलन को छत्तीसगढ़ से बाहर दिल्ली तक ले जाएंगे.
संयुक्त किसान मोर्चा के नेता ने चेतावनी दी कि छत्तीसगढ़ से कोयले को राज्य से बाहर नहीं ले जाने देंगे और बॉर्डर सील करेंगे जिस तरह किसान आंदोलन के समय दिल्ली में किया गया था.
ये आंदोलन पिछले दो सालों, यानी 675 दिनों से ज़्यादा समय से चल रहा है. साल 2022 में सबसे पहले पेड़ों की कटाई शुरू हुई थी, इसके एक हिस्से में कोयला खनन के लिए एक निजी कंपनी को अनुमति दी गई थी.
उस समय 40 हेक्टेयर में ये पेड़ काटे गए थे. इस बार 2023 के अंत में यानी बीते दिसम्बर में पेड़ों की फिर से कटाई शुरू हुई और इसका विरोध गांव के लोग कर रहे हैं.
कोयला खनन के दूसरे चरण के लिए यरह इलाक़ा खाली कराया जा रहा है.
इस प्रदर्शन में गोंडवाना गनतंत्र पार्टी समेत आदिवासियों के तमाम संगठन शामिल हुए. सात ही आम आदमी पार्टी और संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े राकेश टिकैत के कार्यकर्ता भी पुहंचे हैं.
इसके अलावा कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक वैद्य भी शामिल हुए लेकिन उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा क्योंकि पिछले पांच साल तक कांग्रेस का शासन रहा और आदिवासियों का आरोप है कि उस दौरान फर्ज़ी ग्राम सभाएं आयोजित कराई गई थीं और कांग्रेस ने बाद में इन्हें रद्द करने का भरोसा दिलाया था. लेकिन उस पर कुछ नहीं किया गया. दीपक बैज ने भी स्वीकार किया कि उनकी पार्टी के शासन के दौरान कुछ ग़लतियां हुईं.
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